Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Allahabad HC ने कहा, बार एसोसिएशनों का बिजली बकाया चुकाना राज्य सरकार का दायित्व नहीं, अधिवक्ता अपनी सुविधाओं का वहन करें खर्च

    By Jagran News Edited By: Brijesh Srivastava
    Updated: Sat, 08 Nov 2025 07:58 PM (IST)

    इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि अधिवक्ताओं को अपनी सुविधाओं का खर्च खुद उठाना चाहिए, बार एसोसिएशनों का बिजली बिल राज्य सरकार नहीं भरेगी। न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति इंद्रजीत शुक्ला की खंडपीठ ने सिविल बार एसोसिएशन बस्ती की याचिका खारिज कर दी। याचिकाकर्ताओं ने सरकार से बिजली बिल भरने का निर्देश देने की मांग की थी, जिसे कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया। कोर्ट ने कहा बार रूम, न्यायालय कक्ष की संरचना का हिस्सा नहीं हैं।

    Hero Image

    इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सिविल बार एसोसिएशन बस्ती की याचिका खारिज कर दी है। 

    विधि संवाददाता, जागरण, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि अधिवक्ताओं को अपनी सुविधाओं का खर्च वहन करना चाहिए, बार एसोसिएशनों का बिजली बकाया चुकाना राज्य सरकार का दायित्व नहीं है। इस टिप्पणी के साथ न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह तथा न्यायमूर्ति इंद्रजीत शुक्ला की खंडपीठ ने हाल ही में सिविल बार एसोसिएशन जिला बस्ती एवं अन्य की याचिका खारिज कर दी है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    याचगण की क्या थी मांग?

    याचीगण ने मांग की थी कि देय बिजली बिल जमा करने का निर्देश देते हुए राज्य सरकार के लिए परमादेश जारी किया जाए। साथ ही सरकार नियमित रूप से बिल जमा करे। एसोसिएशन ने कहा कि उसके पास भुगतान करने का साधन नहीं हैं। तत्काल कनेक्शन काटे जाने से बचने के लिए कुछ सदस्यों ने चंदा कर 1,27,000 रुपये का भुगतान किया है।

    न्यायालय के निर्णयों का उल्लेख किया  

    याचीगण की तरफ से सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन एवं अन्य बनाम बीडी कौशिक (2011) तथा मध्य प्रदेश व पंजाब उच्च न्यायालय के निर्णयों का उल्लेख किया गया। कर्नाटक हाई कोर्ट की एकलपीठ के वर्ष 1997 में एडवोकेट्स एसोसिएशन बेंगलुरु बनाम मुख्यमंत्री कर्नाटक मामले में की गई यह टिप्पणी भी रखी गई कि ‘अधिवक्ता द्वारा निभाए जाने वाले कर्तव्यों की प्रकृति सार्वजनिक है।

    याचगण ने दिया यह तर्क

    कहा गया कि किसी संघ के लिए आवास/भवन को न्यायालय परिसर का अभिन्न अंग माना जाना चाहिए। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में वकील और न्यायाधीश एक-दूसरे के पूरक हैं। उनकी तुलना न्यायरूपी रथ के दो पहियों से की जा सकती है। इस निर्णय में यह माना गया है कि सरकार के लिए बार एसोसिएशन को निश्शुल्क बिजली उपलब्ध कराना अनिवार्य है।

    कहा- बार रूम में मुफ्त बिजली के पात्र हैं

    याचीगण के अधिवक्ताओं ने यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन सदस्यों को सर्वोच्च न्यायालय चार विशाल पुस्तकालय, तीन कैंटीन, दो लाउंज, परामर्श कक्ष के रूप में कई कमरे, पार्किंग स्थल में मुफ्त बिजली दे रहा है। कहा गया कि सर्वोच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के सदस्य उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन या जिला अथवा तहसील न्यायालय बार एसोसिएशन के सदस्यों की तुलना में कहीं अधिक कमाते हैं और उन्हें उन्हें मुफ्त बिजली मिल रही है तो उच्च न्यायालय, जिला और तहसील न्यायालयों में कार्यरत सदस्य भी न्यायालय परिसर स्थित बार रूम में मुफ्त बिजली के पात्र हैं।

    स्थायी अधिवक्ता ने याचिका का विरोध किया

    राज्य सरकार की ओर से स्थायी अधिवक्ता ने याचिका का विरोध किया। कहा, ‘बीडी कौशिक मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में यह प्रावधान नहीं है कि न्यायालय परिसर के अंदर बार सदस्यों द्वारा उपयोग के लिए निर्मित भवन में बिजली के उपयोग/उपभोग के लिए शुल्क का भुगतान करने के लिए राज्य सरकार बाध्य है। बार कक्ष, न्यायालय कक्ष की संरचना का हिस्सा नहीं हैं। यह केवल सुविधा के लिए प्रदत्त बुनियादी ढांचा है। इसलिए राज्य पर बिजली के उपयोग जैसे नियमित शुल्क का भुगतान करने की कोई बाध्यता नहीं है।

    यह भी पढ़ें- Allahabad High Court : ग्राम प्रधान के खिलाफ आपराधिक केस कार्रवाई रद, वोटर लिस्ट में छेड़छाड़ कर 42 नाम जोड़ने का था आरोप

    यह भी पढ़ें- संविदा रोडवेजकर्मी के इनामी हत्यारोपित को पनाह देने वालों पर भी केस, प्रयागराज में ईंट-पत्थर से कूंचकर की थी निर्मम हत्या