कितना बदल गया प्रयागराज, पहले आपस में प्यार बहुत था, अपनत्व अब आभासी दुनिया पर, रिश्तेदारी-मित्रता मैसेज भेजकर दिखा रहे
प्रयागराज में हुए बदलावों पर अमरदीप भट्ट की एक रिपोर्ट। पूर्व सीएमओ डाॅ. पीके सिन्हा ने पुराने दिनों को याद करते हुए बताया कि कैसे 1972 में शहर में सादगी थी और लोग आपस में मिलते-जुलते थे। समय के साथ, अपार्टमेंट और शॉपिंग मॉल बनने लगे, और अपनत्व केवल व्हाट्सएप और फेसबुक तक ही सीमित हो गया। अब रिश्तेदारी और दोस्ती भी मैसेज से निभाई जाती है। नैतिक मूल्यों में गिरावट आई है।

प्रयागराज में क्या और कैसा हुआ परिवर्तन, बदलते सामाजिक मूल्यों को पूर्व सीएमओ डॉ. पीके सिन्हा ने बताया।
अमरदीप भट्ट, प्रयागराज। बहुत खूबसूरत है अपना इलाहाबाद (अब प्रयागराज)। अच्छे लोग हैं यहां, ऐतिहासिक इमारतें, पार्क, संगम और कालिंदी का घाट। खुशहाल पर्वत, जहां हमारा पुश्तैनी घर है। चौक बाजार, सिविल लाइंस और अशोक नगर। बदलाव तो सभी शहर में होते हैं। यहां भी हुआ।
सेवानिवृत्त सीएमओ डाॅ. पीके सिन्हा ने ताजा की यादें
सेवानिवृत्त सीएमओ डाॅ. पीके सिन्हा ने अतीत की यादें ताजा कीं। बताया कि वर्ष 1972 में जब टीबी सप्रू चिकित्सालय 'बेली अस्पताल' में बतौर मेडिकल अफसर ज्वाइन किया तब की यादें मन में अब भी ताजा हैं। फूलपुर के सरकारी अस्पताल में एक बार काम करने का मौका दिया गया।
शहर भागने की अब के जैसी प्रवृत्ति नहीं थी
बताया कि वे इसके बाद 10 साल तक गंगापार में बतौर डिप्टी सीएमओ तैनात रहे। जहां तैनाती मिलती थी वहीं रहते थे। शहर भागने की अब के जैसी प्रवृत्ति नहीं थी। वर्ष 1980 के आसपास बैरहना में पहला निजी अस्पताल खुला था, उसके बाद धीरे-धीरे निजी क्षेत्र के और अस्पताल खुलने लगे। सब कुछ बदलने लगा।
वर्ष 2000 के बाद अपार्टमेंट फिर शापिंग माल बनने लगे
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ाई का, इसके आसपास क्षेत्रों में बड़ा अच्छा माहौल रहता था। वर्ष 2000 के बाद शहर में जिस तरह से अपार्टमेंट और 2010 के बाद शापिंग माल तेजी से बनने लगे यह सब परिवर्तनकारी है।
अपनत्व केवल वाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर रह गया
उनका कहना है कि दुख इस बात का है कि लोगों ने आपस में मिलना-जुलना छोड़ दिया। अपनत्व केवल वाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर रह गया है। इसी पर गहरी रिश्तेदारी, अटूट मित्रता लोग मैसेज भेजकर दिखाते हैं। बदलाव इस संस्कृति में ज्यादा आया। इंसानों के नैतिक मूल्य में गिरावट आई है। एक दूसरे की इज्जत करने वाले कम ही लोग बचे हैं।
परिवर्तन साधनों में भी खूब हुआ
पहले बड़े-बड़े बंगले हुआ करते थे वह भी खत्म होते जा रहे हैं। बंगलों में किसी न किसी अवसर पर गीत- संगीत का दौर चलता था। बड़े सम्मान से आमंत्रण मिलता था। वहां जाते थे, गीत-गजलें गाते थे। अब तो ऐसा गिनेचुने घरों में होता है। परिवर्तन साधनों में भी खूब हुआ। पहले इक्के चलते थे। गाड़ियां कम थीं। लोग टैक्सियों से कहीं जाते थे अब तो सभी के पास दो से तीन गाड़ियां हो गई हैं। यह सब बदलाव ही तो है। बच्चों को घर से बाहर खेलने का कहीं अवसर नहीं मिलता। बड़ा अजीब लगता है जब सोचते हैं पहले की बातें।

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