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    Jagran Film Festival : फिल्मी दुनिया की सैर कराकर विदा हुआ जागरण फिल्म फेस्टिवल, दर्शकों को रिझाती रहीं फिल्में

    Updated: Mon, 29 Sep 2025 04:13 PM (IST)

    Jagran Film Festival ने प्रयागराज में फिल्मी दुनिया की झलक दिखाकर विदाई ली। फेस्टिवल में हिंदी अंग्रेजी और अन्य भाषाओं की फिल्मों का प्रदर्शन किया गया। दर्शकों ने फिल्मों को खूब सराहा और अपने अनुभव साझा किए। फिल्मों में सामाजिक संदेश प्रेरणादायक कहानियाँ और रंगकर्मियों के संघर्ष को दर्शाया गया।

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    प्रयागराज में तीन दिवसीय जागरण फिल्म महोत्सव का समापन हुआ, दर्शकों ने खूब सराहा। जागरण

    जागरण संवाददाता, प्रयागराज। विश्व के सबसे बड़े घुमंतू सिनेमा 'जागरण फिल्म फेस्टिवल' ने तीसरे और अंतिम दिन भी अपना जलवा दिखाया। हिंदी, अंग्रेजी और विदेश की अन्य भाषाओं में बनी फिल्मों ने शहरियों को सुबह से शाम तक रिझाया।

    स्टार वर्ल्ड सिनेमा (गौतम टाकीज) में डाक्यूमेंट्री 'तांत्रिक डांस' से सुबह शुरुआत हुई। यह 37 मिनट की फिल्म नेपाली भाषा में रही। रात 8.30 बजे 80 मिनट की हिंदी फिल्म 'मंडी हाउस का मेंटल' देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग दोपहर से ही इंतजार करते रहे। कई ऐसे भी दर्शक रहे जिन्हें इस फिल्म के बारे में पहले से पता था लेकिन सिनेमाघर में अब तक प्रसारण न होने के चलते प्रतीक्षा में थे कि काश फिल्म प्रयागराज में लगे तो देखें।

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    अंतिम दिन रविवार को छोटी-बड़ी 12 फिल्में दिखाई गईं। फिल्मों का समापन होने पर दर्शक, हाल से निकलते और स्टार वर्ल्ड सिनेमा परिसर से बाहर आते हुए आपस में जेएफएफ का अनुभव साझा किया। जागरण फिल्म फेस्टिवल अब अगले सप्ताह मेरठ में आयोजित होगा।

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    तांत्रिक डांस फिल्म के समापन के ठीक बाद 15 मिनट की शार्ट फिल्म खोया पाया और 11 बजे स्वाति सदाशिव काडू निर्देशित 119 मिनट की मराठी फिल्म निराजलि ने महाराष्ट्र में रहने वाली युवा लड़की को अपने सपने पूरा करने के लिए जीवटता से संघर्ष करते हुए दिखाया गया। सवा एक बजे अंग्रेजी भाषा में बनी फिल्म रोलैंड वीहैप ने फिल्म निर्माण के लिए एक वृद्ध निर्देशक में बचपन से पल रहे शौक और सफलता की कहानी दिखाई।

    यह जेएफएफ का जादुई कमाल ही था कि दोपहर से रात तक दर्जनों दर्शक कुर्सियों पर डटे रहे। बिहार से पग बढ़ाकर यूपी समेत गंगा किनारे बसे अन्य जिलों में होने वाली छठ पूजा के महत्व पर आधारित फिल्म गोल्डेन हॉरिजेन एंड रिफ्लेक्शन ने छठ मइया के प्रति लोक आस्था को बिंदुवार बताया। छात्र छात्राओं, स्थानीय लोगों, व्यापारियों और जनप्रतिनिधियों ने फिल्में देखने के लिए दूसरे जरूरी काम छोड़ दिए।

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    मुट्ठीगंज में रहने वाले गल्ला व्यापारी हरिओम, रामदाना के दुकानदार सचिन समेत अन्य लोगों ने कहा कि फिल्में देखना अब कम कर दिया है क्योंकि उनमें सामाजिकता नहीं रह गई है। दैनिक जागरण के जागरण फिल्म फेस्टिवल में जिस तरह की फिल्में दिखाई गईं वह हृदयस्पर्शी रहीं। छात्रा शिवानी जायसवाल ने कहा कि पढ़ाई के साथ फिल्में देखना भी आवश्यक है क्योंकि यह जीवन में काफी कुछ सिखाती हैं। इन्हें देखने से लगता है कि सपने हमारे भी सच हो सकते हैं। शिक्षक संतोष श्रीवास्तव ने कहा कि जेएफएफ की चयनित फिल्में समाज को कुछ न कुछ सिखाती हैं।

