108 बार डुबकी, मुंडन के बाद पिंडदान... Maha Kumbh 2025 में नागा संन्यासिनी बनीं 150 महिलाएं
Maha Kumbh 2025 श्री पंच दशनामी जूना अखाड़ा ने 150 महिलाओं को नागा संन्यासिनी के रूप में स्वीकार किया। विधि-विधान से उनके संन्यास की प्रक्रिया पूरी कराई गई। भोर में गंगा स्नान के बाद सभी को सफेद वस्त्र धारण कर उनका मुंडन कराया गया। फिर सभी का पिंडदान हुआ। अखाड़ों में महिलाओं को संन्यास देने की प्रक्रिया अत्यंत कठिन है।

जागरण संवाददाता, महाकुंभ नगर। घर-परिवार से मोह-माया त्याग कर 150 महिलाएं भी रविवार को वैराग्य पथ पर चल पड़ीं। श्री पंच दशनामी जूना अखाड़ा ने उन्हें नागा संन्यासिनी के रूप में स्वीकार किया। विधि-विधान से उनके संन्यास की प्रक्रिया पूरी कराई गई। भोर में गंगा स्नान के बाद सभी को सफेद वस्त्र धारण कर उनका मुंडन कराया गया। फिर सभी का पिंडदान हुआ।
अखाड़ों में महिलाओं को संन्यास देने की प्रक्रिया अत्यंत कठिन है। ऐसा नहीं है कि कोई सीधे आकर संन्यासी बन जाए। अखाड़ाें में संपर्क करने पर संबंधित महिला के घर-परिवार, पढ़ाई, काम-काज व चारित्र की जांच कराई जाती है। जांच अखाड़े के पंच परमेश्वर के निर्देश पर गुप्त रूप से किया जाता है।
भजन-पूजन में लीन रहती हैं महिलाएं
हर कसौटी पर खरा उतरने के बाद अखाड़े के महिला आश्रम में उन्हें रखा जाता है। कुछ को उन मंदिरों में रखा जाता है जहां महंत महिलाएं होती हैं। वहां वह भजन-पूजन में लीन रहती हैं।
108 बार लगाई डुबकी
नागा संन्यासिनी बनने वाली महिलाओं ने सुबह मंत्रोच्चार के बीच गंगा में 108 बार बिना रुके डुबकी लगाई। फिर पिंडदान कर पूर्व के समस्त रिश्ते-नातों से संबंध समाप्त कर लिया। अखाड़े की धर्मध्वजा के नीचे विजय हवन किया। इसके उपरांत विधिवत दीक्षा ली। अब नाम के अलावा उन्हें माई, अवधूतानी, संन्यासिनी अथवा साध्वी कहा जाएगा।
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भगवा या सफेद रंग के वस्त्र धारण करती हैं महिलाएं
पुरुषों की तरह जो महिला नागा दिगंबर (निर्वस्त्र) रहती हैं, उन्हें समाज से दूर रखा जाता है। ऐसी संन्यासिनी गुफाओं व कंदराओं में सिर्फ महिलाओं के साथ रहती हैं। अधिकतर संन्यासिनी बिना सिला सिर्फ एक वस्त्र धारण करती हैं, जिसे गंती कहते हैं। उसका रंग भगवा अथवा सफेद होता है।
325 लोगों को बनाया गया नागा संन्यासी
श्री निरंजनी अखाड़ा में पुरुष और महिलाओं को नागा संन्यासी बनाया गया। इसमें 325 लोग शामिल रहे। वहीं सेक्टर-20 के पांटून पुल नंबर पांच और छह के बीच बने घाट में रविवार को मुंडन करवाकर सबको गंगा स्नान कराया गया। गंगा पूजन के बाद पिंडदान हुआ। फिर अखाड़े के शिविर में धर्मध्वजा के नीचे अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद व मां मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट की अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्र पुरी ने सबको नागा संन्यास की परंपरा बताई।
अखाड़े के वैभव होते हैं नागा संन्यासी
उन्हें त्रिशूल और चिमटा दिया। उन्होंने कहा कि नागा संन्यासी अखाड़े के वैभव होते हैं। तपस्या और संयमित जीवन व्यतीत करते हैं। जो सांसारिक वासनाओं से परे होकर केवल आत्मा की साधना में ध्यानरत रहते हैं। नागा बनने के बाद सांसारिक जीवन से पूरी तरह से विरक्त हो गए हैं। संन्यास लेने वाले महिला और पुरुषों ने 48 घंटे का उपवास रखा।
48 घंटे पूरे होने पर दी गई दीक्षा
24-24 घंटे में सिर्फ दो बार जल और फल का सेवन किया। कुछ लोगों ने गाय का दूध पिया। इसके बाद हर समय अखाड़े के आराध्य की साधना में लीन रहे। साधना के 48 घंटे पूर्ण होने पर संन्यास की दीक्षा दी गई। अखाड़ा सचिव श्रीमहंत रामरतन गिरि, महंत दिनेश गिरि, महंत राधे गिरि, महंत भूपेंद्र गिरि, महंत ओमकार गिरि, महंत शिवबन, महंत नरेश गिरि, महंत राज गिरि आदि उपस्थित रहे।
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