प्रयागराज के गुमनाम हीरो आशीष, क्रिकेट में इन्हें क्यों मिली थी 'अमर अकबर एंथनी' की उपाधि, जानें रोचक प्रसंग
हरफनमौला क्रिकेट खिलाड़ी प्रयागराज के क्रिकेटर आशीष विस्टन जैदी अमर अकबर एंथनी के नाम से मशहूर थे। वर्ष 1999-2000 के रणजी सीजन में उनका प्रदर्शन शानदार रहा। घरेलू क्रिकेट में कमाल करने के बावजूद उन्हें अंतर्राष्ट्रीय मंच पर खेलने का मौका नहीं मिला। वर्तमान में वे यूपीसीए की सीनियर क्रिकेट कमेटी के सदस्य हैं।

जागरण संवाददाता, प्रयागराज। प्रयागराज की गलियों और मैदानों ने न जाने कितने क्रिकेट के दीवानों को जन्म दिया है। इन्हीं में से एक नाम है आशीष विस्टन जैदी का, जिन्हें उनके साथी 'अमर अकबर एंथनी' के नाम से पुकारते थे। यह उपाधि उनकी हरफनमौला प्रतिभा के लिए मिली थी बेहतरीन तेज गेंदबाज, उपयोगी बल्लेबाज और एक शानदार फील्डर। उनके नाम में हिंदू, मुस्लिम और ईसाइ तीनों धर्मों के नाम हैं, इसलिए भी यह नाम उनके लिए बिल्कुल सटीक बैठता था।
आज का प्रयागराज जिसे पहले इलाहाबाद कहा जाता था, वह जगह है जहां आशीष का जन्म 16 सितंबर 1971 को हुआ था। बचपन से ही क्रिकेट उनका जुनून था। मदन मोहन मालवीय स्टेडियम, परेड मैदान और गवर्नमेंट प्रेस मैदान की मिट्टी पर उन्होंने खूब पसीना बहाया। ये वो मैदान थे, जहाँ उनकी गेंदबाजी की धार ने बड़े-बड़े बल्लेबाजों को डरा दिया। लीग मैचों में उनका कहर ऐसा था कि अच्छे-अच्छे बल्लेबाज उनके सामने खेलने से हिचकिचाते थे।
जब 17 वर्ष के आशीष कानपुर के ग्रीन पार्क में ट्रायल देने पहुंचे, तो उनकी गेंदबाजी देखकर हर कोई हैरान रह गया। उनके बारे में कहा जाता था कि वह गेंद को "ताड़ी पिला" देते हैं, क्योंकि जब उनके हाथ से गेंद निकलती थी तो वह घूमती नहीं, बल्कि झूमती थी।
आशीष का नाम जब भी आता है, तो उनके और सचिन तेंदुलकर से जुड़ी एक मजेदार घटना ज़रूर याद आती है। आशीष बताते हैं कि उनकी पहली मुलाकात सचिन से अंडर-15 कैंप में हुई थी। आशीष ने प्रैक्टिस और मैच के दौरान सचिन पर बाउंसरों की बरसात कर दी। सचिन कई बार आउट हुए, लेकिन एक बार उन्होंने आशीष की बाउंसरों का जमकर जवाब दिया।
कई साल बाद रणजी से संन्यास लेने के बाद जब आशीष उत्तर प्रदेश टीम के मैनेजर बन गए, तब हैदराबाद में यूपी बनाम मुंबई रणजी फाइनल के दौरान उनकी दोबारा सचिन से मुलाकात हुई। जब सचिन पिच देख रहे थे, तभी आशीष भी वहां पहुंचे। आशीष बताते हैं कि उन्हें देखकर सचिन थोड़ा डर गए और मजाकिया अंदाज में बोले, भाई अब बाउंसर मत फेंकना। आशीष भी मुस्कुराए और जवाब दिया, नहीं, अब तो टीम का मैनेजर हूं। यह सुनकर सचिन जोर-जोर से हंसने लगे।
आशीष का करियर वर्ष 1988 से 2006 तक चमका। उन्होंने उत्तर प्रदेश के लिए लगातार रणजी ट्राफी खेली। उनका सबसे शानदार प्रदर्शन वर्ष 1999-2000 के रणजी सीजन में रहा, जब उन्होंने 45 रन देकर 9 विकेट लिए और पूरे सीजन में 49 विकेट चटकाए। इस साल यह तय था कि आशीष इंडिया के लिए खेलेंगे। उन्हें खुद भी यकीन था कि अबकी बार मौका मिलेगा, लेकिन उनका चयन जाने क्यों नहीं हुआ।
उनका नाम उन गुमनाम नायकों में शामिल हो गया, जिन्होंने घरेलू क्रिकेट में तो कमाल किया, पर अंतरराष्ट्रीय मंच तक नहीं पहुंच पाए। उनके 110 प्रथम श्रेणी मैचों में कुल 378 विकेट की कीमत कोई भी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेल चुका गेंदबाज ही बता सकता है, क्योंकि यह सारे विकेट आशीष ने भारतीय सरजमीं पर चटकाए थे।
वर्ष 2005-06 में, जब मुहम्मद कैफ की अगुवाई में यूपी ने रणजी ट्राफी जीती, तो आशीष ने भी टीम के साथ ट्राफी उठाई। अगले ही सीजन में उन्होंने क्रिकेट से अपनी पारी समाप्त करने की घोषणा कर दी। हालांकि उन्हें वह ऊंचाई नहीं मिली जिसके वे हकदार थे, लेकिन आज भी प्रयागराज और क्रिकेट प्रेमियों के जेहन में जैदी जीवंत रहते हैं। अब वह उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (यूपीसीए) की सीनियर क्रिकेट कमेटी के सदस्य हैं और नई प्रतिभाओं को निखारने में लगे हैं। उनका जीवन यह सिखाता है कि सच्ची सफलता सिर्फ अंतरराष्ट्रीय मंच पर ही नहीं, बल्कि अपने खेल के प्रति समर्पण और जुनून में भी होती है।
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