Muzaffarnagar: पति का दिया तीन तलाक खारिज, देवबंद से लाया फतवा भी कोर्ट ने नहीं माना, यह दिया निर्णय
Muzaffarnagar News मुजफ्फरनगर में परिवार न्यायालय ने तीन तलाक के मामले में पति की याचिका खारिज कर दी। पति पत्नी को तलाक देने के अपने दावे को साबित नहीं कर सका। पत्नी ने तलाक का विरोध किया था। अदालत ने कहा कि तीन तलाक मुस्लिम महिला अधिनियम के विरुद्ध है इसलिए पति को पत्नी को स्वीकार करना होगा।

जागरण संवाददाता, मुजफ्फरनगर। तीन तलाक से जुड़े एक प्रकरण में परिवार न्यायालय का जिले का पहला निर्णय आया है। पति ने दिए तीन तलाक को वैध ठहराने के लिए परिवार न्यायालय में याचिका दायर की, जिस पर दोनों पक्षों की सुनवाई हुई। तीन तलाक को पति न्यायालय में कानूनी एवं धर्म के लिहाज से साबित नहीं कर सका। न्यायालय ने भी पति के कृत्य को गलत ठहराया है, जिसके चलते याचिका को खारिज कर दिया गया। महिला अब उस व्यक्ति की धर्म एवं कानूनन पत्नी बनी रहेगी।
यह है मामला
कोतवाली के मुहल्ला पुरानी आबकारी निवासी तसनीम अहमद का निकाह 12 फरवरी 2013 को मेरठ के गांव इंचौली निवासी अंजुम परवीन से हुआ था। पति ने आरोप लगाया था कि अंजुम, पत्नी धर्म नहीं निभाती है। उसे एवं उसके स्वजन को झूठे मुकदमे में फंसाने की धमकियां देती है।
वर्ष 2018 में दिया था तीन तलाक
वर्ष 2018 में एक साथ तीन तलाक दिया था, उसके बाद उसकी पत्नी घर से चली गई थी। पति ने इस तलाक को कोर्ट द्वारा भी मान्यता दिलाने के लिए तलाक का पहला नोटिस 23 अक्टूबर 2020, दूसरा नोटिस नौ दिसंबर 2020 तथा अंतिम एवं तृतीय नोटिस एक मार्च 2021 को दिया था। इस तलाक का पत्नी अंजुम ने विरोध किया। इस पर तसनीम ने परिवार न्यायालय-दो में तलाक को वैध घोषित कराने के लिए वाद दायर किया था।
परिवार न्यायालय में हुई सुनवाई
महिला के अधिवक्ता शहजाद सिद्दीकी ने बताया कि इस मुकदमे की सुनवाई परिवार न्यायालय की अपर प्रधान न्यायाधीश रीमा मल्होत्रा के न्यायालय में हुई। न्यायालय में सुनवाई के दौरान पति तीन तलाक के साक्ष्य और गवाही को साबित नहीं कर सका।
न्यायालय ने माना कि तीन तलाक को इस्लाम धर्म एवं मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के विरुद्ध दिया गया। अधिवक्ता के अनुसार न्यायालय ने पति द्वारा दिए गए तीन तलाक को अवैध ठहराया है। ऐसे में कानूनन एवं इस्लाम धर्म के मुताबिक तसनीम अहमद को अंजुम परवीन को पत्नी के रूप में स्वीकृत रखना होगा। दंपती का एक बेटा है जो मायके में रह रही मां के साथ रहता है।
अधिवक्ता शहजाद ने बताया कि परिवार न्यायालय में पति द्वारा दारुल उलूम देवबंद से लाया गया फतवा भी रखा था, जिसे न्यायालय ने नहीं माना। इतना ही नहीं तलाक नोटिस के बाद पत्नी के साथ गृहस्थ जीवन जारी रखने के लिए समझौता या कोई पहल नहीं की गई। तलाक के दौरान दो बालिग गवाह बताए गए, लेकिन न्यायालय में गवाह संतोषजनक जवाब नहीं दे सके।
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