कैंसर कोशिकाओं से लड़ने की क्षमता को प्रभावित करता है ट्यूमर का पोटैशियम, सिंगापुर के विशेषज्ञ ने सुझाए उपाय
सिंगापुर के विशेषज्ञ डा. नवीन कुमार वर्मा ने बताया कि कैंसर ट्यूमर के अंदर मरी कोशिकाएं अत्यधिक पोटैशियम छोड़ती हैं, जिससे शरीर की प्रतिरक्षा कोशिकाएं कमजोर हो जाती हैं। ट्यूमर माइक्रोएनवायरनमेंट में पोटैशियम का असंतुलन कैंसर इम्यूनोथैरेपी की सफलता में बाधक है। उम्र के साथ आंतों के बैक्टीरिया में बदलाव भी प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करते हैं। युवा वैज्ञानिकों ने कैंसर और टीबी पर नई खोजें प्रस्तुत की।

एमएनएनआइटी में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में शोधकर्ताओं को सम्मानित करतीं केजीएमयू की कुलपति डा. सोनिया नित्यानंद व अन्य अतिथि। सौ. संस्थान
जागरण संवाददाता, प्रयागराज। मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एमएनएनआइटी) में चल रहे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन इम्यूनोकान-2025 के अंतिम दिन उम्र, आंतों के बैक्टीरिया, कैंसर इम्यूनोथैरेपी और टीबी पर व्याख्यान हुए। सिंगापुर की नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के डा. नवीन कुमार वर्मा ने बताया कि कैंसर ट्यूमर के अंदर मर चुकी कोशिकाएं अत्यधिक मात्रा में पोटैशियम छोड़ती हैं, जिससे शरीर की टी-कोशिकाएं (जो कैंसर से लड़ती हैं) कमजोर हो जाती हैं। यह कमजोरी कैंसर के बढ़ने का कारण बन सकती है।
ट्यूमर की कोशिकाएं मरती हैं तो पोटैशियम बाहर छोड़ती हैं
डा. वर्मा ने कहा कि डा. वर्मा ने अपने शोध में बताया कि कैंसर ट्यूमर केवल कोशिकाओं का गुच्छा नहीं होता, बल्कि वह अपने आसपास का वातावरण भी बदल देता है। इस वातावरण को वैज्ञानिक ट्यूमर माइक्रोएनवायरनमेंट (टीएमई) कहते हैं। जब ट्यूमर के अंदर कोशिकाएं मरती हैं, तो वे बहुत ज्यादा पोटैशियम बाहर छोड़ती हैं।
प्रतिरक्षा कोशिकाओं टी-सेल्स को निष्क्रिय कर देता है
सामान्य तौर पर हमारे शरीर में पोटैशियम का स्तर बहुत नियंत्रित होता है लेकिन ट्यूमर के भीतर इसकी मात्रा 20–50 गुना तक बढ़ सकती है। यह बढ़ा हुआ पोटैशियम शरीर की सबसे महत्वपूर्ण प्रतिरक्षा कोशिकाओं टी-सेल्स को निष्क्रिय कर देता है। टी-कोशिकाएं कैंसर कोशिकाओं को पहचान नहीं पातीं, उनकी ऊर्जा कम हो जाती है और वे अपना काम ठीक से नहीं कर पातीं। महत्वपूर्ण रिसेप्टर जैसे सीडी-3 और सीडी-28 दब जाते हैं। ये वे हिस्से हैं जिनसे टी-सेल्स सक्रिय होती है।
इस कारण शरीर कैंसर से लड़ने में पिछड़ जाता है
ग्लूकोज और ग्लूटामीन का उपयोग भी सही तरीके से नहीं कर पाने के कारण टी-सेल्स थकान मोड में चली जाती हैं। कैंसर को रोकने वाली टी-सेल्स की जगह कैंसर बढ़ाने वाली टी-सेल्स बढ़ जाती हैं। पोटैशियम से टी-सेल्स “रूप बदल” लेती हैं और उन प्रकारों में बदल जाती हैं जो ट्यूमर को बढ़ने में मदद करते हैं। इस कारण शरीर कैंसर से लड़ने में पिछड़ जाता है।
