अब छोटे व्यापारी भी लीज पर ले सकेंगे ट्रेन के कोच, इलाहाबादी अमरूद और प्रतापगढ़ का आंवला उत्पाद भेजना होगा आसान
भारतीय रेलवे ने पार्सल कारोबार में बदलाव करते हुए छोटे व्यापारियों को भी कोच लीज पर लेने की सुविधा दी है। पहले 5-10 करोड़ का कारोबार दिखाना होता था, पर ...और पढ़ें

इलाहाबादी अमरूद और प्रतापगढ़ का आंवला ट्रेन से भेजना हुआ आसान, रेलवे ने बदला नियम।
अमरीश मनीष शुक्ल, प्रयागराज। भारतीय रेलवे ने पार्सल कारोबार में बड़ा बदलाव किया है। अब छोटे-मध्यम व्यापारी भी आसानी से पूरा कोच लीज पर लेकर अपना माल देश के किसी भी कोने तक भेज सकेंगे। पहले कोई व्यापारी कोच लेना चाहता था तो उसे पिछले तीन साल में कम से कम 5-10 करोड़ का कारोबार और करोड़ों की बैंक गारंटी दिखानी पड़ती थी। छोटा व्यापारी दूर से तमाशा देखता रह जाता था।
कठिन शर्तें खत्म, रजिस्ट्रेशन शुल्क भी घटा
अब सारी कठिन शर्तें खत्म, रजिस्ट्रेशन शुल्क 50 हजार से घटाकर 10 हजार रुपये कर दिया गया है। कारोबार की कोई न्यूनतम सीमा नहीं और आसानी से टेंडर प्रक्रिया में शामिल हो सकेंगे। अब इलाहाबादी अमरूद, कौशांबी के केला, प्रतापगढ़ का आंवला उत्पाद वाले, वाराणसी के साड़ी व भदोही के कालीन व्यापारी, लखनऊ का कपड़ा कारोबारी, दिल्ली का किराना होलसेलर कोई भी पूरा वीपी या एसएलआर लीज पर लेकर सैकड़ों टन माल एक साथ भेज सकेंगे। हौंसला हो तो पूरी पार्सल कार्गो एक्सप्रेस ट्रेन भी चला सकेगा।
रेलवे बोर्ड के मेंबर वित्त को मंजूरी के बाद फैसला
यह बड़ा फैसला रेलवे बोर्ड के मेंबर वित्त को मंजूरी मिलने के बाद हुआ। 28 नवंबर को निदेशक माल ढुलाई विपणन आशुतोष मिश्रा ने उत्तर मध्य रेलवे के महाप्रबंधक नरेश पाल सिंह सहित देश के सभी 17 जोनों के महाप्रबंधकों को पत्र भेजा है। महाप्रबंधकों को कहा गया है कि एसएलआर, वीपी कोचों की लीज, पार्सल ट्रेन के टेंडर और एग्रीगेटर बनने के सारे पुराने पैसे वाले सख्त नियम ढीले कर दिए गए हैं, उसी अनुसार अब व्यापारियों को लाभान्वित किया जाए।
नए नियम से व्यापारी खुश
व्यापारियों में खुशी का माहौल है। प्रयागराज के फल व्यापारी संदीप सिंह बोले, पहले हम 50-100 क्विंटल अमरूद भेजते थे, अब पूरा वीपी लेकर 23 टन भेजेंगे। किराया कम आएगा, माल जल्दी पहुंचेगा। हमारे जैसे छोटे कारोबारियों के लिए यह दूसरी दिवाली है। रेलवे ने सभी जोनों को सख्त हिदायत दी है कि दिसंबर से ही व्यापारियों की बैठकें शुरू करें और इस नई सुविधा की जानकारी दें। क्रिस को भी इस बदलाव का माड्यूल वेबसाइट पर तत्काल प्रभाव से संशोधित करने के लिए कहा गया है।
बोर्ड के निर्देशानुसार नियमें में दी गई ढील
सीपीआरओ शशिकांत त्रिपाठी ने बताया कि बोर्ड के निर्देशानुसार नियमों में ढील दी गई है। इससे पार्सल कारोबार कई गुना बढ़ेगा। छोटे व्यापारियों को सस्ता-तेज परिवहन मिलेगा, सड़कों पर ट्रकों का बोझ कम होगा और रेलवे की कमाई भी बढ़ेगी।
ये हुए तीन बड़े बदलाव
-पार्सल स्पेस (एसएलआर/वीपी) लीजिंग से टर्नओवर वाली सभी पात्रता शर्तें खत्म।
-जेपीपी-आरसीएस में एग्रीगेटर बनने की फीस 20,000 से घटाकर 10,000 हुई और 50 लाख टर्नओवर की शर्त खत्म।
-पीसीईटी लीजिंग टेंडर में 10 करोड़ टर्नओवर की शर्त खत्म केवल “रजिस्टर्ड लीजहोल्डर” होना काफी।
जेपीपी-आरसीएस क्या है?
