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    नोएडा में प्रदूषण से बिगड़ी सेहत: इमरजेंसी में सांस के मरीजों की भीड़, सांस के मरीज 40 प्रतिशत तक बढ़े

    Updated: Thu, 25 Dec 2025 08:19 PM (IST)

    नोएडा में प्रदूषण का स्तर बढ़ने से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ बढ़ गई हैं। इमरजेंसी वार्ड में सांस के मरीजों की संख्या में 40 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई ह ...और पढ़ें

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    जागरण संवाददाता, नोएडा। शहर में प्रदूषण से हालत खराब होने से जिला अस्पताल में तीन महीने के अंदर 245 मरीज इमरजेंसी वार्ड और आईसीयू में इलाज के लिए पहुंचे हैं। सभी मरीजों की उम्र 45 से 80 वर्ष के बीच है। चिकित्सकों का कहना है कि पीएम 2.5 कणों के प्रभाव से सांस लेने वाली नली सिकुड़ जाती हैं जिससे आक्सीजन आसानी से नहीं लिया जाता है।189 मरीजों को सांस की दिक्कत पर नेबुलाइजर और आक्सीजन देकर उनकी जिंदगी को सुरक्षित किया जबकि 56 मरीज अन्य बीमारियों से ग्रस्त थे। वहीं, प्रदूषण से खांसी, सांस फूलना, घरघराहट जैसी समस्या वाले मरीजों की प्राइवेट अस्पतालों में 40 प्रतिशत तक वृद्धि हो गई है।

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    नेबुलाइजर और ऑक्सीजन सपोर्ट देने की जरूरत

    जिला अस्पताल में आईसीयू प्रभारी डॉ. असद महमूद ने बताया कि जिन मरीजों को पहले से अस्थमा है। प्रदूषण बढ़ने पर उन्हें और ज्यादा दिक्कत हो गई। सांस की नली सिकुड़ने से आक्सीजन लेवल 80 से भी कम हो गया। उन्हें स्वजन तुरंत इमरजेंसी वार्ड लेकर आए हैं। आंकड़े बताते हैं कि तीन महीने में 245 मरीज सांस की दिक्कत वाले आए हैं। उन्हें तुरंत प्राथमिक उपचार देकर ठीक किया गया। बाकी 150 मरीजों को नेबुलाइजर और ऑक्सीजन सपोर्ट देने की जरूरत पड़ी।

    पुराने मरीज ही परामर्श के लिए आ रहे

    बुजुर्ग महिला और पुरुषों को ऑक्सीजन व नेबुलाइजर से दवाई देकर सुधार के बाद घर भेज दिया गया। वहीं, चाइल्ड पीजीआई के डीन डाॅ. डीके सिंह का कहना है कि प्रदूषण की वजह से अभी नए मरीज ओपीडी में नहीं आ रहे हैं। क्योंकि स्कूल काॅलेज बंद होने से ज्यादातर बच्चे घर में ही हैं। उनकी खेल और बाहरी गतिविधियां बंद हैं। अस्थमा क्लीनिक में सिर्फ पुराने मरीज ही परामर्श के लिए आ रहे हैं।

    सीने में जकड़न के 40 प्रतिशत मरीज बढ़े

    यथार्थ अस्पताल में पल्मोनोलाजी विभाग के डाॅ. अरुणाचलम एम का कहना है कि खांसी, सांस की कमी, सीने में जकड़न और घरघराहट जैसे लक्षण के मरीज 40 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं। ऐसे भी मरीज सामने आए हैं जिन्हें पूर्व में फेफड़ों से जुड़ी बीमारी नहीं थी लेकिन, प्रदूषण से लक्षण बन गए हैं। परीक्षण में देखा कि जिनमें पहले कोई श्वसन रोग नहीं था लेकिन, अब वे फेफड़ों से जुड़ी शिकायतों के साथ आ रहे हैं। उन्हें खांसी, गले में जलन, सांस लेने व घरघराहट की दिक्कत हैं। ये सभी मामले प्रदूषित हवा के असर से जुड़े हैं।

    उनके मुताबिक , बच्चों में खांसी, एलर्जिक ब्रोंकाइटिस और अस्थमा के दौरों के मामले बढ़ रहे हैं। युवा और मध्यम आयुवर्ग के कामकाजी लोगों को सांस लेने में दिक्कत, फेफड़ों की सहनशक्ति में कमी और वायुमार्ग में जलन की शिकायत बढ़ गई है। पुरुषों के साथ कामकाजी महिलाओं में भी लक्षण देखे जा रहे हैं। विशेष बात है कि ओपीडी में पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट और अन्य फेफड़ों की जांच की मांग में बढ़ रही है।

    पीएफटी की मांग 20 से 30 प्रतिशत तक बढ़ी है। उन्होंने चेताया कि सुरक्षा कर्मी, निर्माण श्रमिक और रेहड़ी-पटरी वाले दिनभर खुले में काम करते हैं। रोजाना ट्रैफिक में सफर करने वाले लोग, स्कूल-काॅलेज के छात्र व आफिस जाने वाले लोग प्रदूषण से ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं।

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