यूपी इंटरनेशनल ट्रेड शो में 343 जिलों की पहचान बने ODOP, गांव की कला को मिला अंतरराष्ट्रीय मंच
उत्तर प्रदेश के 75 जिलों की कला और हस्तशिल्प एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना से आत्मनिर्भर बन रही है। सरकार की मदद से ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है। यूपी इंटरनेशनल ट्रेड शो में ओडीओपी प्रदर्शकों की संख्या बढ़ी है। यह योजना पारंपरिक उद्योगों को नया जीवन दे रही है और आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार कर रही है। ई-कॉमर्स ने ग्रामीण कला को नए बाज़ार दिए।

जागरण संवाददाता, ग्रेटर नोएडा। उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में फैली कला और हस्तशिल्प की विरासत स्वदेशी की ताकत बन रही है। योगी सरकार ने ग्रामीण अंचल में दम तोड़ रहे परंपरागत उद्योगों को जीवनदान देने की एक डिस्ट्रिक्ट एक प्रोडक्ट (ओडीओपी) के जरिये पहल की थी। कला, हस्तशिल्प और देशी उत्पाद को सहेजने के लिए सरकार की ओर से बढ़े मदद के हाथ अब ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के साथ ही स्वदेशी की ताकत बन रहे हैं।
पिछले वर्ष के मुकाबले बढ़े प्रदर्शक
गांव में बने उत्पाद अपने जिले की सीमा लांघकर देश के दूसरे राज्यों के साथ विदेशी बाजार तक पहुंच गए हैं। ओडीओपी की मजबूत होती जड़ों का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि यूपी इंटरनेशनल ट्रेड शो में ओडीओपी उत्पाद लेकर पिछले साल 280 प्रदर्शक पहुंचे थे, लेकिन इस बार इनकी संख्या 343 पहुंच गई है।
परंपरागत उद्योग को नया जीवन
उत्तर प्रदेश विविधताओं से भरा है। हर जिले अपने आप में सांस्कृतिक समृद्धता, कला, हस्तशिल्प की विरासत के साथ देशी उत्पाद की परंपरा को समेटे हुए हैं। लेकिन आधुनिकता की होड़ और बाजार की प्रतिस्पर्धा में कला और हस्तशिल्प की हांफती विरासत के नई पीढ़ी भी दूर हो रही थी, लेकिन ओडीओपी ने परंपरागत उद्योग को नया जीवन देकर स्वदेशी की ताकत बना दिया है।
ओडीओपी से ताकत मिल रही
ओडीओपी उत्पाद की ब्रांडिंग और बाजार उपलब्ध कराने की जिम्मेदार प्रदेश सरकार ने यूपी इंटरनेशनल ट्रेड शो के जरिये इसे नए मुकाम पर पहुंचा दिया है। ओडीओपी की मांग बढ़ने के कारण गांवाें में इससे जुड़ने वालों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। इस बार ओडीओपी लेकर 343 प्रदर्शन यूपीआइटीएस में पहुंचे थे, पिछली बार इनकी संख्या 280 थी। इसके साथ ही स्वदेशी अपनाने के लिए जोर देर केंद्र सरकार के अभियान को भी ओडीओपी से ताकत मिल रही है।
उत्पाद से लेकर कलपुर्जे तक बना रहे
ओडीओपी केवल मुरादाबाद के पीतल, मैनपुर के तारकशी जैसे सजावटी हस्त शिल्प तक नहीं हैं, बल्कि प्रदेश के कई जिलों गौतमबुद्ध नगर के रेडीमेड गारमेंट व आर्टिफिशयल ज्वेरली, प्रतापगढ़ के आंवला से बने खाद्य उत्पाद शैंपू, हेयर आयल, आचार, मुरब्बे, मुजफ्फरनगर के गुड़, झांसी के साॅफ्ट ट्वॉय, ललितपुर की जरी सिल्क साड़ी, रायबरेली के लकड़ी के उत्पाद से लेकर कलपुर्जे तक बनाए जा रहे हैं।
कला और परंपरा को मिले नए द्वार
मिलेट्स से बने नूडल, पास्ता आदि नई पीढ़ी को अपनी परंपरा से जोड़ने के साथ खानपान के लिए स्वास्थ्यवर्धक खाद्य सामग्री के तौर बाजार में अपनी पैठ मजबूत कर रहे हैं। दूसरे राज्योंं में भी उत्तर प्रदेश की ओडीओपी की मांग में इजाफा हो रहा है, इसके साथ ही माल से लेकर एयरपोर्ट तक ओडीओपी की उपस्थिति दर्ज हो रही है। ई कामर्स प्लेटफार्म ने जिले के सूदूर ग्रामीण आंचल में छिपे कला और परंपरा के इस खजाने के लिए नए द्वार खोल दिए हैं।
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