जेपीपी-आरसीएस रेलवे की एक विशेष नीति है, जिसके तहत निजी कंपनियां/फर्में/व्यक्ति रेलवे के साथ मिलकर पार्सल और छोटे कार्गो की बुकिंग, पिक-अप, डिलीवरी और लास्ट-माइल कनेक्टिविटी का काम कर सकते हैं। निजी पार्टनर (एग्रीगेटर) रेलवे के पार्सल वैन (वीपी, वीपीयू, एसएएलआर आदि) में जगह बुक कर सकते हैं। वे ग्राहकों से छोटे-छोटे पार्सल (ई-कामर्स, कूरियर, कृषि उत्पाद, दूध, मछली आदि) इकट्ठा करते हैं और रेल से भेजते हैं। यह डोर-टू-डोर सर्विस दे सकते हैं। रेलवे को इससे अतिरिक्त पार्सल राजस्व मिलता है, और निजी पार्टनर को कमीशन/मार्जिन मिलता है। एग्रीगेटर बड़े स्तर पर काम करते हैं।
कई शहरों में रहता है कंनियों का नेटवर्क
इनका कई शहरों में नेटवर्क होता है पहले इसके लिए 20 हजार फीस थी, जो अब घटाकर 10 हजार कर दी गई है, जबकि पहले 50 लाख का टर्नओवर अनिवार्य था, इसे भी खत्म कर दिया गया है। इसके अलावा सर्विस प्रोवाइडर भी होते हैं। यह छोटे स्तर पर, लोकल लेवल पर काम करते हैं। जैसे अमेज़न, फ्लिपकार्ट, डेल्हीवरी, ब्लूडार्ट या कोई लोकल कूरियर कंपनी रेल से सस्ते में पूरे देश में पार्सल भेजना चाहे, तो वह जेपीपी-आरसीएस के तहत रजिस्टर्ड एग्रीगेटर बनकर रेलवे के साथ पार्टनरशिप कर सकती है।
पार्सल कार्गो एक्सप्रेस ट्रेन क्या है
वहीं पीसीईटी यानी पार्सल कार्गो एक्सप्रेस ट्रेन वो विशेष पार्सल ट्रेनें हैं जो भारतीय रेलवे केवल पार्सल और छोटे कार्गो ढोने के लिए चलाती है। इनमें कोई यात्री डिब्बा नहीं होता – पूरी ट्रेन सिर्फ पार्सल वैन (वीपी/वीपीयू/एसएलआर) से बनी होती है। यह निर्धारित समय पर चलती हैं और 250 से 2600 टन तक पार्सल एक साथ ले जा सकती हैं ज्यादातर वीपीएच (हाई-स्पीड पार्सल वैन) से बनी होती हैं, जिनकी अधिकतम स्पीड 110-130 किमी/घंटा होती है | मुख्य रूप से बड़े शहरों के बीच (जैसे दिल्ली-मुंबई, दिल्ली-कोलकाता, दिल्ली-चेन्नई, गुवाहाटी, बेंगलुरु आदि) चलती हैं। इनका किराया सामान्य पार्सल ट्रेनों से ज्यादा, लेकिन हवाई जहाज से बहुत सस्ता होता है। पहले इसके लिए व्यापारी के लिए कम से कम 10 करोड़ सालाना टर्नओवर होना जरूरी था। लेकिन अब सिर्फ रजिस्टर्ड लीजहोल्डर होना काफी है। 10 करोड़ टर्नओवर की शर्त हटा दी गई है।
कैसे मिलेगी व्यापारी को सुविधा
पीसीईटी के लिए रेलवे ओपन टेंडर निकालता है। जो पार्टी सबसे ज्यादा किराया (लंपसम या प्रति ट्रिप) देने को तैयार होती है, उसे तीन से पांच साल के लिए पूरी ट्रेन लीज पर दे दी जाती है। लीज लेने वाला खुद पार्सल बुक करता है, लोडिंग-अनलोडिंग करवाता है और पूरा बिजनेस चलाता है। रेलवे सिर्फ ट्रेन चलाता है और तय किराया लेता है। यानी पीसीईटी पूरी की पूरी ट्रेन निजी पार्टी को लीज पर दी हुई हाई-स्पीड पार्सल ट्रेन है, जिसमें सिर्फ और सिर्फ पार्सल ही ढोया जाता है।

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