Maha Kumbh में विदेशी श्रद्धालु: स्विट्जरलैंड के नवीन दास 'कृष्ण भक्ति' में लीन, हर-हर गंगे कहते हैं जर्मनी के दांते
श्रद्धालुओं और संतों के संगम के बीच कई विदेशी भक्त भी सनातन धर्म की भक्ति में डूबे नजर आ रहे हैं। इनमें से दो नाम विशेष रूप से चर्चा में हैं – स्विट्जरलैंड के नवीन दास कृष्ण भक्ति का प्रचार कर रहे हैं वहीं दांते सनातन धर्म की गहराई में डूब रहे हैं। महाकुंभ के दिव्य वातावरण से जर्मनी के दांते अत्यधिक प्रभावित हैं।

जागरण संवाददाता, महाकुंभनगर। महाकुंभ न केवल भारतीय श्रद्धालुओं के लिए, बल्कि विदेशी भक्तों के लिए भी एक आध्यात्मिक केंद्र बन चुका है। श्रद्धालुओं और संतों के संगम के बीच कई विदेशी भक्त भी सनातन धर्म की भक्ति में डूबे नजर आ रहे हैं। इनमें से दो नाम विशेष रूप से चर्चा में हैं – स्विट्जरलैंड के नवीन दास कृष्ण भक्ति का प्रचार कर रहे हैं, वहीं दांते सनातन धर्म की गहराई में डूब रहे हैं।
40 वर्षों से कृष्ण की महिमा का प्रचार कर रहे नवीन दास
स्विट्जरलैंड के रहने वाले नवीन दास इस्कॉन के अनुयायी हैं। पिछले 40 वर्षों से भगवान श्रीकृष्ण की महिमा का प्रचार कर रहे हैं। इस बार वे प्रयागराज के महाकुंभ में पहुंचे हैं, जहां वे कृष्ण चरित्र और भजनों का संग्रह वितरित कर रहे हैं। नवीन दास अपने साथ एक छोटा सा बैग लेकर चलते हैं, जिसमें वे कृष्ण भक्ति से जुड़ी पुस्तकें रखते हैं।
जो भी व्यक्ति उनसे मिलता है, उसे वे ये पुस्तकें भेंट करते हैं और यथासंभव दान देने के लिए प्रेरित करते हैं। कोई 10 रुपये, कोई 100 रुपये तो कोई इससे भी अधिक सहयोग राशि देता है। नवीन दास कहते हैं, "कृष्ण की महिमा अपरंपार है। छोटे-छोटे सहयोग से ही हम दूसरों की सहायता कर सकते हैं। यह धन न सिर्फ कृष्ण भक्ति के प्रचार में, बल्कि जरूरतमंदों की सेवा में भी लगाया जाता है।"
उनके साथ 25 लोगों की एक टीम भी है, जिनमें कई विदेशी भक्त शामिल हैं। वे विभिन्न स्थानों पर संकीर्तन, प्रवचन और कृष्ण भक्ति का प्रचार कर रहे हैं। नवीन दास ने बताया कि मेरा यह नाम मेरे गुरु से मिला और अब यही मेरी पहचान है। भारत आकर मुझे ऐसा लगता है जैसे मैं अपने आध्यात्मिक घर वापस आया हूं।
सनातन धर्म से प्रभावित जर्मनी के दांते, महाकुंभ की महिमा में हुए लीन
महाकुंभ के दिव्य वातावरण से जर्मनी के दांते अत्यधिक प्रभावित हैं। अब पूरी तरह महाकुंभ के आध्यात्मिक रंग में रंग चुके हैं। दांते एक महीने पहले भारत आए थे और तब से वे वाराणसी, अयोध्या जैसे पवित्र तीर्थ स्थलों की यात्रा करते हुए प्रयागराज पहुंचे हैं।
वे कहते हैं, "मैंने भारत की आध्यात्मिकता और महाकुंभ के बारे में बहुत सुना था, लेकिन जब मैंने इसे खुद अनुभव किया तो यह मेरी कल्पना से भी अधिक दिव्य निकला।"
महाकुंभ में प्रवेश करते ही दांते इसकी भव्यता और आध्यात्मिक ऊर्जा से अभिभूत हो गए। वे कहते हैं, "यह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आत्मा की गहरी यात्रा है। इतने लाखों लोगों का एक साथ स्नान, पूजन और ध्यान करना- यह विश्व में कहीं और संभव नहीं।"
दांते अब पूरी तरह सनातन धर्म में रम चुके हैं। वे गंगा में स्नान कर रहे हैं, साधु-संतों के साथ सत्संग कर रहे हैं और विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में भाग ले रहे हैं। वे कहते हैं, "सनातन धर्म केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है। यह ब्रह्मांड, आत्मा और परमात्मा को जोड़ने की अनंत प्रक्रिया है।"
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