टमाटर को सड़ने से रोकेगी नींबू-संतरे के छिलके से बनी हर्बल कोटिंग, इसे तैयार कर रहे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शोधकर्ता
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शोधकर्ता टमाटर को सड़ने से बचाने के लिए नींबू और संतरे के छिलकों से हर्बल कोटिंग बना रहे हैं। यह प्राकृतिक कोटिंग फफूंदनाशकों की जरूरत को कम करेगी और कचरे को उपयोगी संसाधन में बदलेगी। इस परियोजना से किसानों को फायदा होगा और रासायनिक दवाओं पर निर्भरता कम होगी। यह तकनीक पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित है।

टमाटर को सड़ने से रोकने के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शोधकर्ता नींबू-संतरे के छिलके से हर्बल कोटिंग बना रहे हैं।
मृत्युंजय मिश्र, प्रयागराज। अब टमाटर को सड़ने से बचाने के लिए रासायनिक दवाओं की नहीं, बल्कि संतरा और नींबू की खुशबू का सहारा लिया जाएगा। शोधकर्ता संतरा और नींबू के छिलकों से मिलने वाले एसेंशियल आयल से प्राकृतिक हर्बल कोटिंग तैयार कर रहे हैं, जो टमाटक को जल्द सड़ने से बचाएगी।
कचरे को भी उपयोगी संसाधन में बदला जाएगा
यह कोटिंग पूरी तरह प्राकृतिक और पर्यावरण-अनुकूल होगी, जिससे रासायनिक फफूंदनाशकों की जरूरत कम पड़ेगी। शोध का एक और दिलचस्प पहलू यह है कि इससे फलों के छिलकों जैसे फेंके जाने वाले कचरे को भी उपयोगी संसाधन में बदला जाएगा। यानी जो पहले बेकार माना जाता था, वही अब किसानों और उद्योगों के लिए फायदेमंद साबित होगा।
वनस्पति विज्ञान विभाग के डा. संजय को जिम्मेदारी
इस महत्वपूर्ण परियोजना की जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश परिषद विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (यूपी-सीएसटी) ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय वनस्पति विज्ञान विभाग के डा. संजय कुमार केवट को सौंपी है। उनके साथ सहायक प्रोफेसर डा. सुनील कुमार सिंह भी शामिल हैं।
टमाटर पर लगने वाले कवकीय रोग का पता चल सकेगा
प्रधान अन्वेषक डा. केवट के अनुसार संतरा और नींबू के छिलकों से एसेंशियल आयल का निष्कर्षण, मात्रात्मक विश्लेषण और रासायनिक संरचना की पहचान कर इन तेलों के कवकरोधी गुणों का परीक्षण किया जाएगा ताकि यह पता लगाया जा सके कि वे टमाटर पर लगने वाले प्रमुख कवकीय रोगों, जैसे अर्ली ब्लाइट, विल्ट और लेट ब्लाइट के विरुद्ध कितने प्रभावी हैं।
फसलों में रासायनिक अवशेष की समस्या बढ़ी
यह शोध के पीछे की वजह बताते हुए डा. केवट कहते हैं कि टमाटर की फसल में कवक जनित रोगों से औसतन 40 से 70 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है, जिसके कारण किसान रासायनिक फफूंदनाशकों का अत्यधिक प्रयोग करते हैं। इससे पर्यावरण प्रदूषण, मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट और फसलों में रासायनिक अवशेष की समस्या बढ़ रही है। इस समस्या का जैविक हल निकालने के लिए ही शोध शुरू किया गया है।
फफूंद की वृद्धि को रोकेगी
इसमें चिटोसान जैसे प्राकृतिक बायोपालिमर की सहायता से एसेंशियल आयल आधारित कोटिंग तैयार की जाएगी। यह कोटिंग फलों पर एक पतली हर्बल परत बनाकर उनकी ताजगी और शेल्फ लाइफ को बढ़ाएगी, साथ ही फफूंद की वृद्धि को रोकेगी। संतरे और नींबू के छिलकों में पाए जाने वाले यौगिक लिमोनीन और सिट्राल में शक्तिशाली कवकरोधी गुण पाए जाते हैं, जो फलों की सड़न रोकने में प्रभावी साबित हो सकते हैं।
हर्बल कोटिंग तकनीक कारगर होगी
इस शोध के परिणाम किसानों के लिए लाभदायक होने के साथ-साथ फूड इंडस्ट्री, आर्गेनिक फार्मिंग और पोस्ट-हार्वेस्ट मैनेजमेंट में भी उपयोगी होंगे। डा. केवट का कहना है कि इस हर्बल कोटिंग तकनीक से भविष्य में कृषि क्षेत्र में रासायनिक फफूंदनाशकों पर निर्भरता कम होगी, पर्यावरण को संरक्षण मिलेगा और ग्रामीण स्तर पर स्टार्टअप व रोजगार सृजन के नए अवसर खुलेंगे।

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