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    नोएडा बिना कब्जा दिए लीज रेंट नहीं वसूल सकता, इलाहाबाद हाई कोर्ट का बड़ा फैसला

    Updated: Sat, 27 Dec 2025 08:51 AM (IST)

    इलाहाबाद हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि नोएडा अथॉरिटी बिना वास्तविक कब्जा दिए लीज रेंट नहीं वसूल सकती। कोर्ट ने कहा कि आवंटी को 'जीरो पीरियड' का लाभ म ...और पढ़ें

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    इलाहाबाद हाई कोर्ट। जागरण

    विधि संवाददाता, जागरण, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फिर स्पष्ट किया है कि न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथारिटी (नोएडा) उस भूमि पर लीज रेंट वसूलने का अधिकार नहीं रखती, जिसका वास्तविक कब्जा आवंटी को नहीं दिया गया है। कोर्ट ने कहा, बिना कब्जा सौंपे लीज रेंट की मांग करना कानूनन सही नहीं है। ऐसे मामलों में आवंटी को ‘जीरो पीरियड’ का लाभ दिया जाना चाहिए।

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    न्यायमूर्ति प्रकाश पडिया ने आलूर डेवलपर प्राइवेट लिमिटेड बनाम राज्य सरकार व अन्य मामले में यह टिप्पणी की है। कोर्ट ने अथारिटी द्वारा लगभग 7.38 करोड़ रुपये की राशि रोके जाने को अवैध अनुचित और अवमाननापूर्ण बताया। अथारिटी को निर्देश दिया कि वह याची से सीआइसी (चेंज इन कांस्टिट्यूशन) के रूप में वसूली गई पूरी राशि नौ प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित वापस करे।

    इस फैसले से उन कई आवंटियों को राहत मिलने की उम्मीद है, जिन्हें कब्जा दिए बिना वर्षों तक लीज रेंट और अन्य शुल्कों का सामना करना पड़ा है। याची के पूर्ववर्ती हितधारक को सेक्टर 94, नोएडा में भूमि आवंटित की गई थी। बाद में प्राधिकरण द्वारा क्षेत्रफल घटाया गया, प्रीमियम का भुगतान हुआ और लीज डीड निष्पादित की गई। सुधार विलेख के माध्यम से प्लाट दो हिस्सों में बांटा गया। एक प्लाट याची को हस्तांतरित किया गया, लेकिन नोएडा ने कब्जा प्रमाणपत्र जारी नहीं किया।

    अथॉरिटी ने वर्ष 2010 में बोर्ड आफ मैनेजमेंट में परिवर्तन के नाम पर सात करोड़ रुपये से अधिक की मांग की, जिसे जमा कर दिया गया। इसके बाद अतिरिक्त एफएआर के लिए भी भारी भरकम की मांग उठाई गई। हालांकि अंततः वर्ष 2023 में आवेदन खारिज कर दिया गया। इसी बीच लीज रेंट न चुकाने के आधार पर नोएडा ने आवंटन रद कर दिया, जबकि याची का कहना था कि उसे कब्जा ही नहीं दिया गया।

    कोर्ट ने पाया कि लीज की शर्त संख्या तीन के तहत कब्जा प्रमाणपत्र अलग से जारी किया जाना था, जो कभी दिया ही नहीं गया। कहा, ऐसी हालत में नोएडा को दोहरे मानदंड अपनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। अदालत ने पूर्व में डिवीजन बेंच के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि केवल शेयरहोल्डिंग में बदलाव होने से सीआइसी शुल्क नहीं लगाया जा सकता, जब तक कंपनी की कानूनी पहचान में कोई परिवर्तन न हो।

    मुआवजे के लिए आवेदक को ‘शटल काक’ नहीं बना सकते अधिकारी : हाई कोर्ट

    इलाहाबाद हाई कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि मुआवजे के लिए किसी आवेदक को विभागों के बीच भटकने के लिए मजबूर करना स्वीकार्य नहीं है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि अधिकारी किसी व्यक्ति को ‘शटल काक’ नहीं बना सकते। यदि प्रशासनिक भ्रम या विभागीय खींचतान के कारण न्यायालय के आदेश का अनुपालन नहीं किया गया तो मुख्य सचिव सहित संबंधित विभागों के वरिष्ठ अधिकारी और जिलाधिकारी प्रयागराज अवमानना के दोषी माने जाएंगे।

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    न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय की एकलपीठ ने विनय कुमार सिंह की अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए यह कड़ा रुख अपनाया। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार के अलग-अलग विभागों के बीच काम के बंटवारे को आदेश के अनुपालन से बचने का बहाना नहीं बनाया जा सकता। भूमि अधिग्रहण मामलों में सर्वोच्च जिम्मेदारी मुख्य सचिव की होती है और कानून का पालन सुनिश्चित कराना प्रशासन की सामूहिक जिम्मेदारी है।

    मामले के अनुसार, राजस्व गांव भैरोपुर केवई, तहसील हंडिया, प्रयागराज निवासी याची की चार खातों में दर्ज भूमि का अधिग्रहण वर्ष 1982 में किया गया था, जबकि पूरक अवार्ड 1983 में घोषित हुआ।