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    महारानी विक्टोरिया के नाम पर बसा था 'रानी मंडी', प्रयागराज के 150 वर्ष पुराने मुहल्ले का दिलचस्प है इतिहास

    Updated: Sun, 28 Sep 2025 02:39 PM (IST)

    रूसी दार्शनिक सोरोवस्की के अनुसार किसी शहर या मुहल्ले का इतिहास जानने के लिए उसके नामकरण को जानना जरूरी है। प्रयागराज का ऐतिहासिक मुहल्ला रानी मंडी का नामकरण इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया से जुड़ा है। वर्ष 1874 में चौक कोतवाली बनने के बाद अंग्रेज अफसरों ने इसके पीछे के भूभाग को रानी मंडी कहना शुरू कर दिया। इतिहासकारों के अनुसार रानी मंडी नामकरण मिस्टर आर अहमुटी ने किया था।

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    प्रयागराज के ऐतिहासिक मोहल्ला रानी मंडी अपने में दिलचस्प इतिहास समेटे है। जागरण

    जागरण संवाददाता, प्रयागराज। प्रयागराज का ऐतिहासिक मुहल्ला रानीमंडी भी है। इसका इतिहास करीब 150 साल पुराना है। वर्ष 1874 में चौक कोतवाली का भवन बनकर तैयार हुआ था। तमाम अंग्रेज अफसर वहीं बैठना पसंद करते थे। उसी दौरान चौक कोतवाली के पीछे वाले एक बड़े भूभाग को रानी मंडी कहा जाने लगा।

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    क्या कहते हैं रूसी दार्शनिक सोरोवस्की

    रूसी दार्शनिक सोरोवस्की ने कहा था किसी शहर, गली या मुहल्ले का इतिहास पता लगाना हो तो पहले उसके नामकरण को जानना आवश्यक है। आपको भी यदि पुराने शहर के मुहल्ले 'रानी मंडी' के बारे में कुछ पृष्ठभूमि न पता हो तो यह जानकारी रोचक रहेगी कि इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया से 'रानी मंडी' के नामकरण का संबंध है।

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    पुराने जमाने में यहां रानी का था महल

    बच्चा जी की कोठी से ठीक बगल में जहां अब शापिंग कांप्लेक्स वी मार्ट और अन्य बड़े प्रतिष्ठान हैं। इस हिस्से में रानी का एक महल हुआ करता था। दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास होने के कुछ अंश आज भी हैं। कई बड़े दरवाजे, विशाल आंगन और ऊंची छतों वाले कमरे थे। हालांकि बस्ती का स्वरूप 100 साल पहले की अपेक्षा काफी बदल गया है। इसलिए रानी के महल का अस्तित्व अब लगभग खत्म है।

    ब्रिटिश शासनकाल के कलेक्टर ने किया था नामकरण

    मुहल्लों के बारे में गहराई से अध्ययन करने वाले इतिहासकारों के अनुसार रानी मंडी उन्हीं मिस्टर आर. अहमुटी ने नाम दिया था जिनके नाम पर मुट्ठीगंज मुहल्ले को जाना जाता है। आर अहमुटी ब्रिटिश शासनकाल में कलेक्टर थे।

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    तमाम मंडियों के कारण नाम पड़ा रानी मंडी

    रानी मंडी से खास वास्ता रखने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सेंटर फार मीडिया स्टडीज के पाठ्यक्रम समन्वयक डा. धनंजय चाेपड़ा बताते हैं कि जब अंग्रेजों ने चौक कोतवाली के भवन को अपना ठिकाना बनाया था तब उसके ठीक पीछे कपड़े और गहनों की मंडी, खोवा मंडी थी। वहीं एक गली से होते हुए लोकनाथ की सब्जी मंडी तब भी रही। इन तमाम मंडियों के रहने के चलते रानी के साथ मंडी नाम जोड़ कर 'रानी मंडी' रखा गया।

    चौक कोतवाली से पहला पार्क तक है रानी मंडी मुहल्ला

    रानी मंडी का दायरा चौक कोतवाली के ठीक बगल वाले रास्ते से बच्चा जी की कोठी होते हुए पहला पार्क तक है। इसके आसपास गलियों में संतोषी माता मंदिर, खेमामाई मंदिर, हनुमान मंदिर है। कुछ ही दूर पर गणेश शंकर विद्यार्थी और उपन्यासकार पद्मश्री डा. धर्मवीर भारती का जन्मस्थान भी है। काफी पहले इसी रास्ते पर एक डाकखाना हुआ करता था।

    रानीमंडी हकीमों का गढ़ था

    100 साल पहले जब एलोपैथ के अस्पतालों का आजकल के जैसा चलन नहीं था तब इसी रानी मंडी में वैद्य हकीमों का गढ़ था। रानी मंडी को वरिष्ठ साहित्यकार रवींद्र कालिया ने भी प्रकाशन संस्था का संचालन करके लेखों के जरिए काफी प्रसिद्धि दिलाई थी।