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    Mahakumbh 2025: 'गंगा मइया की महिमा है, आराम से कटते हैं दिन', कल्पवासी शिविरों में लोगों को म‍िला नया परिवार

    Updated: Fri, 17 Jan 2025 03:17 PM (IST)

    महाकुंभ मेले में जहां साधु-संतों नागा बाबाओं का जमावड़ा लगा है वहीं दूसरी ओर कल्‍पवासी श‍िव‍िरों में रह रहे लोग भी आकर्षण का केंद्र बने हैं। ओल्ड जीटी मार्ग पर कल्पवासी शिविर में कल्पवासी महिला से खास बातचीत की गई। इस दौरान उन्‍होंने बताया कि‍ यहां उनका द‍िन बेहद आराम से गुजरता है। वह यहां आईं हैं इसके पीछे गंगा मईया की कृपा मानती हैं।

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    महाकुंभ में लगे कल्पवासी शिविरों में लोगों को म‍िला नया परिवार।

    जागरण संवाददाता, महाकुंभ नगर। आइये भैया, बैठिए आराम से... यहां घर जैसा आराम नहीं मिलेगा (हंसते हुए)। यह कहते हुए शंकरगढ़ की रहने वाली गुड्डी देवी ने अपने शिविर में स्नेहपूर्वक स्थान दिया। नहीं.. नहीं... बिल्कुल आराम है यहां। यह तो मां गंगा के पास कुछ देर बैठने का दिव्य अवसर है।

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    ओल्ड जीटी मार्ग पर कल्पवासी शिविर में कल्पवासी महिला से हमारे कुछ इसी तरह के संवाद हुए। अनजान थीं गुड्डी लेकिन पल भर में परिवार की तरह हो गया माहौल। बातचीत हो ही रही थी कि का हो, गुड्डी बहिन, चलै का है प्रवचन में , कहते हुए आ गईं बबिता केसरवानी, जो कि रहने वाली थीं मध्‍य प्रदेश की।

    सातवीं बार गुड्डी देवी का कल्‍पवास

    शिविर में सज चुकी थी इन दोनों कल्पवासी महिलाओं की गृहस्थी और संकल्प माघी पूर्णिमा तक यम-नियम से रहने का। गुड्डी देवी का कल्पवास सातवीं बार है। शिविर में रसोई से लेकर पूजा स्थल तक, ज्वार बोने के लिए बन चुकी है क्यारी और लगा लिया है तुलसी का पौधा। पूजा-पाठ के बाद शिविर में भोजन की तैयारी चल रही थी।

    'सब गंगा मइया की मह‍िमा'

    क्या कुछ दिनचर्या हो गई है आप लोगों की, यह पूछने पर गुड्डी ने भोर से लेकर रात में सोने तक की पूरी गतिविधियां बताईं। कहा कि गंगा मइया की महिमा है, यहां सब आराम है। एक समय भोजन, तीन समय पूजा और एक बार गंगा स्नान की जानकारी दी। यही रेत है, जमीन पर बिस्तर और तिरपाल की छावनी।

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    कल्पवासियों में भरपूर है प्रेम भाव

    बक्से, रजाई गद्दे और एक महीने के लिए अनाज का भंडार। संगम की रेती पर डेरा डाले कल्पवासियों में प्रेम भाव ऐसा हो गया है कि घर की मोह-माया तीन दिन में ही छूट गई है। कुछ ऐसा ही माहौल रहा संगम लोअर मार्ग पर अखिल भारतीय धर्म संघ के कल्पवासी शिविर में भी।

    बतकही में व्‍यस्‍त थीं दोनों मह‍िलाएं

    नवाबगंज की अनारा देवी और बलिया निवासी ऊषा की कुटिया आसपास थी। दोनों महिलाएं व्यस्त थीं बतकही में। बात हो रही थी शिविर में व्यवस्था और सुविधा की। प्रणाम करते हुए अनारा देवी ने पास रखी कुर्सी पर आदरपूर्वक बैठाया। कल्पवास और घर में क्या अंतर पाती हैं, पूछते ही अनारा देवी ने हंसते हुए कहा कि यहां तो तपस्या है।

    एक बार करतीं हैं भोजन

    तीसरी बार कल्पवास करने आई हैं। पूजा-पाठ, सत्संग में बीतता है दिन। एक बार भोजन होता है और एक बार गंगा स्नान। घर में तो एक बार भगवान की पूजा हो जाती है फिर दैनिक कामकाज में समय बीतता है। ऊषा खुश थीं क्योंकि शिविर में अब तब उनकी सारी व्यवस्था हो चुकी थी। कहा कि गंगा मइया बुलाती हैं तो आ जाते हैं कल्पवास करने।

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