अखाड़ों का संसार: 'अटल' सिद्धांतों का अटल अखाड़ा, जहां नहीं है कोई महामंडलेश्वर
श्रीशंभू पंचायती अटल अखाड़ा अपने सिद्धांतों पर अटल है। यहाँ संन्यास की प्रक्रिया बेहद कठिन है और कोई महामंडलेश्वर नहीं है। अखाड़े में संतों की संख्या कम होने का कारण यही है। अखाड़ा सनातन धर्म की रक्षा और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ अभियान चलाता है। सेवा व साधना में खरा उतरने पर पूर्ण रूप से संन्यास देने का निर्णय होता है।

जागरण संवाददाता, महाकुंभनगर। जहां एक ओर अखाड़ों में संतों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। अलग-अलग अखाड़ों में 50 हजार से लेकर तीन लाख तक संत हैं। इसके पीछे संन्यास की प्रक्रिया लचीला होना है। वहीं, श्रीशंभू पंचायती अटल अखाड़ा की स्थिति उलट है। यह अपने सिद्धांतों पर अटल है। इसके चलते अखाड़े में संतों की संख्या कम हो रही है।
मौजूदा समय मात्र पांच सौ संत हैं, जिसमें नागा की संख्या तीन सौ के लगभग है। आश्चर्यजनक यह है कि इस अखाड़े में कोई महामंडलेश्वर नहीं हैं। इसके पीछे अखाड़े में कड़ा अनुशासन और संन्यास देने की कठिन परीक्षा है। अधिकतर उसमें असफल हो जाते हैं।
कुछ अखाड़े में रहकर गलत आचरण करते हैं तो उन्हें निष्कासित कर दिया जाता है। संन्यास लेने वाले व्यक्ति को अखाड़े में 12 वर्ष तक ब्रह्मचारी बनाकर रखा जाता है। इस दौरान सेवा व साधना में खरा उतरने पर पूर्ण रूप से संन्यास देने का निर्णय होता है।
संन्यास देने की प्रक्रिया अत्यंत कठिन है। अगर ठंड का मौसम होता है तो मौनी अमावस्या से तीन दिन पहले 108 घड़ों में पानी भरकर रखा जाता है। सुबह चार बजे उसी से स्नान करवाकर पूजन व संन्यास की प्रक्रिया पूर्ण की जाती है।
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वहीं, गर्मी के मौसम में घड़े में आग रखकर सप्ताहभर तीन-तीन घंटे की साधना कराई जाती है। दोनों मौसम में संन्यास लेने वाले व्यक्ति को रातभर तिरपाल के नीचे रहना पड़ता है। इस परीक्षा में खरा उतरने वाले को संन्यास मिलता है, अन्यथा वापस भेज दिया जाता है।
महाकुंभ मेला के आवाहन अखाड़े में धुनीं पर चाय बनाते नागा संत।-जागरण
सनातन धर्म की रक्षा, मतांतरण रोकने के लिए आदिशंकराचार्य ने शारीरिक रूप से बलिष्ठ व लड़ाके युवाओं की फौज बनायी थी। उससे जुड़ने वालों को अखाड़ा कहते हैं। आदिशंकराचार्य ने संतों का जो समूह बनाया था वह श्रीशंभू पंचायती अटल अखाड़ा है।
इसकी स्थापना वर्ष 569 ईस्वी में गोंडवाना में हुई थी। वनखंडी भारती, सागर भारती, शिवचरण भारती, अयोध्या पुरी, त्रिभुवन पुरी, छोटे रणजीत पुरी, श्रवण गिरि, दयाल गिरि, महेश गिरि जैसे धर्मगुरुओं ने अखाड़े को विस्तार दिया। उस दौर में इससे एक लाख से अधिक संत जुड़े थे।
संख्या अधिक होने के कारण संतों के कुछ समूह अलग हो गए। उन्होंने अलग-अलग नाम से अखाड़ा बना लिया, लेकिन लक्ष्य सबका एक था। आक्रांताओं से मिलकर लड़ते थे। आज भी उसी के अनुरूप सबकी मुहिम चल रही है। संतों के अलग होने से अटल अखाड़ा की संख्या घटती गई।
योग्य संत न मिलने से नहीं बना रहे महामंडलेश्वर
