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    Allahabad University आइए और देखिए आदिमानव के औजार, 22 हजार वर्ष पुरानी मातृदेवी की प्रतिमाएं, शुल्क भी जान लें

    By Jagran News Edited By: Brijesh Srivastava
    Updated: Sat, 01 Nov 2025 05:16 PM (IST)

    इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग ने आम लोगों के लिए अपना संग्रहालय खोल दिया है। यहाँ आदिमानव के औजार, मातृदेवी की प्रतिमाएं और कौशांबी सभ्यता के साक्ष्य मौजूद हैं। सोन घाटी से मिले हाथी के दांत और दरियाई घोड़े के जीवाश्म भी प्रदर्शित हैं। कौशांबी उत्खनन से प्राप्त वस्तुएं और हूण आक्रमण के साक्ष्य भी यहाँ देखे जा सकते हैं। Prayagraj News के लिए यह संग्रहालय सांस्कृतिक धरोहर का केंद्र है।

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    प्रयागराज विश्वविद्यालय के संग्रहालय में कौशांबी उत्खनन में मिली हरिति और कुबेर की प्रतिमा की जानकारी देते डा. अतुल नारायण सिंह और डा. शैलेश यादव। जागरण

    मृत्युंजय मिश्र, प्रयागराज। आदिमानव का तीन लाख वर्ष पुराना पत्थर का औजार। पास ही शीशे के केस में सजी मातृदेवी की प्रतिमा। जो मानव समाज में पहली बार प्रकृति व देवी की अवधारणा को दर्शाती है। डेढ़ से दो लाख वर्ष पहले के विशाल दरियाई घोड़े के साक्ष्य हैं, दूसरी ओर कौशांबी उत्खनन से निकले सिक्के रखे हैं, जो हूण शासक तोरमाड़ के कौशांबी में बौद्ध बिहारों पर हमले के साक्ष्य हैं। यह सब इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अब आपको दिख सकेंगे।

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    विश्वविद्यालय के संग्रहालय में आम जन देख सकेंगे धरोहर 

    इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में रखी ये सब अनमोल धरोहरे हैं। इन्हें देखने के लिए संग्रहालय के दरवाजे अब आम लोगों के लिए खोल दिए गए हैं। यह धरोहरें हैं, जो अब तक केवल शोधार्थियों के अध्ययन तक सीमित थीं।

    ऐतिहासिक स्थलों से प्राप्त अमूल्य साक्ष्य देख सकेंगे

    इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संग्रहालय में सोन और बेलन घाटी, कौशांबी, दमदमा, महदहा और सराय नाहर जैसे ऐतिहासिक स्थलों से प्राप्त अमूल्य साक्ष्य रखे गए हैं। संग्रहालय में प्रदर्शित सामग्री तीन से डेढ़ लाख वर्ष पुराने पत्थर के औजार, सोन और बेलन घाटी से मिले नवपाषाण युगीन हथियार और हड्डियों से बने औजारों का विशाल संग्रह प्रदर्शन के लिए रखा गया है।

    नौ फीट लंबे हाथी के दांत

    विशेष आकर्षण का केंद्र हैं सोन घाटी यानी मध्य प्रदेश के सीधी-सतना क्षेत्र से मिले नौ फीट लंबे हाथी के दांत, डेढ़ से दो लाख वर्ष पुराने दरियाई घोड़े (हिप्पो) और बाइसन के विशाल जीवाश्म। ये जीवाश्म इस बात के प्रमाण हैं कि लाखों वर्ष पहले भारत के इस भूभाग में जैव विविधता कितनी समृद्ध थी। दरियाई घोड़े के सिर की अस्थियां यह बताती हैं कि कभी भारत के इस क्षेत्र में हिप्पो की प्रजातियां निवास करती थीं। उनके जीवाश्म यहां अब भी अस्तित्व की कहानी कहते हैं।

    धरोहरों को देखकर उसके पीछे की कहानी को समझें

    प्राचीन इतिहास विभाग सहायक प्रोफेसर और पुरातत्वविद् डा. शैलेश यादव कहते हैं कि हमारा उद्देश्य यही है कि आम लोग इन धरोहरों को देखकर उसके पीछे की कहानी को समझें। यह संग्रहालय भारत की सांस्कृतिक स्मृति का जीवंत साक्ष्य है। दर्शक भारत की प्राचीन सभ्यता के उन आयामों से परिचित होंगे, जो अब तक केवल शोध पत्रों में सीमित थे। 

    कौशांबी उत्खनन व हूणों के आक्रमण की साक्ष्य हैं मुहरें

    संग्रहालय का दूसरा महत्वपूर्ण खंड कौशांबी उत्खनन से प्राप्त सामग्रियों को समर्पित है। यहां पर 1300 ईसा पूर्व से लेकर 600 ईस्वी तक के साक्ष्य रखे गए हैं। जिनमें सिक्के, मुहरें, आभूषण, बुद्ध की मूर्तियां, धर्मचक्र, गजलक्ष्मी, हरिति, कुबेर और मातृदेवी की प्रतिमाएं शामिल हैं। विशेष रूप से 530 ईसवीं में कौशांबी में हुए हूण शासक तोरमाड़ के आक्रमण से संबंधित मुद्राएं और मुहरें इस संग्रहालय को ऐतिहासिक दृष्टि से अमूल्य बनाती हैं। साथ ही विभिन्न पत्थरों और नगों से बने अनमोल गहने भी रखे गए हैं। 

    मातृदेवी की 22 हजार वर्ष पुरानी प्रतिमाएं रखी गईं 

    संग्रहालय में 11,600 वर्ष पुराने होलोसिन काल से लेकर आधुनिक नूतन काल तक के पुरातात्विक साक्ष्य रखे गए हैं। बेलन घाटी से मिली मातृदेवी की 17 से 22 हजार वर्ष पुरानी प्रतिमा और सोल वैली से मिली 12 हजार वर्ष पुरानी मातृदेवी की प्रतिमा मानव समाज की प्रारंभिक धार्मिक मान्यताओं का सजीव साक्ष्य हैं। यहां आने वाला दर्शक देख सकता है कि कैसे आदिमानव ने पत्थर के औजारों से शुरुआत की और धीरे-धीरे उन्नत हथियारों का निर्माण करना सीखा। 

    शोध और अध्ययन के लिए बनेगा अमूल्य केंद्र

    प्राचीन इतिहास विभाग के सहायक प्रोफेसर व कलाविद डा. अतुल नारायण सिंह कहते हैं कि अब तक यह संग्रहालय केवल अनुसंधान और शिक्षण के लिए ही समर्पित था। अब सामान्य नागरिकों को भी अपनी सभ्यता के विकासक्रम को नजदीक से देखने का अवसर मिलेगा।

    स्कूली छात्रों को 5 रुपये शुल्क देना होगा 

    इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संग्रहालय में स्कूली छात्रों के लिए पांच रुपये, स्नातक एवं परास्नातक विद्यार्थियों के लिए 10 रुपये शुल्क लगेगा। शोध छात्रों के लिए 50 का शुल्क निर्धारित है। वहीं शोध कार्य से जुड़ी फोटोग्राफी के लिए प्रति आर्टिफैक्ट 250 का शुल्क रखा गया है। वहीं, आम व्यक्ति के लिए प्रवेश शुल्क 10 रुपये निर्धारित है।

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