पोटैशियम असंतुलन को भी नियंत्रित किया जाए
उन्होंने कहा कि ट्यूमर के बीच में मौजूद टी-सेल्स लगभग निष्क्रिय हो जाती हैं, जबकि किनारों पर वे बेहतर काम करती हैं। ऐसे में कैंसर इम्यूनोथैरेपी तभी सफल होगी जब ट्यूमर माइक्रोएनवायरनमेंट में पोटैशियम असंतुलन को भी नियंत्रित किया जाए।
गट माइक्रोबायोम थेरेपी से होगा उम्र-संबंधी बीमारियों का उपचार
आइआइआइटी रोपड़ के प्रो. जावेद अग्रेवाला ने उम्र और आंतों के माइक्रोबायोटा पर आधारित शोध प्रस्तुत किया। कहा कि उम्र के साथ केवल बाहर से नहीं बदलते, हमारी आंतों की दुनिया भी बदलती है और वही हमारा इम्यून सिस्टम कमजोर करती है। शोध में पाया गया कि बुजुर्गों में एक महत्वपूर्ण बैक्टीरिया लैक्टोबैसिलस प्लेनटरम तेजी से कम होने लगता है। यह बैक्टीरिया हमारे प्रतिरक्षा तंत्र में शांति बनाए रखने का काम करता है।
प्रतिरक्षा तंत्र गलत दिशा में सक्रिय होने लगता है
इसके कम होते ही डेंड्रिटिक कोशिकाएं (जो इम्यून सिस्टम की टीचर होती हैं) असंतुलित हो जाती हैं। शरीर में सूजन वाले सिग्नल बढ़ जाते हैं। नियामक टीसेल्स (टी-रेग) कम हो जाती हैं और प्रतिरक्षा तंत्र गलत दिशा में सक्रिय होने लगता है। यह स्थिति आटोइम्यून बीमारियों, आर्थराइटिस, एलर्जी और उम्र-संबंधी संक्रमणों का कारण बन सकती है। कहा कि भविष्य में उम्र-संबंधी बीमारियों का उपचार गट माइक्रोबायोम थेरेपी से संभव हो सकता है।
युवा वैज्ञानिकों के शोध ने दिखाई नई राह
जीपी तलवार यंग साइंटिस्ट अवार्ड सत्र में देश भर के युवा वैज्ञानिकों ने सरल शब्दों में अपने महत्वपूर्ण शोध बताए।सीएसआइआर-आइआइसीबी के पुष्पेन्दु घोष ने बताया कि शरीर में एक खास प्रकार के रासायनिक बदलाव से कैंसर से लड़ने वाली सीडी8प्लस टी-कोशिकाओं का व्यवहार बदल सकता है। नर्मा यूनिवर्सटी की डिग्ना पटेल ने नई कैंसर इम्यूनोथैरेपी तकनीकों पर चर्चा की। एम्स की सिमरन प्रीत कौर ने बताया कि लैक्टोबैसिलस एसिडोफाइलस जैसे प्रोबायोटिक बैक्टीरिया हड्डियों को सूजन से होने वाले नुकसान से बचा सकते हैं।
कुछ कोशिकाएं टीबी को रोकने के बजाय उसे बढ़ाती हैं
डा. प्रिया शर्मा ने बताया कि शरीर की कुछ कोशिकाएं टीबी को रोकने के बजाय उसे बढ़ाने में मदद करती हैं। आइसीएमआर की डा. मनीषा मदकैकर ने बताया कि कुछ लोगों में जन्म से ही प्रतिरक्षा प्रणाली की छोटी-छोटी गलतियां मौजूद रहती हैं। इन्हें समझने से डाक्टर जटिल बीमारियों का इलाज खोज सकते हैं और सही समय पर निदान करना आसान हो सकता है।इम्यूनोकान चेयरमैन प्रो. शिवेश शर्मा, संयोजक प्रो. अंबक कुमार राय और सह संयोजक प्रो. समीर श्रीवास्तव उपस्थित रहे।

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