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    अखाड़ों का संसार: आवाहन अखाड़ा में हाथ फैलाकर भिक्षा मांगना वर्जित, सनातन की रक्षा के लिए संतों ने लड़ा था युद्ध

    Updated: Sun, 22 Dec 2024 12:11 PM (IST)

    Maha Kumbh 2025 आइए जानते हैं श्री शंभू पंचदशनाम आवाहन अखाड़े के बारे में जहाँ साधु-संत भिक्षा मांगने के बजाय अपने पुरुषार्थ से धर्म की रक्षा करते हैं। इस अखाड़े के संतों ने सदियों से मतांतरण का विरोध किया है और सनातन धर्म की रक्षा के लिए युद्ध लड़े हैं। जानिए इस अद्वितीय अखाड़े के इतिहास परंपराओं और सिद्धांतों के बारे में।

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    श्री पंचदशत नाम आवाहन अखाड़ा का नगर प्रवेश करते साधु संत। जागरण आर्काइव

    जागरण संवाददाता, महाकुंभनगर। आपने घर-घर जाकर संतों को भिक्षा (भीख) मांगते देखा होगा। हो सकता है आपने भी किसी संत को भिक्षा देकर आशीर्वाद लिया हो। भिक्षा मांगना आध्यात्मिक परंपरा का अंग है। भिक्षा में जो मिलता है साधु-संत उसी का सेवन करते हैं। अखाड़ों के नागा संतों के लिए मात्र पांच से सात घरों में भिक्षा मांगकर भोजन करने का विधान है, लेकिन श्री शंभू पंचदशनाम आवाहन की व्यवस्था उलट है।

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    इस अखाड़े के संत किसी के सामने हाथ नहीं फैलाते। अगर कोई स्वेच्छा से कुछ देता है तो ठीक है, अन्यथा भूखे रह जाएंगे। अखाड़े का मानना है कि हाथ सिर्फ ईश्वर के सामने फैलाना चाहिए। मनुष्य के आगे हाथ फैलाना स्वाभिमान के विपरीत है। उक्त अखाड़े के संतों का कहना है कि धर्म की रक्षा के लिए अपना पुरुषार्थ दिखाया है।

    धर्म विरोधी ताकतों से मोर्चा लिया और अपने प्राणों की आहुति दी। उस समय प्राणों की रक्षा के लिए किसी से भीख नहीं मांगी तो अब पेट भरने के लिए क्यों मांगें? अखाड़े के संत पूजा-पाठ में होने वाले चढ़ावे से अपना पेट भरते हैं।

    माना जाता है कि आवाहन अखाड़ा की नींव 547 ईस्वी में पड़ी। महंत रत्ना गिरि, श्रीमहंत हंस दीनानाथ गिरि, श्रीमहंत मारिच गिरि, भगहरण पुरी, उदय पुरी, गणेश पुरी, चंदन वन, ओंकार वन, हीरा भारती आदि संतों ने मिलकर अखाड़े की नींव रखी। उस समय चार से दो से तीन सौ संतों का समूह था। आदिशंकराचार्य ने अखाड़े के स्वरूप को व्यापक किया। उन्हें भाला, त्रिशूल, फरसा चलाने में परांगत किया। तब अखाड़े से 15 से 20 हजार के लगभग नागा संत जुड़े।

    श्री पंचदशत नाम आवाहन अखाड़ा का नगर प्रवेश करते साधु संत। जागरण आर्काइव


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    इसमें दो से तीन हजार संतों का अलग-अलग समूह बनाकर केरल, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार, बंगाल व उत्तर प्रदेश में भेजा गया, क्योंकि इन प्रदेशों में मतांतरण करने वालों की संख्या अधिक थी। उन्हें निर्देश दिया गया कि जिस क्षेत्र में जाएं वहां मूर्ति की स्थापना करके भजन-पूजन करें।

    मूर्ति नागा संत स्वयं बनाकर विधि-विधान से स्थापित करें। आस-पास के लोगों को एकजुट करके भजन-पूजन करें। इसके जरिए मतांतरण को रोका जाए, जिन्होंने मतांतरण किया है उनके गोत्र का पता करके वापस धर्म में वापसी कराई जाय। आक्रांता उसमें विघ्न डालें तो उनका सामना करें।

