अखलाक हत्याकांड: पीड़ित स्वजन बोले-सहमति के बिना केस वापसी न्याय के खिलाफ, इलाहाबाद हाईकोर्ट में दी चुनौती
अखलाक हत्याकांड के पीड़ित परिवार ने सहमति के बिना केस वापसी को न्याय के खिलाफ बताते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी है। परिवार का कहना है कि उनसे ...और पढ़ें

प्रतीकात्मक तस्वीर।
जागरण संवाददाता, ग्रेटर नोएडा। जारचा के बिसहड़ा गांव निवासी अखलाक हत्याकांड में मामले में पीड़ित स्वजन ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मामला वापस लेने के लिए निचली अदालत में लगाई अर्जी के खिलाफ हाईकोर्ट में चुनौती दी है। पीड़ित पक्ष के अधिवक्ता अंदीब नकवी और यूसुफ सैफी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया है। वहां पर 21 आरोपितों, कुछ सरकारी अधिकारियों और 14 अभियुक्तों के खिलाफ राज्य सरकार की मामला वापसी की याचिका को चुनौती दी गई है।
क्या है पूरा मामला?
बता दें कि घटना 28 सितंबर 2015 की रात की है। घटना के समय बिसाहड़ा गांव में भीड़ ने अखलाक के घर पर हमला किया था। सोते समय बाहर घसीटकर बुरी तरह से पीटा गया था, जिसमें उनकी मौत हो गई है। अफवाह थी कि घर में गोमांस रखा गया है। घटना के बाद तनाव और सांप्रदायिक माहौल बिगड़ा। अखलाक की हत्या के बाद पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज किया था। इसमें हत्या समेत कई गंभीर धाराएं लगी थीं।
फाॅरेंसिक रिपोर्ट में मांस की प्रकृति पर है विवाद
बीच में लाॅकडाउन के कारण 2021 तक सुनवाई प्रभावित रही। अब प्रदेश सरकार ने मामला वापस लेने का प्रस्ताव शांति बहाली का हवाला देते हुए रखा है। यह कहा गया है कि आरोपितों की कोई पूर्व शत्रुता नहीं थी और फाॅरेंसिक रिपोर्ट में मांस की प्रकृति पर विवाद है। हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में स्वजन ने कहा है कि हत्या चाहे लाठी-डंडों से क्यों न की गई हो, छोटा अपराध कैसे हो सकती है? जब आरोपितों पर मामला दर्ज है, चार्जशीट दाखिल हो गई, कोर्ट में बयान शुरू हैं, तब मामला वापस लेना न्यायोचित नहीं है।
अधिवक्ता ने मार्टिन लूथर किंग जूनियर का दिया हवाला
स्वजन के अधिवक्ता ने कोर्ट में कहा कि दो प्रमुख गवाह अखलाक का बेटा और भाई पहले ही बयान दर्ज करा चुके हैं। ऐसे में मामला वापस लेना पीड़ित स्वजन के अधिकारों का हनन है। हाईकोर्ट में स्वजन के अधिवक्ता ने मार्टिन लूथर किंग जूनियर का हवाला देते हुए कहा, 'कहीं भी अन्याय, हर जगह न्याय के लिए खतरा है।' उन्होंने मांग की कि पीड़ित स्वजन की सहमति के बिना किसी मामले की वापसी को मजबूरी नहीं बनाया जा सकता।

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