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    Indian Air Force : प्रयागराज के मध्य वायु कमान ने आपरेशन पवन, कैक्टस और कारगिल युद्ध दिखाई है वीरता, रोचक है इतिहास

    Updated: Mon, 06 Oct 2025 04:29 PM (IST)

    Indian Air Force प्रयागराज में स्थित मध्य वायु कमान भारतीय वायुसेना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। वर्ष 1962 में स्थापित इस कमान ने भारत-नेपाल सीमा की निगरानी से लेकर आपरेशन पवन कैक्टस और कारगिल युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्राकृतिक आपदाओं में राहत कार्य भी किए। प्रयागराज की रणनीतिक स्थिति इसे युद्ध और शांति दोनों में महत्वपूर्ण बनाती है। इसका मुख्यालय बमरौली में स्थित है।

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    प्रयागराज के बमरौली स्थित मध्य वायु कमान का द्वार। फोटो जागरण

    अमरीश मनीष शुक्ल, प्रयागराज। यानी, गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र संगम का शहर। यह न केवल आध्यात्मिक केंद्र है, बल्कि भारत की रक्षा रणनीति का भी एक मजबूत किला है। मध्य वायु कमान का मुख्यालय और बमरौली वायुसेना स्टेशन इस शहर को सैन्य दृष्टि से अहम बनाते हैं।

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    वर्ष 1962 में स्थापित मध्य वायु कमान ने भारत-नेपाल सीमा की निगरानी से लेकर आपरेशन पवन, कैक्टस और कारगिल युद्ध तक अपनी वीरता और कुशलता का परचम लहराया है। प्राकृतिक आपदाओं में राहत कार्यों से लेकर वर्ष 1971 के युद्ध में पाकिस्तानी तेल भंडारों को नष्ट करने तक, इस कमान ने हर चुनौती में देश की शान बढ़ाई।

    युद्ध और शांति दोनों में गेम-चेंजर

    प्रयागराज की रणनीतिक स्थिति इसे युद्ध और शांति दोनों में गेम-चेंजर बनाती है। आठ अक्टूबर को वायु सेना दिवस है, ऐसे में मध्य वायु कमान और प्रयागराज की उस गौरवशाली यात्रा को उजागर करना उचित है, जो भारत की सुरक्षा और सेवा की नींव है। 

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    देश की रक्षा में बना ढाल

    आध्यात्म और आस्था की नगर प्रयागराज में स्थित केंद्रीय वायु कमान देश की रक्षा में किसी ढाल की तरह खड़ा है। रक्षा विभाग के प्रवक्ता विंग कमांडर देवार्थो धर ने इसके गौरवशाली इतिहास के बारे में बताया। वह कहते हैं कि भारतीय वायु सेना ने वर्ष 1950 में विस्तार किया था, जिसके बाद कमान और नियंत्रण संरचना का पुनर्गठन किया गया।

    वर्ष 1962 के चीनी आक्रमण के बाद संरचनात्मक बदलाव

    वर्ष 1947 में कोलकाता में स्थापित हुई नंबर एक आपरेशनल ग्रुप का 1958 में पुनर्जनन किया गया। इसे देश के पूर्वी और मध्य क्षेत्रों में वायु सेना के हवाई अभियानों के संगठन और पर्यवेक्षण की जिम्मेदारी सौंपी गई। वर्ष 1962 के चीनी आक्रमण के बाद संरचनात्मक बदलाव की आवश्यकता महसूस हुई। तब इस आपरेशनल ग्रुप के कार्यक्षेत्र को दो अलग-अलग कमानों में बांटा गया।

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    मार्च 1962 में केंद्रीय वायु कमान का गठन

    मार्च 1962 में केंद्रीय वायु कमान (सीएसी) का गठन हुआ। तब इसका मुख्यालय कोलकाता के रानी कुटीर में बना। इसके कंधों पर भारत-नेपाल सीमा की निगरानी की जिम्मेदारी थी। फिर, फरवरी 1966 में इसका मुख्यालय इलाहाबाद (प्रयागराज) के बमरौली में स्थानांतरित कर दिया गया। अब इसका क्षेत्र उत्तर में बर्फ से ढके हिमालयी पर्वतों से लेकर गंगा के मैदानों और मध्य भारत के उच्चभूमि तक फैला हुआ है। यह समय के साथ विकसित हुआ है। हवाई मंचों के उपयोग में बड़े बदलाव का साक्षी बना।

    सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है

    कैनबरा, स्पिटफायर, लिबरेटर, ग्नाट, मिग-25, पैकेट, एएन-32 और एमआई-4 की जगह आधुनिक और शक्तिशाली विमानों जैसे- मिराज 2000, सुखोई-30 एमकेआई, जगुआर, हाई-परफॉर्मेंस एयरबोर्न वॉर्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम, आईएल-76, एमआई-17 और उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर ने ले ली है। यह कमान देश के आकाश की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है।

    मुख्यालय सभी परिचालन गतिविधियों का केंद्र

    इसका मुख्यालय सभी परिचालन गतिविधियों का केंद्र है। इसके स्क्वाड्रन ने स्वतंत्रता के बाद सभी प्रमुख अभियानों में हिस्सा लिया है। केंद्रीय वायु कमान न केवल अपनी गौरवशाली परंपराओं को कायम रखे हुए है, बल्कि आधुनिक तकनीक और रणनीतियों के साथ राष्ट्र की सुरक्षा को और सुदृढ़ कर रहा है।

