Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    अखाड़ों का संसार: आनंद अखाड़ा में भौतिक 'आनंद' वर्जित, अनुशासन और त्याग ही जीवन का मूलमंत्र

    Updated: Sat, 21 Dec 2024 04:47 PM (IST)

    आनंद अखाड़ा में सांसारिक सुख-सुविधाओं का त्याग और कठोर अनुशासन का पालन किया जाता है। फिल्म देखना और फिल्मी गाने सुनना यहाँ वर्जित है। इस नियम को तोड़ने पर कई संतों को निष्कासित किया जा चुका है। आनंद अखाड़े के अध्यक्ष श्रीमहंत शंकरानंद सरस्वती का कहना है कि अखाड़े में सनातन धर्म के प्रति समर्पण और धार्मिक गतिविधियों में लिप्त रहना सर्वोपरि है।

    Hero Image
    तपोनिधि श्री पंचायती आनंद अखाड़ा की समीक्षा बैठक में शामिल संत। जागरण आर्काइव

    जागरण संवाददाता, महाकुंभनगर। परंपरा, प्रतिष्ठा और अनुशासन। ये स्तंभ हैं तपोनिधि श्री पंचायती आनंद अखाड़ा के। समस्त संत इस आदर्श को आत्मसात करके जीवन व्यतीत करते हैं। अखाड़े में फिल्म देखना व फिल्मी गाने सुनना अक्षम्य अपराध है। फिल्म देखने पर आठ वर्ष में दर्जनभर संत निष्कासित हो गए।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    अखाड़े का मानना है कि फिल्मों में अश्लीलता रहती है, जबकि संत का जीवन त्याग व संयम में रमा होता है। संत जीवन में मनोरंजन करना प्रतिबंधित है। प्रभु का भजन, उनकी भक्ति ही सबसे बड़ा मनोरंजन है। इसका कड़ाई से पालन किया जाता है। अखाड़ा संख्या बढ़ाने के बजाय अपनी परंपरा का ईमानदारी से पालन करने पर विश्वास रखता है। अखाड़ा में धन व वैभव को प्राथमिकता नहीं देता।

    संन्यास तपस्वी व धर्म के प्रति समर्पित लोगों को दिया जाता है। कड़ा नियम होने के कारण अखाड़े में संतों की संख्या बढ़ने के बजाय घट रही है। मौजूदा समय लगभग दो हजार संत है। इसमें एक हजार के लगभग नागा हैं। वहीं, महामंडलेश्वर मात्र पांच हैं।

    महाकुंभ की तैयारी को लेकर भरद्वाज आश्रम कॉरिडोर की दीवार पर भगवान श्रीराम व भरद्वाज ऋषि की प्रतिमा स्थापित की गई है। जागरण


    तपोनिधि श्री पंचायती आनंद अखाड़ा की स्थापना 856 ईस्वी में महाराष्ट्र के विदर्भ (तब बरार) में हुई है। कथा गिरि, हरिहर गिरि, रामेश्वर गिरि, देवदत्त भारती, शिव श्याम पुरी, श्रवण पुरी नामक संतों ने मिलकर अखाड़े की नींव रखी। जैसा कि अखाड़े में तपोनिधि शब्द जुड़ा है उसके अनुरूप सनातन धर्म की रक्षा के लिए तपस्वी लोगों को जोड़ा गया।

    इसे भी पढ़ें-Prabhat Pandey Death Case: राहुल गांधी ने प्रभात के पिता से की बात, कहा- हम हैं आपके साथ

    स्थापना के तीन वर्ष बाद अखाड़े 10 हजार से अधिक संत जोड़े गए, उमसें नागा संतों की संख्या आठ हजार के लगभग थी। आनंद अखाड़ा दशनामी संन्यास परंपरा का पालन करता है। भारत में मुगल सल्तनत काल में सनातन धर्म और उसे मानने वालों को अपमान का सामना करना पड़ा था।

    भय व लोभ के माध्यम से मतांतरण कराया जाता था। तब अखाड़े के नागा संतों ने उसके खिलाफ आवाज उठाई, साथ ही अपने युद्ध कौशल से उसकी रक्षा की। खिलजी साम्राज्य के समय अखाड़े ने हिंदू धर्म रक्षा के बहुत से काम किए और धार्मिक प्रतीक चिह्नों व मठ-मंदिरों की रक्षा की।

    महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश व बिहार के विभिन्न क्षेत्रों के गांवों में प्रवास करके आक्रांताओं से मोर्चा लिया। इसमें नागाओं ने शत्रुओं को पराजित किया। अलग-अलग युद्ध में पांच हजार से अधिक नागा संतों ने प्राणों की आहुति दी।

