सनातन को समझना है तो आइए 'प्रयाग', महाकुंभ में मिलेगा अध्यात्म के साथ टूरिज्म का पूरा पैकेज
Maha Kumbh 2025 में सनातन धर्म के वैभव शौर्य और संस्कारों का साक्षी बनिए। संगम की रेती पर 45 दिनों के लिए एक अलौकिक संसार आकार ले चुका है। संतों-श्रद्धालुओं की भक्ति से ओतप्रोत आस्थाएं गंगा तट पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। अखाड़े विविध स्वरूपों के शिविर भक्ति विह्वल विदेशी कथाएं-प्रवचन और देव समर्पण का हिलोर मारते समंदर यह सब मिलकर एक ऐसा आध्यात्मिक वितान रच देते हैं।
श्याम मिश्रा, जागरण, महाकुंभनगर। Maha Kumbh 2025 सनातन क्या है? उसकी आत्मा क्या है? भारत को अखंड क्यों कहते हैं? यह अनेकता में एकता का देश कैसे है? यदि आप इन प्रश्नों के उत्तर जानना और समझना चाहते हैं, तो आपको किसी गुरु की आवश्यकता नहीं है और न ही किसी पुस्तक को पढ़ने में समय गंवाने की जरूरत। बस, थोड़ा समय निकालिए और आइए तीर्थराज प्रयाग।
यहां किसी स्थान पर खड़े होकर जब आप महाकुंभ के अद्भुत दृश्यों को देखेंगे, तो पाएंगे कि यही दृश्य समग्र रूप में भारत की पहचान है। मां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के त्रिवेणी तट पर तंबुओं की नगरी में सनातन के वैभव, शौर्य और संस्कार का रंग हर रोज चटख होता जा रहा है। यहां की हर धड़कन, हर रंग, हर स्वर, यही सब मिलकर अखंड भारत का चित्रण कर रहे हैं।
संगम की रेती पर 45 दिनों के लिए एक अलौकिक संसार आकार ले चुका है। महाकुंभ-2025 का आयोजन दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मेला बनने को आतुर है। संतों और श्रद्धालुओं की भक्ति से ओत प्रोत आस्थाएं गंगा तट पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं, मानो यह पवित्र स्थल एक नई ऊर्जा से जागृत हो उठा हो।
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संगम का तट अखाड़े, विविध स्वरूपों के शिविर, भक्ति विह्वल विदेशी, कथाएं-प्रवचन और देव समर्पण का हिलोर मारते समंदर यह सब मिलकर एक ऐसा आध्यात्मिक वितान रच देते हैं जिसे देख केवल निहाल हुआ जा सकता है।
Maha Kumbh Mela 2025 में भ्रमण करते संत।-जागरण
13 अखाड़ों का अद्भुत संसार
प्रयागराज आने के बाद श्रद्धालुओं की प्राथमिकता संगम तट पर डुबकी लगानी होती है। इसके बाद ही वे दूसरे दर्शनीय स्थलों की ओर उन्मुख होते हैं। हिमालय की कंदराओं और जंगलों में धूनी रमाने वाले नागा संत भी आ चुके हैं। ये बाबा और संतों के अखाड़ों की दुनिया भी श्रद्धालुओं के उत्सुकता और रोमांच का केंद्र रहती है। अखाड़ा नगर में कुल 13 अखाड़े हैं, जिनके महामंडलेश्वर, श्रीमहंत से लेकर कोतवाल तक वहां रहते हैं।
Maha Kumbh 2025: महाकुंभ नगर के काली मार्ग पर पुलिस बैरिकेडिंग। जागरण
11 कॉरिडोर वाला एकमात्र शहर
प्रयागराज में 11 गलियारा (कॉरिडोर) बनाया गया है। संगम के पास किला स्थित अक्षयवट कॉरिडोर की पौराणिक और धार्मिक मान्यता है। मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती ने इस पौधे को अपने हाथों से लगाया था। अक्षयवट के साथ ही महाकुंभ में सरस्वती कूप कॉरिडोर बनाया गया है। सरस्वती कूप के समीप लगाई गई वीणावादिनी की प्रतिमा भी लोगों को आकर्षित कर रही है।
संगम के किनारे हनुमान मंदिर कॉरिडोर से महाकुंभ की दिव्यता व भव्यता और बढ़ गई है। लगभग 11,589 वर्ग मीटर के कॉरिडोर में 535 स्क्वायर मीटर में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की तरह बड़े हनुमान मंदिर का भव्य गर्भगृह और परिक्रमा पथ बना है। गंगा से सटे दारागंज के उत्तरी छोर पर स्थित नागवासुकि अति प्राचीन मंदिर के गर्भ गृह में नाग-नागिन की 10 वीं सदी की मूर्तियां स्थापित हैं।
यहां से गंगा और कुंभ क्षेत्र की अद्भुत तस्वीर दिखाई पड़ती है। इसके अलावा अलोप शंकरी कारिडोर, पंडिला महादेव कॉरिडोर, मनकामेश्वर महादेव कारिडोर, बारह माधव कारिडोर और कोटेश्वर महादेव कारिडोर भी प्रमुख हैं।
महाकुंभ क्षेत्र का विहंगम नजारा।- जागरण
भारद्वाज ऋषि आश्रम कॉरिडोर- विश्व का पहला विश्वविद्यालय
शहर के बीचो बीच ऋग्वेद की ऋचाओं के द्रष्टा ऋषि भरद्वाज का आश्रम अवस्थित है। रामायण में वर्णन है कि प्रभु श्रीराम वनगमन के पहले माता सीता और लक्ष्मणजी के साथ भरद्वाज ऋषि का आशीर्वाद और मार्गदर्शन लेने आए थे। भरद्वाज आश्रम में रामायण काल में हजारों छात्र अध्ययन करते थे, इसे विश्व का सबसे पहला विश्वविद्यालय माना जाता है।
इसी तरह वनगमन के समय जहां से प्रभु श्रीराम ने गंगा को पार किया था, प्रयागराज स्थित उस श्रृंगवेरपुर धाम को ऐसा बनाया जा रहा कि पहुंचते ही त्रेता युग का आभास होगा। शहर से करीब 40 किमी दूर निषादराज की नगरी श्रृंगवेरपुर धाम में वनगमन के दौरान भगवान श्रीराम ने रात्रि विश्राम किया था।
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यमुना नदी के तट पर बनाए गए शिवालय पार्क में बोटिंग करते लोग। जागरण
कालिंदी के तट पर अद्भुत पार्क
यमुना नदी के तट पर दुनिया का अद्भुत शिवालय पार्क निर्मित किया गया है। यहां विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की कला,संस्कृति और सभ्यता एक साथ देखने को मिलती है। लगभग 11 एकड़ में फैला देश का पहला ऐसा पार्क है, जिसमें 12 ज्योतिर्लिंग, समुद्र मंथन, नंदी की मूर्ति आदि देखने को मिलती है।
मेला क्षेत्र के झूंसी में एक खंडहर भी है, जो उल्टा किला के नाम से मशहूर है। यह एक बहुत ऊंचा टीला है, जिसके अंदर भूमिगत सीढ़ियां हैं, जहां छोटे-छोटे कमरे है, बड़ा ही रहस्यमयी लगता है। यहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं और संगम तट और मेला क्षेत्र के विहंगम दृश्य का आनंद उठाते हैं।
महाकुंभ के दौरान संगम नगरी आने वाले पर्यटक गंगा स्नान के साथ कछुआ सेंच्युअरी का भी भ्रमण कर सकेंगे। कछुआ सेंच्युरी के भ्रमण के लिए पर्यटकों को संगम क्षेत्र से ही विशेष मोटर बोट की सुविधा मिलेगी।
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