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    प्रयागराज में काले हिरनों का संरक्षित क्षेत्र अब और भी सुरक्षित होगा, वन विभाग पत्थर की बनवाएगा दीवार

    By Jagran News Edited By: Brijesh Srivastava
    Updated: Fri, 31 Oct 2025 04:55 PM (IST)

    प्रयागराज के मेजा स्थित काले हिरणों के संरक्षित क्षेत्र को और सुरक्षित बनाने के लिए वन विभाग पत्थरबाड़ी बनाने की योजना बना रहा है। 148 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले इस संरक्षित क्षेत्र में लगभग 600 हिरण हैं। पत्थरबाड़ी से एक ओर जहाँ इंसानी दखल रुकेगा, वहीं दूसरी ओर विभाग की भूमि भी सुरक्षित रहेगी। पहले राजस्व विभाग भूमि की पैमाइश करेगा, जिसके बाद पत्थरबाड़ी का निर्माण शुरू होगा।

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    प्रयागराज में मेजा स्थित चांद खमरिया काले हिरणों की सुरक्षा के लिए बनेगा अब और सुरक्षित क्षेत्र। फोटो : जागरण आका्रइव

    जागरण संवाददाता, प्रयागराज। विलुप्तप्राय कृष्ण मृग (काले हिरन) के संरक्षण के लिए देश भर में प्रसिद्ध मेजा का संरक्षित क्षेत्र अब हिरनों के लिए और भी सुरक्षित होने जा रहा है। अभी यहां किसी तरह की बाड़ या दीवार न होने के कारण स्थानीय ग्रामीणों की आवाजाही लगी रहती है। वन विभाग अब इसके चारों तरफ पत्थरबाड़ी बनवाने जा रहा है। इससे दो फायदे होंगे। एक तो संरक्षित क्षेत्र में इंसानी दखल रुकेगा और दूसरा विभाग की भूमि सुरक्षित रहेगी।

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    मेजा तहसील क्षेत्र में स्थित है संरक्षित क्षेत्र 

    मेजा तहसील क्षेत्र के चांद खमरिया स्थित यह कृष्ण मृग संरक्षित क्षेत्र लगभग 148 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला हुआ है। लगभग तीन साल पहले हुई गणना के वक्त यहां 600 हिरन मिले थे। इनमें काले हिरन के साथ ही अन्य प्रजातियाें के हिरन भी शामिल थे। वर्ष 2017 में इसे संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया था। पहले इसका क्षेत्रफल कम था, लेकिन अब दायरा भी बढ़ गया है। उधर, हिरनों की संख्या भी काफी बढ़ गई है।

    पत्थरों की 3-4 फीट ऊंची दीवार बनेगी

    संरक्षित क्षेत्र के आसपास कई जगह किसानों की जमीनें हैं। ऐसे में हिरनों के प्राकृतिक आवास में लोगों की आवाजाही बनी रहती है, जो उनकी सुरक्षा के नजरिए से उचित नहीं है। इसी को देखते हुए वन विभाग अब संरक्षित क्षेत्र के चारों ओर पत्थरबाड़ी बनवाने जा रहा है। इसमें पत्थरों की तीन से चार फीट ऊंची कच्ची (बिना जोड़ाई के) दीवार खड़ी की जाएगी। ताकि, बाहरी लोगों की बेवजह की दखलंदाजी पर रोक लगे। इसके साथ ही वन विभाग जमीन भी सुरक्षित रहे। पहले राजस्व विभाग संरक्षित क्षेत्र की भूमि की पैमाइश व चिन्हांकन करेगा, फिर यह काम होगा।

    हिरनों के भी बाहर निकलने पर लगेगा कुछ अंकुश

    अधिकारियों का कहना है कि संरक्षित क्षेत्रों में वन्य जीवों के लिए कोई बंदिशें नहीं रहती। पत्थरबाड़ी भी हिरनों के आवागमन पर कोई प्रभाव नहीं डालेगी। वह जब चाहें तब उसे लांघ कर जा सकेंगे, लेकिन उन पर संरक्षित क्षेत्र की सीमा को लेकर मनोवैज्ञानिक दबाव जरूर बनेगा। उम्मीद है कि वह अपनी हद को समझ सकेंगे।

    क्या कहते हैं डीएफओ?

    डीएफओ अरविंद कुमार का कहना है कि कृष्ण मृग संरक्षित क्षेत्र में पत्थरबाड़ी बनवाई जानी है। राजस्व विभाग की ओर से भूमि की पैमाइश व निशानदेही की जाएगी। इसके बाद पत्थरबाड़ी के निर्माण का डीपीआर बनाया जाएगा।

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