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    साइबर अपराधियों की अब खैर नहीं, IIIT इलाहाबाद बना रहा AI संचालित ट्रेसिंग टूल जो बता देगा सटीक ठिकाना

    By Jagran News Edited By: Brijesh Srivastava
    Updated: Fri, 31 Oct 2025 02:57 PM (IST)

    IIIT इलाहाबाद के वैज्ञानिक एक एआइ-संचालित साइबर-ट्रेसिंग टूल विकसित कर रहे हैं, जो साइबर अपराधियों को पकड़ने में मदद करेगा। यह टूल फोन, ईमेल और वाट्सएप जैसे माध्यमों पर आने वाले झूठे कॉल्स, साइबर ठगी और डिजिटल आतंकवाद के स्रोतों का पता लगाएगा। यह वीपीएन और टोर जैसे तंत्रों का भी पता लगाएगा, जिससे अपराधियों को पकड़ना आसान हो जाएगा। यह तकनीक सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण साबित होगी।

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    IIIT इलाहाबाद के वैज्ञानिक साइबर अपराधी को पकड़ने में सुरक्षा एजेंसियों के सहयोग को बना रहे AI संचालित साइबर ट्रेसिंग टूल।

    मृत्युंजय मिश्रा, जागरण, प्रयागराज। साइबर अपराधी अब लंबे समय तक छिप नहीं पाएंगे। आइआइआइटी इलाहाबाद के वैज्ञानिक इलेक्ट्रानिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (माइटी) के सहयोग से एक एजेंटिक एआइ-संचालित साइबर-ट्रेसिंग टूल विकसित कर रहे हैं जो फोन, ईमेल और मैसेजिंग प्लेटफार्म व्हाट्सऐप, टेलीग्राम और अन्य इंटरनेट माध्यमों पर आने वाले धमकी भरे या झूठे काल्स (हाक्स काल्स), साइबर ठगी और डिजिटल आतंकवाद के स्रोतों तक पहुंच बनाएगा।

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    इस प्रणाली की आप भी जानें विशेषता 

    यह प्रणाली केवल तार्किक विश्लेषण नहीं करेगी बल्कि वीपीएन और टोर जैसे छिपे हुए तंत्रों की डी-एनोनिमाइजेशन क्षमता का उपयोग कर वास्तविक आइपी, संभावित लोकेशन और सहायक मेटाडेटा मिनटों में उजागर कर सकेगी। छोटे-छोटे डिजिटल एजेंटों के सहयोग से यह प्राथमिकता तय करेगा, संदिग्ध ट्रैफिक फिल्टर का तरीका अपनाएगा और सुरक्षा एजेंसियों को विश्वसनीय रैंकिंग के साथ अलर्ट भेजेगा।

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    इस अनुसंधान में माइटी की एजेंसी करेगी सहयोग

    अनुसंधान में माइटी की एजेंसी इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (सर्ट-इन) भी आइआइआइटी का सहयोग करेगी। इसे करीब दो वर्ष में पूरा करना है। आने वाले समय में यह तकनीक एयरलाइंस, बैंकों और सरकारी संस्थाओं के लिए एक नया सुरक्षा कवच बन सकता है।

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    प्रो. वृजेंद्र को मिली जिम्मेदारी

    आइआइआइटी इलाहाबाद के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के प्रो. वृजेंद्र सिंह को साइबर ट्रेसिंग प्रणाली का विकास करने की जिम्मेदारी मिली है। इसमें शोध छात्र अशोक यादव और अग्रिम रे शामिल हैं। प्रो. सिंह ने बताया कि धमकी भरे या झूठे काल्स (हाक्स काल्स) का पता लगाना बेहद मुश्किल होता है क्योंकि अपराधी अपने असली स्थान को वीपीएन या टोर नेटवर्क (मुफ्त, ओपन-सोर्स ओवरले नेटवर्क) जैसे तरीकों से छुपा लेते हैं।

    एक काल ट्रेस करने में लाखों होता है खर्च 

    हर एक काल को ट्रेस करने में लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं और कई दिन लग जाते हैं। ऐसे में यह नई तकनीक इस मुश्किल को दूर करेगी। यह सिस्टम कुछ ही मिनटों में यह पहचान सकेगा कि काल या मैसेज किस रास्ते से आया, किस वीपीएन का उपयोग हुआ और कौन-सा नेटवर्क या सर्वर इसके पीछे है।

    तीन चरणों में पूरी होगी योजना

    यह परियोजना तीन चरणों में पूरी होगी। पहले चरण में धमकी के माध्यम फोन काल, ईमेल,  वाट्सएप व अन्य इंटरनेट मैसेजिंग ऐप्स का विश्लेषण होगा। दूसरे चरण में यह निर्धारित किया जाएगा कि काल या संदेश किसी वीपीएन, टोर नेटवर्क या प्राक्सी के पीछे से आया है या नहीं। इसके लिए एक बड़े पैमाने पर वीपीएन प्रोवाइडरों और मालिशियस (दुष्ट) आइपी पते का डेटाबेस तैयार किया जाएगा। नेटवर्क-ट्रैफिक फिंगर प्रिंटिंग तकनीक का उपयोग कर सामान्य और वीपीएन-आधारित ट्रैफिक अलग किया जाएगा। डार्क वेब निगरानी माड्यूल भी सक्रिय रहेगा। अंतिम चरण वास्तविक समय की निगरानी और किसने काल किया है पर आधारित होगा।

    एजेंटिक एआइ करेगा काम आसान

    इस प्रोजेक्ट के सबसे रोमांचक हिस्सा एजेंटिक एआइ है। इससे पूरे सिस्टम को इंसानों की तरह काम सोचकर करने की क्षमता मिलेगी। हाक्स काल, डिजिटल हाउस अरेस्ट में यह खुद तय करेगा कि पहले किस काल की जांच जरूरी है, टूल का प्रयोग कैसे करना है और कौन-से आइपी एड्रेस को प्राथमिकता देनी है। एजेंटिक एआइ के छोटे-छोटे 'डिजिटल एजेंट्स' होंगे।

    सब एजेंट्स मिलकर सटीक रिपोर्ट करेंगे तैयार

    कोई काल डेटा का विश्लेषण करेगा, कोई आवाज की तुलना करेगा, कोई डार्क वेब पर खोज करेगा और फिर सब एजेंट्स मिलकर एक सटीक रिपोर्ट तैयार करेंगे। जिसके आधार पर सुरक्षा एजेंसियां अपराधियों के ठिकाने पर पहुंच जाएंगी।

    टूल से सुरक्षा एजेंसियों को संभावित लोकेशन मिल सकेगी

    आइआइआइटी इलाहाबाद में सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के प्रो. वृजेंद्र सिंह का कहना है कि यह प्रणाली बहुत काम की होगी। घटनाक्रम के समय के आसपास के आइपी लाग्स और सार्वजनिक/निजी जियो-आइपी डेटाबेस से मिलान किया जाएगा। एयरलाइंस या बैंक जैसी एजेंसी द्वारा दिए गए इनपुट के साथ टूल के मानिटरिंग डेटा को मिलाकर संभावित स्रोत की विश्वसनीय रैंकिंग दी जाएगी। टूल के माध्यम से सुरक्षा एजेंसियों को वास्तविक समय में आइपी पता, संभावित लोकेशन और सहायक मेटाडेटा के साथ अलर्ट भेज सकेंगे।

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