अफवाह और फिर लाउडस्पीकर सुन भड़का था गुस्सा, अखलाक पर टूट पड़ी थी भीड़; पढ़ें दादरी लिंचिंग की पूरी कहानी
उत्तर प्रदेश के दादरी के बिसहदा गांव में 28 सितंबर 2015 को अफवाह के बाद भीड़ ने अखलाक की हत्या कर दी। आरोप था कि अखलाक के परिवार ने गोमांस खाया है। इस ...और पढ़ें

डिजिटल डेस्क, नोएडा। उत्तर प्रदेश के दादरी से कुछ किलोमीटर दूर बसा बिसहदा गांव, जहां पीढ़ियों से साथ रहने वाले लोग एक-दूसरे को नाम से नहीं, रिश्तों से जानते थे। यही वह जगह थी, जहां 28 सितंबर 2015 की रात एक शक ने हिंसा का रूप ले लिया।
बिसहदा गांव में 28 सितंबर 2015 की रात जो हुआ, वह बाद में देश के सबसे चर्चित मॉब लिंचिंग केस में शामिल हो गया। यह घटना 52 वर्षीय मोहम्मद अखलाक की हत्या से जुड़ी है, जिसे बाद में दादरी लिंचिंग के नाम से जाना गया।
बिसहदा गांव में अखलाक का परिवार लगभग 70 वर्षों से रह रहा था। गांव में उनका किसी से कोई पुराना विवाद या दुश्मनी दर्ज नहीं थी। अखलाक खेती और छोटे कामों से परिवार का पालन-पोषण करते थे। उनका बड़ा बेटा मोहम्मद सरताज भारतीय वायु सेना में कार्यरत था और उस समय चेन्नई में तैनात था।
28 सितंबर 2015 की शाम गांव में यह अफवाह फैली कि किसी का बछड़ा गायब है और उसे अखलाक ने उसे चोरी करने के बाद मार डाला है। इसी दौरान यह बात भी फैलाई गई कि ईद-उल-अधा के मौके पर अखलाक के परिवार ने बछड़े का मांस खाया है। बाद में दो युवकों द्वारा मंदिर के लाउडस्पीकर से यह घोषणा की गई, जिससे गांव में तनाव तेजी से बढ़ गया।
लाउडस्पीकर से घोषणा और भीड़ का इकट्ठा होना
घोषणा के बाद गांव में लोग जमा होने लगे। आरोप था कि अखलाक के घर में गोमांस रखा गया है। हिंदू धर्म में गाय को पवित्र माना जाता है और उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में गाय की हत्या पर कानूनी प्रतिबंध है। इसी आधार पर लोगों में गुस्सा फैलता गया और देखते-ही-देखते एक भीड़ तैयार हो गई।
28 सितंबर 2015 की रात करीब 10:30 बजे लाठियों, ईंटों और चाकुओं से लैस भीड़ अखलाक के घर पहुंची। उस समय परिवार खाना खा चुका था और सोने की तैयारी कर रहा था। अखलाक और उनका बेटा दानिश सो चुके थे।
भीड़ ने घर में घुसकर फ्रिज से मांस निकाला। परिवार का कहना था कि वह मटन था, लेकिन भीड़ ने उनकी बात नहीं मानी। अखलाक और दानिश को घर से बाहर घसीटा गया। दोनों के साथ बेरहमी से मारपीट की गई। पड़ोसियों ने बीच-बचाव की कोशिश की, लेकिन भीड़ को रोका नहीं जा सका।
पुलिस को सूचना दी गई, लेकिन जब तक पुलिस मौके पर पहुंची, तब तक अखलाक की मौत हो चुकी थी और उनका 22 वर्षीय बेटा दानिश गंभीर रूप से घायल हो चुका था।
अस्पताल और परिवार की हालत
दानिश को पहले स्थानीय अस्पताल ले जाया गया, फिर ग्रेटर नोएडा के कैलाश अस्पताल और बाद में दिल्ली के आर्मी हॉस्पिटल रिसर्च एंड रेफरल में भर्ती कराया गया। उसे कई दिन आईसीयू में रहना पड़ा और मस्तिष्क की सर्जरी भी हुई।
पुलिस की कार्रवाई और गिरफ्तारियां
घटना के बाद पुलिस ने दंगा, हत्या और हत्या के प्रयास सहित कई धाराओं में एफआईआर दर्ज की। मंदिर के पुजारी और उसके सहायक से पूछताछ की गई। परिवार के बयान के आधार पर कई लोगों को आरोपी बनाया गया और गिरफ्तारियां हुईं। हालांकि, गिरफ्तारियों के विरोध में गांव में प्रदर्शन भी हुए और पुलिस को स्थिति संभालने के लिए बल प्रयोग करना पड़ा।
मांस की जांच और विवाद
पुलिस ने अखलाक के घर से बरामद मांस का नमूना जांच के लिए भेजा। शुरुआती जांच में मांस को मटन बताया गया, लेकिन बाद में चर्चा रही कि एक अन्य प्रयोगशाला की रिपोर्ट में उसे गोमांस कहा गया। इससे मामला जटिल बना दिया और बहस का केंद्र हत्या से हटकर मांस की जांच पर चला गया।
पीड़ित परिवार के खिलाफ एफआईआर
9 जुलाई 2016 को अदालत के निर्देश पर अखलाक और उनके परिजनों के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज की गई। यह कदम भी विवादों में रहा, क्योंकि मृतक को ही आरोपी बना दिया गया था।
लगातार तनाव और सुरक्षा को लेकर डर के कारण अखलाक का परिवार 6 अक्टूबर 2015 को बिसहदा गांव छोड़कर दिल्ली चला गया, जहां उन्हें भारतीय वायु सेना क्षेत्र में शरण दी गई।
घटना के बाद देशभर में राजनीतिक प्रतिक्रियाएं आईं। कुछ नेताओं ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया, तो कुछ बयानों को लेकर विवाद खड़े हुए। कई लेखकों और बुद्धिजीवियों ने असहिष्णुता के विरोध में अपने पुरस्कार लौटाए। यह मामला लंबे समय तक राष्ट्रीय बहस का विषय बना रहा।
केस वापस लेने की कार्यवाही
15 अक्टूबर 2025 को उत्तर प्रदेश सरकार ने अदालत में इस मामले को वापस लेने के लिए आवेदन दिया। सरकार ने तर्क दिया कि गवाहों के बयान आपस में मेल नहीं खाते, किसी आरोपी से हथियार बरामद नहीं हुआ और आरोपी व पीड़ित के बीच कोई पुरानी दुश्मनी साबित नहीं होती।
अखलाक हत्याकांड में आरोपितों के खिलाफ चल रहे मामले को वापस लेने के संंबंध में अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (एफटीसी-एक) की अदालत में सुनवाई के बाद दोनों पक्षों को सुनने के लिए 23 दिसंबर की तारीख निर्धारित की थी।
अब 23 दिसंबर 2025 को अदालत में अभियोजन पक्ष से वकील भाग सिंह भाटी, पीड़ित पक्ष के अधिवक्ता यूसुफ सैफी ने अपना-अपना पक्ष रखा। इसके बाद अदालत ने अभियोजन पक्ष की ओर से मामला वापस लेने के लिए लगाई गई, जिसे कोर्ट ने महत्वहीन व आधारहीन मानते हुए निरस्त कर दिया।

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