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    पॉलिसी देने के बाद दावा खारिज नहीं कर सकती बीमा कंपनी, हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी

    Updated: Sun, 04 May 2025 11:06 AM (IST)

    इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने एक अहम केस की सुनवाई करते हुए बीमा कंपनी पर कठोर टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि बीमा कंपनी प्रीमियम वसूल करने के बाद इस आधार पर दावा खारिज नहीं कर सकती कि पॉलिसी लेते समय जरूरी तथ्य नहीं बताए गए थे। कोर्ट ने एलआइसी की कार्रवाई मनमानी बताते हुए विवादित आदेशों को खारिज कर दिया।

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    दावा खारिज करने के बीमा कंपनी व बीमा लोकपाल के आदेश रद

     विधि संवाददाता, जागरण, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि कोई बीमा कंपनी प्रीमियम वसूल करने के बाद इस आधार पर दावा खारिज नहीं कर सकती कि पॉलिसी लेते समय जरूरी तथ्य नहीं बताए गए थे। तथ्यों को छिपाने अथवा नहीं बताने के आधार पर अनुबंध को अस्वीकार नहीं किया जा सकता।

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    बीमा कंपनी पूरी जांच के बाद बीमा करती है। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की खंडपीठ ने कानपुर निवासी संतोष कुमार की याचिका निस्तारित करते हुए की है और एलआइसी को निर्देश दिया है कि वह बीमित राशि का भुगतान करे।

    कोर्ट ने कहा, यदि किसी कालम को छोड़े जाने के बावजूद बीमा कंपनी प्रीमियम स्वीकार करती है और उसके बाद पॉलिसी बांड जारी करती है तो वह बाद के चरण में बीमाधारक के दावे को अस्वीकार नहीं कर सकती। बीमाकर्ता का यह कर्तव्य है कि पॉलिसी के विवरणों को सत्यापित करे। याची की पत्नी मीरा देवी ने भारतीय जीवन बीमा निगम से 15 लाख रुपये का बीमा 16 अगस्त 2018 को एजेंट के माध्यम से कराया था।

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    इसके लिए 1,15,416 रुपये का प्रीमियम भरा गया। पालिसी में याची नामांकित (नामिनी) था। आठ जुलाई 2019 को पालिसीधारक की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई। याची ने देय बीमा राशि के लिए आवेदन किया। इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि बीमाधारक ने पालिसी के लिए आवेदन करते समय अपनी पिछली पॉलिसी के बारे में कुछ जानकारी छिपाई थी।

    हाई कोर्ट। सांकेतिक तस्वीर


    एलआइसी कानपुर के क्षेत्रीय प्रबंधक तथा सहायक सचिव/उप सचिव/सचिव, बीमा लोकपाल लखनऊ से भी याची को निराशा हाथ लगी। उसका दावा यह कहते हुए खारिज कर दिया कि शिकायत बीमा लोकपाल नियम 2017 के नियम के अनुरूप नहीं थी। याची ने इसके बाद हाई कोर्ट की शरण ली।

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    कहा कि एजेंट के अनुसार पिछली पॉलिसियों के बारे में एलआइसी को पता था और उसे प्रकट करने की आवश्यकता नहीं है। प्रतिवादियों की तरफ से कहा गया कि फार्म में कुछ कालम थे, जिन्हें पिछली पॉलिसी के विवरण के साथ भरना आवश्यक था और मीरादेवी ने उन्हें खाली छोड़ दिया था। इस तरह पॉलिसी की शर्तों का उल्लंघन किया गया है, इसलिए यह अस्वीकृत की गई है।

    खंडपीठ ने कहा कि एलआइसी ने उन खाली कालम के बारे में कोई स्पष्टीकरण मांगे बिना प्रीमियम स्वीकार कर लिया। यह देखते हुए कि याची की पत्नी की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई थी न कि अन्य बीमारियों के कारण। कोर्ट ने एलआइसी की कार्रवाई मनमानी बताते हुए विवादित आदेशों को खारिज कर दिया।