    महाकुंभ की तैयारी को लेकर मेला क्षेत्र सेक्टर-8 में चकर्ड प्लेट बिछाते श्रमिक। जागरण


    फिल्म देखने पर इनके खिलाफ हुई कार्रवाई

    आनंद अखाड़ा में सुख-सुविधा का भोग करना वर्जित है। अखाड़े जप-तप पर विश्वास रखता है। हर संतों को उसका पालन करना अनिवार्य है। यहां तक कि किसी संत को उनके कमरे में व्यक्तिगत टीवी रखने की पाबंदी है। कच्छ में अखाड़े के आश्रम में रहने वाले महंत प्रेम भूषण गिरि के कमरे में जनवरी 2016 में टीवी और फिल्मों के कैसेट पाए गए। उन्हें और उनके साथ रहने वाले अमरेंद्र पुरी को निष्कासित कर दिया गया।

    जुलाई 2017 में उज्जैन के सोमेश्वर सरस्वती, राजेश्वर पुरी, महेशानंद गिरि आश्रम में फिल्म देखते पाए गए। अखाड़े के पंचों ने उन्हें निष्कासित कर दिया। अप्रैल 2020 में नासिक आश्रम में महंत राजेंद्रानंद, विनोदानंद पुरी, मोहितानंद गिरि तेज आवाज में फिल्मी गाना सुनते हुए पाए गए। इसका वीडियो प्रसारित हुआ तो अखाड़े ने उन्हें निष्कासित कर दिया। बिना अनुमति के अपने कमरे में टीवी लगाने पर जून 2021 में भोपाल के महेश्वर गिरि निष्कासित हो गए।

    संन्यास देने की है कठिन प्रक्रिया

    आनंद अखाड़े में संन्यस देने की प्रक्रिया कठिन है। अखाड़े में पैरवी के आधार पर किसी को संन्यास नहीं दिया जाता। अगर कोई संत किसी को संन्यास देने की पैरवी करते हैं तो पहले संबंधित व्यक्ति के ज्ञान, धर्म के प्रति समर्पण की परीक्षा ली जाती है।

    महाकुंभ की तैयारी को लेकर मेला क्षेत्र सेक्टर-9 में बिजली के तार लगाने के लिए गिराये गए पोल। जागरण


    इसे भी पढ़ें-गोरखपुर में पशु तस्करों को पकड़ने के बनी स्ट्राइक टीम, 21 प्रवेश द्वार पर लगेंगे पिकेट

    ब्रह्मचारी बनाकर आश्रम में तीन से चार वर्ष रखा जाता है। उसमें खरा उतरने पर कुंभ अथवा महाकुंभ में संन्यास की दीक्षा दी जाती है। जहां कुंभ-महाकुंभ लगता है वहां की पवित्र नंदी में भोर में 151 बार डुबकी लगवाने के बाद पिंडदान करवाकर दीक्षा दी जाती है।

    52 मढ़ियों का प्रतिनिधित्व

    रमता पंच व श्रीमहंत चार वेदों के ज्ञाता होते हैं। आनंदवार व भूरवार सम्प्रदाय को मिलाकर बने आनंद अखाड़ा में दोनों के दो-दो श्रीमहंत होते हैं। इतने ही रमता पंच होते हैं। इनका चुनाव छह वर्ष में किया जाता है। अखाड़े में 52 मढ़ियों के संत हैं। श्रीनिरंजनी अखाड़ा के साथ इसका शिविर लगता है। बाेलचाल में यह निरंजनी अखाड़ा का छोटा भाई कहा जाता है। आनंद अखाड़े के वर्तमान आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी बालकानंद गिरि हैं।

    यह है खास

    • इष्टदेव : सूर्य नारायण भगवान
    • धर्मध्वजा : गेरुआ
    • आश्रम : काशी, प्रयागराज त्रंयबकेश्वर, नासिक, हरिद्वार, कच्छ
    • गतिविधि : वैदिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए संस्कृत विद्यालय का संचालन। मतांतरण के खिलाफ जागरूकता अभियान व पिछड़े क्षेत्रों में सेवा कार्य कराया जाता है।

    आनंद अखाड़ा में सनातन धर्म के प्रति समर्पण, धार्मिक गतिविधियों में लिप्त रहना सर्वोपरि है। इसका पालन करना हर संत के लिए अनिवार्य है। फिल्में देखना और फिल्मी गाने सुनने अखाड़े में अपराध माना जाता है। ऐसा करने पर तमाम संतों को निष्कासित किया गया है। इस नियम का पालन न करने पर आगे भी कार्रवाई की जाएगी। -श्रीमहंत शंकरानंद सरस्वती, अध्यक्ष तपोनिधि श्री पंचायती आनंद अखाड़ा