    मध्य वायु कमान ने त्वरित और प्रभावी जवाबी कार्रवाई की

    वर्ष 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध मध्य वायु कमान के लिए एक सुनहरा अध्याय रहा। जब तीन दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी वायुसेना ने भारतीय एयरबेस पर हमला किया, तो मध्य वायु कमान ने त्वरित और प्रभावी जवाबी कार्रवाई की। कैनबरा विमानों ने रात के अंधेरे में पाकिस्तान के तेल भंडारों पर हमला कर कराची में लगभग 60 प्रतिशत तेल भंडारण सुविधाओं को नष्ट कर दिया। यह एक ऐसी रणनीतिक जीत थी, जिसने युद्ध का रुख मोड़ दिया।

    दुश्मन को समर्पण के लिए मजबूर किया

    इसके अलावा, मध्य वायु कमान के एएन-12, डकोटा और पखकेट परिवहन विमानों ने 11-12 दिसंबर 1971 को तंगेल में ऐतिहासिक पैराशूट बटालियन ड्राप को अंजाम दिया। इस आपरेशन में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी क्षेत्र में 130 किलोमीटर तक घुसपैठ कर दुश्मन को समर्पण के लिए मजबूर किया। इस अभियान के लिए मध्य वायु कमान के कर्मियों को वीरता पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

    आपरेशन पवन में क्षमता का किया प्रदर्शन

    श्रीलंका में भारतीय संकल्प 1987-89 के दौरान श्रीलंका में चले आपरेशन पवन में मध्य वायु कमान ने अपनी रणनीतिक और परिचालन क्षमता का प्रदर्शन किया। मिराज-2000 विमानों ने भारतीय वायुसेना की ताकत को प्रदर्शित किया, जबकि आइएल-76, एएन-32 और एमआई-17 जैसे परिवहन विमानों ने सैनिकों की सहायता और घायलों को निकालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस अभियान ने मध्य वायु कमान की त्वरित प्रतिक्रिया और जटिल परिस्थितियों में संचालन की क्षमता को रेखांकित किया। प्रयागराज का बमरौली स्टेशन इस अभियान के लिए रसद और समन्वय का केंद्र रहा, जो इसकी रणनीतिक स्थिति को और मजबूत करता है।

    आपरेशन कैक्टस : मालदीव में त्वरित कार्रवाई

    23 नवंबर 1988 को मालदीव पर समुद्री लुटेरों के हमले ने मध्य वायु कमान को एक और मौका दिया अपनी क्षमता साबित करने का। मालदीव सरकार की अपील पर भारतीय वायुसेना ने आपरेशन कैक्टस शुरू किया। उसी रात, 44 स्क्वाड्रन के दो आइएल-76 विमानों ने 50वीं पैराशूट रेजिमेंट की एक बटालियन को आगरा से मालदीव के हुलूल एयरपोर्ट तक एयरलिफ्ट किया।

    हर चुनौतियों का किया मुकाबला

    2000 किलोमीटर की उड़ान और अंधेरे रनवे पर लैंडिंग जैसी चुनौतियों के बावजूद, मध्य वायु कमान ने मिशन को कुछ ही घंटों में पूरा किया। 24 नवंबर 1988 की रात 2:30 बजे तक हुलूल एयरफील्ड को सुरक्षित कर लिया गया। यह आपरेशन न केवल तकनीकी दक्षता का प्रदर्शन था, बल्कि भारत की क्षेत्रीय नेतृत्व क्षमता को भी दर्शाता था।

    कारगिल युद्ध: मिराज-2000 की गर्जना

    वर्ष 1999 का कारगिल युद्ध मध्य वायु कमान के लिए एक और महत्वपूर्ण पड़ाव था। इस युद्ध में मिराज-2000 विमानों ने दुश्मन के आपूर्ति भंडारों और टाइगर हिल जैसे सामरिक ठिकानों पर सटीक बमबारी कर पाकिस्तानी सेना को भारी नुकसान पहुंचाया। मिग-25 और कैनबरा विमानों ने टोही मिशनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे भारतीय सेना को रणनीतिक बढ़त मिली। मध्य वायु कमान ने इस युद्ध में न केवल हवाई रक्षा, बल्कि भू-आक्रमण मिशनों में भी अपनी श्रेष्ठता साबित की। प्रयागराज का बमरौली स्टेशन इन अभियानों के लिए एक महत्वपूर्ण लाजिस्टिक हब रहा।

    आपदा राहत में मानवीय 

    मानवता की सेवा में मध्य वायु कमानमध्य वायु कमान ने युद्ध के मैदान के अलावा प्राकृतिक आपदाओं में भी अपनी मानवीय भूमिका निभाई है। 1999 के उड़ीसा चक्रवात, 2001 के भुज भूकंप, 2004 की सुनामी, 2013 की केदारनाथ त्रासदी, 2014 की श्रीनगर बाढ़, और 2017-18 की बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की बाढ़ में इस कमान ने राहत और बचाव कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। विशेष रूप से, 2015 में नेपाल भूकंप के दौरान आपरेशन मैत्री के तहत मध्य वायु कमान ने काठमांडू और पोखरा में बड़े पैमाने पर राहत कार्य संचालित किए। यह भारतीय वायुसेना का विदेशी धरती पर सबसे बड़ा राहत अभियान था। इसके अलावा, 2004 में 23,250 फीट की ऊंचाई पर चीता हेलीकाप्टर द्वारा विश्व की सर्वोच्च लैंडिंग ने मध्य वायु कमान के स्नो टाइगर को गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में स्थान दिलाया।