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    अब जन्म से खून न बनने की जांच भी नोएडा के चाइल्ड पीजीआई में होगी शुरू, नए साल से मिलेगी सुविधा

    Updated: Thu, 25 Dec 2025 07:47 PM (IST)

    नोएडा के चाइल्ड पीजीआई में अब जन्म से खून न बनने की जांच भी शुरू होगी। यह सुविधा नए साल से उपलब्ध होगी। इससे बच्चों में होने वाली खून से संबंधित बीमार ...और पढ़ें

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    सुमित शिशोदिया, नोएडा। कैंसर और थैलेसीमिया के इलाज की तरह अब सेक्टर-30 स्थित चाइल्ड पीजीआई में बाल मरीजों के अंदर जन्म से खून न बनने की जांच भी की जाएगी। नए वर्ष के शुरुआती माह में मरीजों को जांच की सुविधा का लाभ मिलना शुरू हो जाएगा। शासन ने हीमोग्लोबिन डिसऑर्डर से बीमारी और उसके कारणों को स्कैन करने की अनुमति दे दी है।

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    जांच शुरू होने से तीमारदारों को भी प्राइवेट अस्पताल या दिल्ली की प्रयोगशाला में जाकर जेब ढीली नहीं करनी पड़ेगी। विशेष बात है कि मशीन इंस्टालेशन के बाद चाइल्ड पीजीआई प्रबंधन की जिला अस्पताल प्रशासन के साथ एमओयू करने की रणनीति है, जिससे गर्भवती महिलाओं की जांच कर गर्भस्थ्य शिशु की बीमारी को भी स्कैन करने में बड़ी सफलता मिलेगी।

    संस्था में तैनात वैज्ञानी डाॅ. दिनेश साहू और पैथोलाॅजी विभाग की हेड डाॅ. ज्योत्सना मदान मिलकर अत्याधुनिक मशीन से देश-प्रदेश के मरीजों को जांच की जल्द सुविधा देंगे। पिछले दिनों निदेशक प्रो. डाॅ. अरुण कुमार सिंह ने चिकित्सकों के साथ बैठककर जल्द से जल्द जांंच शुरू करने की रणनीति को अंतिम धार दी। डाॅक्टरों का कहना है कि अक्सर बच्चे या नवजात में खून न बनने पर अभिभावक परेशान होकर गहरी चिंता में डूब जाती है।

    कई बार अभिभावक बीमारी के कारण मानसिक तनाव की स्थिति में सही प्रकार से जांच का निर्णय नहीं ले पाते हैं जबकि वरिष्ठ चिकित्सकों को थैलेसीमिया और अन्य प्रकार के जांच करने पड़ते हैं। डाॅ. ज्योत्सना मदान के मुताबिक, थैलेसीमिया से ग्रस्त मरीजाें की बीमारी का पता करने के लिए भी खून का सैंपल लिया जाता है। इसी तरह हीमोग्लोबिन डिसऑर्डर का पता करने करने के लिए सैंपल लिया जाएगा। फिर मशीन से कम समय में रिपोर्ट आते ही मरीज का इलाज शुरू हो गया।

    इसका दूसरा लाभ है कि मशीन से जांच के लिए मरीजों को अतिरिक्त पैसे भी खर्च नहीं करने पड़ेंगे। विशेष बात है कि इस मशीन से गर्भवतियां और अभिभावक व अन्य मरीजों में भी हीमोग्लोबिन की कमी की जांच कर उनका निराकरण किया जाएगा। चिकित्सकों का दावा है कि अगले वर्ष तक जिला अस्पताल में इलाज के लिए आने वालीं गर्भवतियों को बड़ी राहत देने के लिए प्रबंधन से एमओयू किया जाएगा।

    निदेशक प्रोफेसर डाॅ. अरुण कुमार सिंह का कहना है कि हीमोग्लोबिन डिसऑर्डर की जांच के लिए मशीन जल्द ही मिलने की संभावना है। उच्च अधिकारियों से साकारात्मक संकेत मिले हैं। खास बात है कि मशीन से मरीजों को जल्दी जांच और आर्थिक दबाव भी नहीं झेलना पड़ेगा। प्राइवेट अस्पतालों से कम दर पर जांच के शुल्क तय होंगे।

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