    हृदयस्पर्शी संवाद पर कई बार गूंजा सिनेमा हाल

    सिनेमा हाल में अधिकांश दर्शक हिंदी भाषी थे लेकिन अंग्रेजी फिल्मों से भी इनका जुड़ाव अद्भुत रहा। फिल्मों की रोचकता और उनकी कहानियों से दर्शक बंधे रहे। मन का उल्लास दैनिक कामकाज पर भारी पड़ा। जागरण फिल्म फेस्टिवल में स्टार वर्ल्ड सिनेमा हॉल रविवार को सुबह से शाम तक कई बार इतना भरा कि बाद में आने वालों को सीटें बड़ी मुश्किल से मिलीं।

    छुट्टी का पूरा अवसर भुनाने के लिए ढेरों लोग परिवार सहित पहुंचे। छात्र छात्राएं, व्यापारी, शिक्षक, अधिवक्ता, नौकरी पेशा लोगों के आवागमन का क्रम बना रहा। कोई सीन हंसी गुदगुदी भरा आया या फिर संवाद चुटकीले रहे तो खुशियों भरे शोरगुल से सिनेमा हॉल कई बार गूंजा। हृदयस्पर्शी संवाद पर सीटियां बजीं।

    जेएफएफ का हिस्सा बनने के लिए व्यस्तता के बावजूद हर वर्ग के लोग पहुंचे। बाबा जी का बाग से आए आशीष सिंह, मुट्ठीगंज से आए व्यापारी सर्वेश गुप्ता, अलोपीबाग से पहुंचे छात्र अरुण दुबे, बलुआघाट चौराहा के पास रहने वाले सतीश, आदि ने कहा कि फिल्में बड़ी रोचक थीं। दैनिक जागरण का यह आयोजन दिल को छू लेने वाला है। रात में आखिरी फिल्म पूरी हुई तो हॉल से निकलते लोगों ने अपने-अपने तरीके से फेस्टिवल की खुशियां साझा कीं।

    फिल्में देती रहीं विविध संदेश

    तांत्रिक डांस 'तांत्रिक डांस' मनोरंजक वृत्तचित्र रही। यह कार्तिक महीने में पाटन में नृत्य उत्सव पर आधारित रही। इसमें मुखौटेधारी नर्तक अपनी नृत्यकला और मनमोहक संगीत के माध्यम से देवताओं के प्रति आस्था व किंवदंतियों को जीवंत करते हैं। अध्यात्म, भक्ति, कलात्मक अभिव्यक्ति और सदियों पुरानी परंपराओं का जश्न मनाने की इसमें सीख दी गई। कहानी प्राचीन परंपराओं को जीवंत रखने के लिए प्रेरित करती रही।

    खोया पाया तीर्थराज प्रयाग में संगम के तट पर कुंभ और महाकुंभ का अनुष्ठान होता है। इसमें देश दुनिया से श्रद्धालु केवल स्नान के लिए नहीं आते, बल्कि गंगा मइया और धर्म के प्रति लोक आस्था का यह पर्व होता है। इस मेले की भीड़ में जब कहीं कोई अपने परिवार से बिछड़ जाते हैं तो उनका बदहवास हो जाना स्वाभाविक है। ऐसी परिस्थिति में मददगार बन जाता है खोया पाया केंद्र।

    फिल्म 'खोया पाया' कुंभ मेले की गहन यात्रा पर आधारित रही। भक्ति, पौराणिक कथाओं और आत्मनिरीक्षण का सम्मिश्रण करते हुए फिल्म में कुंभ के उत्सव को साधना और अंतर्मन के दर्पण के रूप में प्रस्तुत किया गया। उपेक्षा का दंश सहती रही लड़की फिल्म निर्जली की कहानी महाराष्ट्र के पारधी समुदाय की एक लड़की पर आधारित रही। जो व्यवस्था से मिलती उपेक्षा, सामाजिक कलंक और बुनियादी अधिकारों से वंचित होने के बीच शिक्षिका बनना चाहती है।