'अवमानना शक्तियों के प्रयोग से बचते हैं न्यायिक अधिकारी, इसलिए अनर्गल टिप्पणी', HC ने हर्जाने के साथ याचिका की खारिज
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ आधारहीन टिप्पणियों पर चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा कि अदालतों द्वारा अवमानना शक्तियों का प्रयोग न किए जाने से वादकारियों की आक्रामकता बढ़ रही है। एक मामले में याची पर 25 हजार रुपये का हर्जाना लगाया गया है और याचिका खारिज कर दी गई है।
विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ आधारहीन टिप्पणियों पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि अदालतों द्वारा अवमानना शक्तियों का प्रयोग न किए जाने से ऐसा हो रहा है। वादकारियों की आक्रामकता बढ़ रही है। केस की सुनवाई में देरी न्यायिक अधिकारी के दुराग्रही होने का आधार नहीं हो सकती।
अनर्गल आरोप लगा भूमि विवाद से जुड़ा केस दूसरे अधिकारी को स्थानांतरित करने की मांग में दाखिल याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की कोर्ट ने यह टिप्पणी की। कोर्ट ने याची पर पांच हजार रुपये का हर्जाना लगाते हुए कहा है कि यह राशि 15 दिनों के भीतर रजिस्ट्रार जनरल के माध्यम से हाई कोर्ट विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा कराई जाए।
याची जय सिंह ने उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता से जुड़े एक मुकदमे को अपर आयुक्त (न्यायिक) तृतीय, बरेली की अदालत से किसी अन्य सक्षम न्यायालय में स्थानांतरित करने की मांग की थी। यह स्थानांतरण आवेदन राजस्व परिषद द्वारा अस्वीकार कर दिया गया। इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई।
याची के अधिवक्ता उमेश चंद्र तिवारी का कहना था कि राजस्व बोर्ड का आदेश संक्षिप्त और सकारण नहीं था। पीठासीन अधिकारी जान बूझकर प्रार्थना पत्र पर निर्णय नहीं ले रहे थे और बार-बार सुनवाई टाल रहे थे इसलिए उनके पास से केस अन्यत्र भेजने की मांग की गई।
यह भी आरोप लगाया कि प्रतिवादियों का राजनीतिक संपर्क है और वह पीठासीन अधिकारी पर प्रभाव डाल रहे हैं। न्यायमूर्ति ने यह तो माना कि राजस्व परिषद का आदेश कारण रहित था, लेकिन स्पष्ट किया कि इसे निरस्त करने से भी परिणाम में परिवर्तन नहीं होता, क्योंकि याचिका में लगाए गए आरोप निराधार हैं।
कोर्ट ने कहा, ‘स्थानांतरण आवेदन में किए गए आरोप का कोई ठोस साक्ष्य नहीं है और न ही ऐसे परिस्थितिजन्य तथ्य हैं जो यह दिखाएं कि आदेश पक्षपाती है।’ राजनीतिक रूप से प्रभावशाली व्यक्तियों का नाम तक नहीं बताया गया, न ही उनके साथ किसी प्रकार का संबंध साबित करने के लिए कोई दस्तावेज प्रस्तुत किया गया।
न्यायमू्र्ति ने कहा, ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वर्तमान समय में वादकारी आक्रामक हो चले हैं क्योंकि किसी न किसी कारणवश कोर्ट आपराधिक अवमानना की शक्तियों का प्रयोग करने से बचती है। इसलिए यह प्रवृत्ति बढ़ रही है।’
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