'हम रोएंगे तो...', फिर आंखें हो गईं नम, बैसाखी के सहारे राजस्थान से महाकुंभ पहुंचे दिव्यांग की कहानी; 37 दिन चले पैदल
महाकुंभ में राजस्थान के भिवाड़ी से बैसाखी के सहारे पहुंचे महेंद्र का आत्मविश्वास और आस्था प्रेरणादायक हैं। बिना किसी मदद के 37 दिनों में पैदल यात्रा कर प्रयागराज पहुंचे महेंद्र ने मदद अस्वीकार कर कहा मेरी मदद स्वयं महादेव कर रहे हैं। प्रथम अमृत स्नान न कर पाने का दुख जताते हुए उन्होंने महाकुंभ में ही रहने का संकल्प लिया।

जागरण संवाददाता, महाकुंभ नगर। अनाथ थोड़े न हैं, न निराश्रित हैं....महादेव हमारे हैं, मैं उनका हूं। तीर्थराज हमारे महराज हैं, हम उनकी प्रजा हैं...। हम भूखे होंगे तो वह भोजन देंगे। हम थके होंगे तो आराम देंगे। हम रोएंगे तो वह हंसाएंगे......एक ही सांस में यह पूरा वाक्य बोलते बोलते महेंद्र भावुक से हो गए।
हालांकि उस आग्रह को ठुकरा दिया कि त्रिवेणी बांध की ढाल पर चढ़ाने में मदद स्वीकार्य करेंगे। धन्यवाद के साथ बेहद कुशलता से, बिना किसी अतिरिक्त बाहरी मदद के बैशाखी के सहारे लगभग 100 मीटर चढ़ाई पार कर वह बांध के ऊपर चढ़ गए।
पहला सवाल
आत्मसम्मान से भरे महेंद्र से परिचय जाना, सवाल हुआ कि जिनके पास दोनों पैर हैं वह तो पैदल चलने की व्यवस्था पर सवाल उठा रहे हैं, आप क्या कहते हैं ? थोड़ा सा मुस्कुरा कर महेंद्र ने जवाब दिया। मेरा घर भिवाड़ी राजस्थान है। 11 दिसंबर को घर से चला था। आज 37 दिन हो गए हैं। पर न थकावट है न कोई निंदा।
दूसरा सवाल
दूसरा सवाल पूछना आवश्यक था कि आपने मदद क्यूं अस्वीकार्य कर दी। जवाब मिला विनम्रता से ""मेरी मदद तो स्वयं प्रयागराज महराज कर रहे हैं। 11 दिसंबर को चला था, यह तप था, वह पूर्ण हुआ। अब तप में किसी की सहायता तो नहीं ली जाती न...। कुछ और पूछता उससे पहले बोले प्रथम अमृत स्नान न कर पाने का बहुत दुख है लेकिन अब वह पूरे महाकुंभ अवधि में यहीं रहेंगे।
महेंद्र का परिवार
महेंद्र बताते हैं कि घर में चार भाई हैं, आते समय सबने कहा कि ट्रेन से जाएं। लेकिन जब पैर होता तो ट्रेन से आता, जब पैर नहीं तो ट्रेन से क्यों आऊं। बस निकल पड़ा महाकुंभ के लिए....। इस जन्म के सारे कष्ट कट जाएंगे और अगला जन्म सुधर जाएगा, बस यही कामना है।
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