महाकुंभ को अंधविश्वास बताने पर भड़के नागा संन्यासी, जमकर मचाया उपद्रव; तोड़ दिए युवकों के स्टॉल
Maha Kumbh मेला क्षेत्र में हैंडलाउडर के माध्यम से महाकुंभ को अंधविश्वास बताने पर कुछ नागा संन्यासी भड़क उठे। उन्होंने प्रचार करने वाले युवकों को दौड़ा लिया। मामला मेला क्षेत्र के ओल्ड जीटी पांटून पुल के समीप का बताया जा रहा है। आरोप है कि पुस्तकों का वितरण कर रहे युवकों ने महाकुंभ को अंधविश्वास बताया। इसका एक वीडियो भी वायरल हो रहा है।
जागरण संवाददाता, महाकुंभ नगर। Maha Kumbh मेला क्षेत्र में हैंडलाउडर के माध्यम से महाकुंभ को अंधविश्वास बताने पर कुछ नागा संन्यासी भड़क उठे। उन्होंने प्रचार करने वाले युवकों को दौड़ा लिया। ऐसा एक वीडियो इंटरनेट मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। हालांकि इस वीडियो की पुष्टि दैनिक जागरण नहीं करता है।
आपको बता दें कि मामला मेला क्षेत्र के ओल्ड जीटी पांटून पुल के समीप का बताया जा रहा है। गुरुवार को कई युवक मेला क्षेत्र में कुछ पुस्तकें बांट रहे थे। वह हैंडलाउडर के माध्यम से एक संस्था का प्रचार-प्रसार कर रहे थे। इसके अलावा एक पोस्टर भी लगाया था और पोस्टर में लिखा था कि ‘अंधविश्वास का मेला है, कुम्भ एक बहाना, मुक्ति चाहिए तो समझ जगाना है’।
युवकों ने महाकुंभ को अंधविश्वास
आरोप है कि पुस्तकों का वितरण कर रहे युवकों ने महाकुंभ को अंधविश्वास बताया। इसका पता चलने पर जब कुछ नागा संन्यासियों ने विरोध किया तो युवक उलझ गए। इससे नाराज नागा संन्यासियों ने युवकों के स्टॉल को गिरा दिया, सामान उठाकर फेंक दिया। घटना देख वहां कई लोगों की भीड़ जुट गई।
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इसी दौरान किसी ने मोबाइल से वीडियो बनाकर संदेश के साथ सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया जो अब तेजी से वायरल हो रहा है। एक मिनट के वीडियो में नागा संन्यासियों की नाराजगी को देखा जा सकता है। हालांकि घटना की जानकारी से पुलिस ने इन्कार किया है।
क्या है महाकुंभ मेला?
कुंभ मेला शताब्दियों से अनवरत चली आ रही उस सांस्कृतिक यात्रा का पड़ाव है, जिसमें नदियां हैं, कथाएं हैं, मिथक हैं, अनुष्ठान हैं, संस्कार हैं, सरोकार हैं और शामिल हैं हमारी अनगिनत आध्यात्मिक और सामाजिक चेतनाएं, जिनके बलबूते हम अपनी परंपराओं को बखूबी निभाते हुए अपनी बनावट और मंजावट करते आए हैं। अथक प्रवाहमान इस यात्रा में नदियों की आवाजें भी शामिल हैं, जिन्हें सुनने स्वयं कुंभ आता है तो कुंभ में शामिल होने का स्वप्न संजोए लाखों-करोड़ों लोग भी।
इस अद्भुत, अप्रतिम, अलौकिक यात्रा में शामिल होता है 12 वर्ष का इंतजार, पवित्र नदियों के पुण्य तट, नक्षत्रों की विशेष स्थिति, विशेष स्नान पर्वों की धमक, साधु-संतों की जुटान, धर्म आकाश के सभी सितारे और उनका वैभव, कल्पवासियों की आकांक्षाएं और देखते ही देखते दुनिया के सबसे बड़े अस्थायी नगर का बस जाना।
12 बरस के बाद आने वाले अपने हर पड़ाव पर यह यात्रा लोकोत्सव में बदल जाती है, जिसमें भारतीय संस्कृति कुलांचे भरती, अठखेलियां करती पूरे विश्व को स्वयं में समाहित कर लेने की ताकत दिखा देती है। सच तो यह कि इस लोकोत्सव में ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भारतीय अवधारणा सहजता से चरितार्थ होती है।
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