Maha Kumbh 2025: सांसारिक मोह त्याग वैराग्य की राह, 1500 गृहस्थ बने नागा संन्यासी… क्या होती है इसकी प्रक्रिया?
महाकुंभ नगर में शनिवार को 1500 गृहस्थ और युवा सांसारिक मोह-माया छोड़कर वैराग्य के रास्ते पर चल पड़े। उन्होंने त्रिवेणी तट पर पिंडदान किया और नागा संन्यासी बन गए। श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा ने उन्हें दीक्षित किया और अब वे सनातन धर्म की रक्षा वैदिक परंपरा के संरक्षण और जनकल्याण के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे। यह प्रक्रिया अखाड़े के चार मढ़ियाें गिरि पुरी सरस्वती और भारती की देखरेख में हुई।

जागरण संवाददाता, महाकुंभ नगर। त्रिवेणी तट पर शनिवार को 1500 गृहस्थ व युवा सांसारिक मोह-माया छोड़ वैराग्य के रास्ते पर चल पड़े।माता-पिता सहित अपनी सात पीढ़ियों का पिंडदान कर उन्होंने नागाओं के रहस्यलोक में प्रवेश किया।
श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा ने हर-हर महादेव के उद्घोष के बीच पूरी प्रक्रिया अपनाकर उन्हें दीक्षित किया। अब इनका घर-परिवार से नाता पूरी तरह समाप्त हो गया है।
24 और 27 जनवरी को भी बनाए जाएंगे संन्यासी
सभी जीवन भर सनातन धर्म की रक्षा, वैदिक परंपरा के संरक्षण, जनकल्याण के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे। नागा बनाने का क्रम अभी जारी रहेगा। 19 जनवरी को महिलाओं को नागा बनाने की दीक्षा दी जाएगी। इसके बाद पुरुषों को 24 और 27 जनवरी को पुन: नागा संन्यासी बनाया जाएगा।
महाकुंभ में शैव अखाड़े जूना, निरंजनी, महानिर्वाणी, अटल, आनंद और आवाहन नागा संन्यासी बनाते हैं। शनिवार की सुबह गंगा के त्रिवेणी घाट पर अखाड़े के चार मढ़ियाें गिरि, पुरी, सरस्वती और भारती के नागा संन्यासी बनाने की प्रक्रिया आरंभ हुई।
रमता पंच के श्रीमहंत निरंजन भारती, रामचंद्र गिरि, मोहन गिरि और दूध पुरी की देखरेख में सबका मुंडन कराया गया। इसके बाद गंगा में मंत्रोच्चार के बीच 108 बार डुबकी लगवाई गई। फिर गंगा पूजन करके पिंडदान की प्रक्रिया आरंभ हुई।
सांसारिक रूप से मृत होने की घोषणा
सर्वप्रथम सबका मुंडन हुआ। इसके बाद गंगा स्नान करके उन्होंने पिंडदान किया। फिर अपना भी पिंडदान कर उन्होंने स्वयं को सांसारिक रूप से मृत होने की घोषणा कर दी। चारों मढ़ियों में प्रथम चरण में 1500 लोगों को नागा संन्यासी बनाया गया।
भगवान शिव के दिगम्बर भक्त नागा संन्यासी महाकुंभ में सबका ध्यान अपनी तरह खींचते हैं। यही वजह है शायद कि महाकुंभ में सबसे अधिक जनआस्था का सैलाब जूना अखाड़े के शिविर में दिखता है।
यह होती है प्रक्रिया
- नागा संन्यासी बनने वाले व्यक्ति को तीन से छह वर्ष तक परीक्षा देनी पड़ती है।
- कड़े अनुशासन में रखा जाता है। उन्हें त्याग, तपस्या, ब्रह्मचर्य के रूप में खरा उतरना पड़ता है।
- घर-परिवार से दूर रहना होता है। पूरी परीक्षा में खरा उतरता है तो उसे उसका मुंडन करके पिंडदान कराया जाता है।
- नागा बनने वाले व्यक्ति का नया नाम रखा जाता है और अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा दी जाती है।
- उन्हें तंग तोड़ यानि लिंग भंग प्रक्रिया से गुजरना होता है, जो कि गुप्त ढंग से की जाती है।
सांसारिक मोह-माया से मुक्त करने के लिए हवन
जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय मंत्री श्रीमहंत चैतन्य पुरी ने बताया कि जूना अखाड़ा में अभी 5.3 लाख से अधिक नागा संन्यासी हैं। पंचों ने उन्हें सनातन धर्म का मर्म, अखाड़े की कार्यप्रणाली, निष्ठा और नियम के बारे में बताया।
उसका पालन करने का संकल्प दिलाया। रात में सबका विजया हवन कराया गया। सांसारिक मोह-माया से मुक्त करने के लिए यह हवन कराया जाता है।
अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीमहंत नारायण गिरि ने बताया कि संन्यास लेने वालों ने एक दिन पहले अन्न त्याग दिया था। जल व एक समय फल का सेवन किया। गंगा घाट पर सुरक्षा की जिम्मेदारी अखाड़े की चारों मढ़ियाें के कोतवालों ने निभाई। हर मढ़ी के पांच-पांच कोतवाल सुरक्षा में लगे रहे। जहां अनुष्ठान चल रहा था, उसके पास जाने की अनुमति किसी को नहीं दी गई।
29 जनवरी को मिलेगा मंत्र
नागा बनने वालों को महाकुंभ के दूसरे अमृत स्नान मौनी अमावस्या पर दिगंबर गायत्री मंत्र दिया जाएगा। अखाड़े की धर्मध्वजा के नीचे आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि सबको दिगंबर गायत्री मंत्र देंगे। इसके बाद उन्हें अमृत स्नान में शामिल किया जाएगा। इसके साथ सभी अखाड़े से पूर्ण रूप से जुड़ जाएंगे।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।