    नागा संतों ने इसका पालन करते हुए क्षेत्र की मान्यता के अनुरूप (जहां जिस देवी-देवता को मानने वालों की संख्या अधिक थी ) देवी-देवताओं की मूर्ति स्थापति किया। उस नष्ट करने जो आया उससे वीरता से युद्ध लड़ा। संतों की संख्या बढ़ने पर 1547 में अखाड़े की पुनर्स्थापना हुई।

    भिक्षा मांगने पर होती है अनुशासनात्मक कार्रवाई

    आवाहन अखाड़ा में भिक्षा मांगने पर पांबंदी है। भिक्षा मांगने का आरोप लगने पर हरिद्वार के वर्ष 2002 में श्रीमहंत कौशल गिरि व 2005 में श्रीमहंत हरिश्वरानंद पुरी, वर्ष 2011 में नासिक के श्रीमहंत रत्नानंद गिरि, 2013 में जयपुर के श्रीमहंत शंकर भरती, 2014 में काशी के महंत नित्यानंद पुरी, 2019 में प्रयागराज के महंत जगदीश्वर पुरी, 2021 में महंत इंद्रेश्वर भारती को अखाड़े के समस्त पदों से मुक्त कर दिया गया। ऐसे संतों को अखाड़े की व्यवस्था में नहीं रखा जाता।

    श्री पंचदशत नाम आवाहन अखाड़ा का नगर प्रवेश करते साधु संत। जागरण आर्काइव


    श्रीमहंत होते हैं कर्ताधर्ता

    आवाहन अखाड़े के कर्ताधर्ता श्रीमहंत होते हैं। इनके बाद अष्ट कौशल, थानापति व दो पंच होते हैं। इनके अलावा पांच सरदारों की नियुक्ति की जाती है। इसमें कोतवाल, भंडारी, कोठारी, कारोबारी और पुजारी होते हैं। आवाहन अखाड़ा में शामिल होने से पहले व्यक्ति को मन, कर्म और वचन से शुद्ध होना पड़ता है। संन्यास मिलने के बाद गुरु की सेवा सर्वोपरि होती है।

    व्यक्ति को संसार के समस्त सुखों को त्यागना पड़ता है। जो ऐसा नहीं करता उसे अखाड़े से बाहर कर दिया जाता है। कड़ा अनुशासन होने के कारण अखाड़े में संतों की संख्या पहले की अपेक्षा कम है। मौजूदा समय 15 हजार के लगभग संत हैं। इसमें 12 हजार नागा संत हैं। महामंडलेश्वर सात हैं।

    महाकुंभ को लेकर नाव में की गई चित्रकारी। सौ. सूचना विभाग


    पहले नाम था आवाहन सरकार

    श्री शंभू पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा का नाम आवाहन सरकार था। यह नाम इसलिए पड़ा कि धर्म की रक्षा के लिए नागा संत युद्ध का आवाहन करते थे। अखाड़े का उद्देश्य सदैव धर्म की रक्षा करना रहा है। वर्तमान समय में यह इसी उद्देश्य पर काम कर रहा है।

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    मतांतरण के खिलाफ अखाड़े के संत मुहिम चला रहे हैं। वर्ष 1547 में अखाड़े की पुनर्स्थापना होने पर नाम में परिवर्तन किया गया। इसके बाद श्री शंभू पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा नाम पड़ा। यह जूना अखाड़ा के साथ चलता है। इसके संत कुंभ-महाकुंभ में राजसी (शाही) स्नान जूना अखाड़ा के साथ करते हैं।

    यह है खास

    • इष्टदेव : सिद्ध गणेश भगवान
    • धर्मध्वजा : भगवा रंग
    • आश्रम : प्रयागराज, काशी, उज्जैन, नासिक, हरिद्वार
    • मुहिम : मतांतरण के खिलाफ अखाड़ा अभियान चला रहा है।

    स्थापना काल से आवाहन अखाड़ा सनातन धर्म की रक्षा के लिए संघर्षरत है। हमारे अखाड़ा के संतों ने मुगलों, अफगानियों और अंग्रेजों से युद्ध करके मठ-मंदिरों के साथ सनातन धर्मावलंबियों की रक्षा की है। अखाड़े में भिक्षा मांगना वर्जित है। हम इसे स्वाभिमान के विपरीत मानते हैं। भिक्षा मांगने वाले संत के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाती है।-श्रीमहंत सत्य गिरि, राष्ट्री महामंत्री श्री शंभू पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा