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    Maha Kumbh 2025 की नारी शक्ति: संन्यासपथ पर ले आई मां की निशानी, इटली से खींची चली आई प्रयागराज

    Updated: Thu, 09 Jan 2025 04:35 PM (IST)

    Maha Kumbh 2025 में एंजेला गिरी की कहानी बहुत रोचक है। वह इटली के एक ईसाई परिवार में जन्मी थीं लेकिन हिंदू धर्म से प्रभावित होकर सन्यासिन बन गईं। अवधूत गीता के अध्ययन ने उनके जीवन को बदल दिया और वह भारत आ गईं। इस ग्रंथ को मां की निशानी समझकर एंजेला ने इसका अध्ययन शुरू कर दिया। जानिए उनके सफर के बारे में।

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    Maha Kumbh 2025: श्री पंचदशनाम शंभू अटल अखाड़े के बाहर धूनी के समीप बैठीं अंजना गिरी। जागरण

    जागरण संवाददाता, कुंभनगर। यह कहानी है स्वभाव से विद्रोही और हर रविवार चर्च जाने वाली इटली के सोंद्रियो शहर के ईसाई परिवार में जन्मीं एंजेला की। 17 वर्ष की उम्र में मां का निधन हुआ। एक दिन अचानक उन्हें मां के कपड़ों के बीच लिपटा मिला हिंदू धर्म का संस्कृत ग्रंथ अवधूत गीता। अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों पर आधारित दत्तात्रेय द्वारा रचित 289 श्लोकों का इस ग्रंथ को मां की निशानी समझकर एंजेला ने इसका अध्ययन शुरू कर दिया।

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    फर्राटेदार फ्रेंच लिखने-बोलने व समझने वाली एंजेला संस्कृत में थोड़ा भी दक्ष नहीं थीं। दूसरों की मदद से दो वर्ष में जब इन्होंने पूरी किताब पढ़ डाली तो वह संन्यासपथ की तरफ चल पड़ीं। 1994 में पहली बार टूरिस्ट वीजा पर भारत आईं एंजेला की पहचान अब अंजना गिरी है और पता है श्री पंच दशनाम शंभू अटल अखाड़ा। इस वक्त वह महाकुंभ में आई हैं।

    अंजना गिरी बताती हैं अवधूत गीता के अध्ययन के दौरान उनके मन में ईश्वर को जानने और सनातन धर्म को समझने की आग भड़क चुकी थी। साथियों की मदद से उन्होंने परमहंस योगानंद और जी कृष्णमूर्ति को भी पढ़ना शुरू किया। यह सब करीब तीन साल तक चलता रहा। कई किताबें उन्होंने खंगाल डाली।

    Maha Kumbh 2025 मेला क्षेत्र में बना स्नान घाट।-जागरण आर्काइव


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    वर्ष 1994 में 2 वर्ष की उम्र में वह पहली बार टूरिस्ट वीजा पर भारत आईं। दोस्तों के साथ कश्मीर और उत्तराखंड के साथ वाराणसी फिर आगरा पहुंचीं। भारत भ्रमण के दौरान गुजरात के पोरबंदर में उनकी भेंट संतोष गिरी माता से हुई। इनके जरिए वह अपने गुरु रामेश्वर गिरी बाबा से मिलीं।

    1995 में दीक्षा के बाद दो-तीन महीने तक गुरु के सानिध्य में रहकर उन्होंने आध्यात्म का ज्ञान हासिल किया। वह कहती हैं गुरु से मिलने के बाद लगा कि उनकी तलाश पूरी हो गई। गुरु का अखाड़ा होने के कारण वह भी अटल अखाड़े से जुड़ गईं। अब भगवा चोला धारण कर सनातन का प्रचार-प्रसर करती हैं।

    अखिल भारतीय वैष्णव तीनों अनी अखाड़े के छावनी प्रवेश शोभायात्रा में घोड़े पर सवार संत-महात्मा। गिरीश श्रीवास्तव


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    बेटा स्पेन में इंजीनियर

    अंजना गिरी बताती हैं कि सात साल की उम्र में पिता और 10 साल बाद 17 की उम्र में मां का साथ छूटा। इसके बाद उन्होंने शादी की। हालांकि, यह शादी ज्यादा समय तक नहीं चली। वजह, इनका मन आध्यात्म की ओर मुड़ चुका था। शादी से एक बेटा भी है। इसे उन्होंने अपने पास रखा और पढ़ाया-लिखाया। उसे साफ्टवेयर इंजीनियर बनाया, लेकिन सनातनी नाम महेश रखा। अब उनका अधिकांश समय स्पेन में बेटे के साथ बीतता है। हालांकि, वहां भी वह भगवा वस्त्र ही धारण करती हैं। जब भी भारत आती हैं तो जूनागढ़ और हरिद्वार स्थित अटल अखाड़े में ही ठहरना होता है।