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    बुजुर्ग मां की थी Maha Kumbh में स्‍नान की इच्छा, बेटा बना 'श्रवण कुमार'; कंधे पर बैठाया और पूरा किया सपना

    Updated: Fri, 24 Jan 2025 04:21 PM (IST)

    Maha Kumbh 2025 महाकुंभ 2025 में श्रवण कुमार की तरह एक बेटे ने अपनी वृद्धा मां को पीठ पर लादकर संगम में डुबकी लगवाई। अमेठी जिले के महेश तिवारी ने अपनी मां की इच्छा पूरी करने के लिए यह कदम उठाया। मां के सपने को पूरा करने के लिए महेश ने प्रयागराज स्टेशन से संगम तक पैदल यात्रा की। इस दौरान उनकी पत्नी ममता त्रिपाठी ने भी उनका साथ दिया।

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    Maha Kumbh 2025: मां को पीठ पर लाद संगम पहुंचे 'श्रवण कुमार'. Jagran

    जागरण संवाददाता, महाकुंभ नगर । Maha Kumbh 2025: पुण्य की एक डुबकी की मंशा लिए करोड़ो श्रद्धालु संगम तट पर पहुंच रहे हैं। कुछ विरले ऐसे भी हैं जो अपने अशक्त माता-पिता को इस महाकुंभ में गंगा स्नान की लालसा से चले आ रहे हैं। वृद्ध-कमजोर हो चुकी मां को पीठ पर लादे ऐसे ही एक 'श्रवण कुमार' यहां पहुंचे।

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    अमेठी जिले की गौरीगंज तहसील के कुशवैरा गांव में रहने वाले किसान महेश तिवारी की मां ने मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर संगम स्नान की इच्छा जताई। यह इच्छा उनके दिल में लंबे समय से थी। हालांकि, संगम पर उमड़ी भारी भीड़ के कारण महेश उन्हें सामान्य तरीके से स्नान कराने में असमर्थ हो रहे थे। फिर भी मां के सपने को पूरा करने का उनका संकल्प अडिग था।

    प्रयागराज स्टेशन से संगम तक मां को पीठ पर लादकर पैदल यात्रा

    महेश ने अपनी मां को रेलवे स्टेशन से अपने कंधे पर बैठाया और प्रयागराज स्टेशन से संगम तक पैदल यात्रा की। वहां उन्होंने मां को संगम स्नान कराया, जिससे उनकी मां की वर्षों पुरानी इच्छा पूरी हुई। स्नान के बाद, उन्होंने मां को फिर से अपने कंधों पर बैठाया और स्टेशन तक वापस ले गए।

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    महेश की पत्नी ममता त्रिपाठी ने भी इस पूरी घटना में उनका साथ दिया, जो इस परिवार के आपसी प्रेम और समर्पण की भावना को दर्शाता है। बेटे की सेवा भावना को देखकर हर कोई अभिभूत रहा। श्रद्धालुओं ने कहा कि यह दृश्य केवल एक बेटे का अपनी मां के प्रति प्रेम नहीं, बल्कि उन सभी के लिए प्रेरणा है जो अपने माता-पिता की सेवा को बोझ मानते हैं। आज के समय में महेश तिवारी का यह कृत्य यह संदेश देता है कि असली श्रद्धा और भक्ति अपने माता-पिता की सेवा में निहित है।

    कुंभ क्षेत्र में कैदियों का भी हुनर, लगी उत्पादों की प्रदर्शनी

    महाकुंभ : जेल को आमतौर पर लोग यातना गृह समझ लेते हैं। घर के किसी सदस्य के द्वारा जाने-अनजाने अपराध होने पर जेल (कारागार) हुई तो परिवार की नींद उड़ जाती है। वास्तविक रूप में देखें तो जेल में बंदियों को सुधार के रास्ते पर लाने के लिए अनेक गतिविधियां होती हैं। कृषि कार्य, शिक्षा, उद्योग की कला का प्रशिक्षण देने से लेकर योग और खेल तक सिखाए जाते हैं।

    सेक्टर-एक में संगम टेंट कालोनी के सामने उप्र कारागार विभाग की ओर से लगाई गई प्रदर्शनी इसका अनुपम उदाहरण है जिसमें बंदियों द्वारा बनाए जाने वाले लकड़ी के उत्पाद, कालीन व अन्य सामग्री को दिखाया गया है। कारागार की प्रदर्शनी परेड में लोगों का ध्यान खींच रही है। बंदी गृह, लकड़ी की मेज, कुर्सियां, लकड़ी से ही बने मंदिर, कालीन को दिखाया गया है। इसके अलावा कारागार विभाग ने सेक्टर एक में ही लगी प्रदर्शनी में बंदियों के द्वारा बनाए गए उत्पाद को बिक्री के लिए रखा है। 

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    पिछले दो साल में प्रदेश की जेलों में निरुद्ध 15 हजार से अधिक बंदियों को अलग-अलग कला कौशल में प्रशिक्षित किया जा चुका है। इनमें प्रमुख उत्पादों का प्रदर्शन हुआ है। यहां बोर्ड पर यह भी दिखाया गया है कि जेल में कौशल विकास, कृषि एवं गौशाला, हथकरघा और कुर्सी में तांत की बिनाई, शिक्षा देने, तीज त्योहार पर उपयोग में आने वाली सामग्री बनाने, बागों में हरियाली रखने के लिए माली, आदि का प्रशिक्षण दिया जाता है।

    जेल नहीं सुधार शाला, हर विधा की पाठशाला जेल में बंदियों के सुधारात्मक कार्य के लिए विभिन्न संस्थाओं का सहयोग लिया जाता है। कौशल विकास, शिक्षक, खेती किसानी के जानकार, औद्योगिक कारीगरों को बुलाकर प्रशिक्षण उनसे ही दिलाया जाता है। जो भी उत्पाद बनते हैं उनका बंदियों को पारिश्रमिक दिया जाता है, उत्पाद को शासन के निर्देशानुसार बाजार में बिक्री के लिए भेजा जाता है।

    उद्देश्य बताते हुए जेल वार्डन देशराज सिंह ने कहा कि लोगों को जागरूक करना है कि जेल को सजा घर न समझा जाए। जेल तो सुधार शाला है जहां हर विधाएं सिखाई जाती हैं। जब बंदी की रिहाई होती है तो उसे बताया जाता है कि घर जाकर जेल में प्रशिक्षण का सदुपयोग करना है।