प्रयागराज का मलाका जेल जहां क्रांतिकारियों को दी गई फांसी, अंग्रेजी हुकूमत की बर्बरता के गवाह का रोचक है इतिहास
प्रयागराज के मलाका मुहल्ले का नामकरण एक रहस्य है। अंग्रेजों के शासनकाल में यहां मलाका जेल थी, जहाँ कई क्रांतिकारियों को फांसी दी गई। अब यह क्षेत्र स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल परिसर में है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इस मुहल्ले का नाम संत मलूक दास के नाम पर पड़ा, जबकि अन्य का कहना है कि यह मुगलों से जुड़ा है। मलाका जेल में क्रांतिकारी ठाकुर रोशन सिंह को भी फांसी दी गई थी।

प्रयागराज का मलाका मुहल्ले में अंग्रेजों के शासनकाल में जेल थी, ढेरों क्रांतिकारियों को इसी जेल में फांसी दी गई थी। जागरण आर्काइव
अमलेन्दु त्रिपाठी, प्रयागराज। संगम नगरी के लगभग प्रत्येक मुहल्ले के नामकरण में रोचक कहानी जुड़ी है। यहां साउथ मलाका मुहल्ले की बात कर रहे हें। हालांकि इसके नामकरण को लेकर कोई ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं उपलब्ध है। समग्रता में अनुमान लगाया जाता है कि इस क्षेत्र का मूल नाम मलाका था। यहां अंग्रेजों के शासनकाल में मलाका जेल स्थापित की गई थी। ढेरों क्रांतिकारियों को इसी जेल में फांसी दी गई। उन दिनों यह स्थान शहर का मध्य भाग होता था।
आइए जानें इस मुहल्ले की पहचान
शहर के पूर्वी हिस्से में स्थित यह क्षेत्र रेलवे ट्रैक के पास है जो प्रयागराज को वाराणसी और गोरखपुर से जोड़ता है। इस क्षेत्र में सरकारी इंटर कालेज और यूपी गवर्नमेंट सेंट्रल लाइब्रेरी के साथ प्रयाग संगीत समिति जैसे संस्थान भी हैं। निकट का क्षेत्र रामबाग, मलाकराज और आजाद नगर साउथ मलाका है। इस क्षेत्र में साउथ मलाका सब्जी मंडी भी विशिष्ट पहचान रखती है। शहर का एक मात्र लेडीज पार्क इसी परिक्षेत्र में है। अन्य निकटवर्ती क्षेत्रों की बात करें तो कीडगंज, जार्जटाउन, सिविल लाइंस प्रमुख हैं।
नार्थ मलाका नाम कुछ सरकारी कागजातों में है
वास्तव में साउथ मलाका कब और कैसे उत्तर दक्षिण में बंटा यह भी ज्ञात नहीं है। खास बात यह कि दक्षिण का हिस्सा साउथ मलाका के रूप में चर्चित हुआ। बंगाली टोला आज भी ऐसी बस्ती है जहां बंगाली समाज के लोग बहुतायत में रहते हैं लेकिन अब अन्य लोग भी यहां रहने लगे हैं। वर्तमान में नार्थ मलाका जैसी कोई पहचान चर्चा में नहीं है। कुछ सरकारी कागजातों में जरूर है।
SRN अस्पताल परिसर में पहले थी जेल
वर्तमान परिस्थितियों में देखें तो स्वरूपरानी नेहरू (SRN) अस्पताल परिसर में ही यह जेल हुआ करती थी। अब यह सुपर स्पेशियलिटी ब्लाक बन चुका है। नामकरण को लेकर कयास लगाया जाता है कि मलाका नाम संत मलूक दास के नाम पर पड़ा था। उन्हें मीर राघव भी कहा जाता था।
मुहल्ले का नाम संत मलूक दास से भी जोड़ते हैं
कुछ इतिहासकारों का कहना है कि शहर के बहुत से क्षेत्रों का नाम मुगलों पर केंद्रित है। कहा जाता है कि चौक के पास एक मुहल्ला बसा था जिसका नाम सराय मीर खां था, जो संभवतः संत मलूक दास के नाम पर था। समय के साथ इसका नाम बदला और इसे मलाका कहा जाने लगा।
मलाका जेल में आठ महीने रहे थे ठाकुर रोशन सिंह
नैनी सेंट्रल जेल के बारे में सभी जानते हैं। कम ही लोग होंगे जिन्हें पता हो कि संगम नगरी में एक और जेल हुआ करती थी, जो शहर के बीचोंबीच थी। वह मलाका जेल के नाम से जानी जाती थी। यहां अंग्रेजों ने बहुत से क्रांतिकारियों को कैद कर के रखा था। अब यह स्थान स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल परिक्षेत्र में शामिल हो चुका है। क्रांतिकारी ठाकुर रोशन सिंह को यहीं फांसी दी गई थी।
मलाका जेल में ही दी गई थी फांसी
इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग के प्रो. योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि क्रांतिकारी ठाकुर रोशन सिंह शाहजहांपुर में जन्मे। वह काकोरी कांड के अभियुक्त रहे। उन्हें सन 1819 के आसपास बनी मलाका जेल में फांसी दी गई थी। उन दिनों यहां दो दर्जन से अधिक बैरक हुआ करती थी। आजादी के बाद इसको सुधारगृह बना दिया गया।
जेल हटने के बाद यहां बंगला शरणार्थी रहे
वर्ष 1950 में सरकारी आदेश के बाद जेल को नैनी स्थानांतरित कर दिया गया। जेल हटने के बाद बहुत समय तक यहां बंगला शरणार्थी रहे। इसके बाद यहां गवर्नमेंट प्रेस बना। कुछ समय बाद इस स्थान को रानी बोतिया ने खरीद लिया। उनकी मौत के बाद 1962 के आसपास यहां स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल बना।
मलाका जेल के कुएं के पास था जेलर का बंगला
प्रो. तिवारी बताते हैं कि मलाका जेल में कई कुएं भी हुआ करते थे। गेट के पास ही जेलर का बंगला था। जिन्हें फांसी दी जाती थी, उन्हें छोटी-छोटी कोठरियों में रखा जाता था। क्रांतिकारियों को सीढिय़ों में बांधकर मारा जाता था। शरीर के जख्मों पर नमक से भीगे कपड़ों से दबाया जाता था। मलाका जेल में ठाकुर रोशन सिंह करीब आठ महीने रहे और कड़ी यातना झेली।

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