12 अखाड़ों में महामंडलेश्वरों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। अधिकतर अखाड़ों में सौ से अधिक महामंडलेश्वर हैं, लेकिन अटल ऐसा अखाड़ा है जिसमें कोई महामंडलेश्वर नहीं है। महामंडलेश्वर के योग्य अखाड़े को संत नहीं मिले, जिसकी वजह से वह पद खाली रखा है। इसमें धन व वैभव देखकर किसी को महामंडलेश्वर नहीं बनाया जाता। अखाड़े के संविधान के अनुसार वेद-पुराणों के ज्ञाता, तपस्वी, परोपकारी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति को महामंडलेश्वर बनाया जा सकता है। अखाड़े का कहना है कि ऐसा संत उन्हें नहीं मिला है। वहीं, कुंभ 2019 में स्वामी विश्वात्मानंद सरस्वती आचार्य महामंडलेश्वर बनाया गया।
महाकुंभ मेला के आवाहन अखाड़े में बैठे संत।-जागरण
सचिव व उपसचिव कर्ताधर्ता
अटल अखाड़ा में सभापति अर्थात अध्यक्ष का पद नहीं है। सचिव व उपसचिव अखाड़े के कर्ताधर्ता होते हैं। अखाड़े में एक सचिव, एक उपसचिव, चार श्रीमहंत, चार कारोबारी, चार कोतवाल के अलावा चार सदस्य होते हैं। इनके अलावा कोठारी,भंडारी व पुजारी का पद है। पदाधिकारियों का चुनाव छह वर्ष में कुंभ-महाकुंभ में किया जाता है। इसमें मढ़ी का संबोधन दावा के रूप में किया जाता है।
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तपस्या न करने पर हो जाते हैं निष्कासित
हर अखाड़ा का लक्ष्य होता है कि उसकी संपत्ति व प्रभाव बढ़े। इसके लिए सभी प्रयासरत रहते हैं, लेकिन अटल अखाड़ा की व्यवस्था उलट है। इस अखाड़े में जनकल्याण के लिए जप-तप करना सर्वोपरि है। जो संत तपस्या नहीं करते, उन्हें निष्कासित कर दिया जाता है। अखाड़े के समस्त संतों को प्रतिवर्ष गर्मी के महीने में घड़े में आग रखकर 40 से 41 दिनों तक धूप में बैठकर तप करना अनिवार्य है। प्रतिदिन तीन से चार घंटे तक आराध्य के नाम का जप करना होता है। मान्यता है कि ऐसा करने से जनकल्याण की कामना शीघ्र पूर्ण होती है।तपस्या न करना अखाड़े में अनुशासनहीनता मानी जाती है। ऐसे संतों अखाड़े से निष्कासित किया जाता है। आंकड़े के अनुसार प्रतिवर्ष तीन से पांच संत तपस्या न करने पर निष्कासित हाेते हैं।
खास-बात
- आराध्य : श्रीआदिगुरु गजानन
- धर्मध्वजा : गेरुआ
- आश्रम : काशी, प्रयागराज, हरिद्वार, जूनागढ़, उज्जैन, नासिक, बड़ोदरा
- लक्ष्य : सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार
सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ चला रहे अभियान
अटल अखाड़ा से जुड़े संत सनातन धर्म का प्रचार करने के साथ सामाजिक कुरीतियों को दूर करने की मुहिम चला रहे हैं। दहेज प्रथा, छुआछूत व मतांतरण के खिलाफ अखाड़े के संत सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। इसके अलावा परिचर्चा, संवाद व प्रवचन के जरिए अशिक्षा को खत्म करने, वैदिक शिक्षा का प्रचार-प्रसार में जुटे हैं।
श्रीशंभू पंचायती अटल अखाड़ा आदिशंकराचार्य के नीति-निर्देशों पर चलता है। उन्होंने संन्यास की जो परंपरा बनाई है, हम उसका पालन कर रहे हैं। हमारे अखाड़े में संन्यास की प्रक्रिया अत्यंत कठिन है। अधिकतर व्यक्ति उसमें खरे नहीं उतर पाते। इससे हमारे संतों की संख्या कम है। महामंडलेश्वर पद की गरिमा के अनुरूप कोई संत नहीं मिले, इसी कारण अखाड़ा ने उसे खाली रखा है। -श्रीमहंत बलराम भारती, सचिव श्रीशंभू पंचायती अटल अखाड़ा
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