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    'हर दुष्कर्म पीड़िता का बयान पूरा सच नहीं माना जा सकता...' इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मंजूर की आरोपी की जमानत

    Updated: Fri, 17 Jan 2025 12:49 PM (IST)

    इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि दुष्कर्म पीड़िता के बयान को प्राथमिकता दी जानी चाहिए लेकिन हमेशा उसे ही पूरा सच नहीं माना जा सकता। अन्य साक्ष्यों का समर्थन भी होना चाहिए। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने थाना विशारतगंज बरेली में दर्ज दुष्कर्म मामले में आरोपित अभिषेक भरद्वाज की सशर्त जमानत मंजूर कर ली है।

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    इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। जागरण

     विधि संवाददाता, जागरण, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि दुष्कर्म पीड़िता के बयान को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, लेकिन हमेशा उसे ही पूरा सच नहीं माना जा सकता। अन्य साक्ष्यों का समर्थन भी होना चाहिए। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने थाना विशारतगंज बरेली में दर्ज दुष्कर्म मामले में आरोपित अभिषेक भरद्वाज की सशर्त जमानत मंजूर कर ली है। यह आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने दिया है।

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    कोर्ट ने कहा, ‘रिकॉर्ड से पता चलता है कि पीड़िता का आवेदक के प्रति झुकाव था और वह स्वेच्छा से उसके साथ गई थी। प्यार और जुनून के कारण पीड़िता ने यौन संबंध बनाने के लिए सहमति दी।’ मुकदमे से जुड़े तथ्यों के अनुसार पीड़िता ने याची व चार अन्य व्यक्तियों के विरुद्ध एफआइआर लिखाई है।

    कहा है कि उसकी शादी पांच वर्ष पूर्व हुई थी। आरोपित उसके घर आता-जाता था। उसने उसे अपने कार्यालय में नौकरी दी। फिर झांसा दिया वह उसकी सरकारी नौकरी लगवा देगा। इसके बाद पांच लाख रुपये के सोने के जेवरात ले लिए तथा नौकरी का झांसा देकर होटल में ले जाकर दुष्कर्म किया। फिर उसे कई बार लखनऊ स्थित होटल में ले गया और वहां भी दुष्कर्म किया।

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    आरोपित (याची) की तरफ से कहा गया कि पीड़िता विवाहित है। वह उसे लंबे समय से जानता है। विवाहेतर संबंध पक्षों के बीच सहमति से बना था। पीड़िता और याची के बीच विभिन्न चैट का हवाला देते हुए दर्शाया गया कि पीड़िता स्वेच्छा से और आवेदक के प्रति गहरी चिंता और झुकाव रखती थी। जब पीड़िता के पति और परिवार के अन्य सदस्यों को आवेदक के साथ पीड़िता के संबंध के बारे में पता चला तो झूठी और मनगढ़ंत कहानियों पर डेढ़ साल की देरी से प्राथमिकी लिखा दी गई।

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    पीड़िता पहले से ही विवाहित है, इसलिए शादी का वादा करने का कोई सवाल ही नहीं उठता। जहां तक तस्वीरें वायरल करने के आरोप का सवाल है तो दलील दी गई कि कोई अश्लीलता नहीं है। न्यायालय ने माना कि आरोपित के प्रति पीड़िता के झुकाव को साबित करने के लिए रिकार्ड में सामग्री उपलब्ध है। इसलिए उसके बयान पर विश्वास नहीं किया जा सकता।