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    अब गंजे स‍िर पर लहलहाएंगे बाल! रत्ती के बीजों ने कर दिखाया कमाल, शोध में बड़ा खुलासा

    Updated: Tue, 30 Dec 2025 02:46 PM (IST)

    मुरादाबाद के आइएफटीएम विश्वविद्यालय की डॉ. सुकीर्ति उपाध्याय ने गंजेपन (एंड्रोजेनिक एलोपेसिया) के इलाज पर शोध किया है। उन्होंने रत्ती (अब्रस प्रीकैटोर ...और पढ़ें

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    रत्‍ती के बीज

    तेजप्रकाश सैनी, जागरण, मुरादाबाद। आइएफटीएम विश्वविद्यालय में कार्यरत डा.सुकीर्ति उपाध्याय ने गंजेपन यानि एंड्रोजेनिक एलोपीसिया बीमारी को लेकर शोध किया है किया है। पुरुषों में मध्य आयु के भीतर होने होने वाले गंजेपन को दूर करने के लिए इस शोध में उन्होंने रत्ती (अब्रस प्रीकैटोरियस) के बीजों से तैयार तेल को प्रयोगात्मक रूप से सिद्ध किया है। रत्ती के बीजों से प्राप्त तेल या उससे बने शैंपू के प्रयोग से एंड्रोजेनिक एलोपेसिया की रोकथाम संभव है।

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    इस शोध के लिए सफेद चूहों का चयन किया गया। कुल 18 चूहों को प्रयोग में शामिल किया गया और उन्हें तीन अलग-अलग समूहों में बांटा गया। सभी चूहों में 21 दिनों तक लगातार टेस्टोस्टेरोन हार्मोन का इंजेक्शन त्वचा के नीचे देने की विधि से दिया गया, जिससे उनमें कृत्रिम रूप से एंड्रोजेनिक एलोपेसिया यानी गंजापन उत्पन्न किया जा सके।

    फार्मेसी विभाग में डा. सुकीर्ति उपाध्याय ने रत्ती के बीजों का पेट्रोलियम ईथर में निष्कर्षण (अर्क निकालने की प्रक्रिया) किया। पहले समूह के चूहों की त्वचा पर यह रत्ती के बीजों का तेल 21 दिनों तक लगातार लगाया गया। दूसरे समूह के चूहों पर गंजेपन के इलाज में प्रयुक्त अंग्रेजी दवा फिनास्टेरायड का लोशन लगाया गया।

    तीसरे समूह के चूहों पर किसी भी प्रकार की दवा या उपचार नहीं किया गया, ताकि परिणामों की स्पष्ट तुलना की जा सके। डा.सुकीर्ति उपाध्याय ने बताया कि जिन चूहों पर रत्ती के बीजों का तेल लगाया गया था, उनमें एंड्रोजेनिक एलोपेसिया का कोई भी लक्षण दिखाई नहीं पड़ा। वहीं फिनास्टेरायड लगाए गए चूहों में गंजेपन के हल्के लक्षण देखने को मिले। जिन चूहों को कोई दवा नहीं दी गई थी, उनमें गंजापन पूरी तरह से विकसित हो गया।

    डा. सुकीर्ति उपाध्याय के अनुसार एंड्रोजेनिक एलोपेसिया पुरुषों में मध्य आयु के दौरान शरीर में टेस्टोस्टेरोन हार्मोन की अधिकता के कारण होता है। यह शोध संकेत देता है कि रत्ती के बीजों से बने तेल या शैंपू का उपयोग कर इस प्रकार के गंजेपन की रोकथाम की जा सकती है। डा.सुकीर्ति ने यह शोध फार्मेसी विभाग के डीन डा.नवनीत वर्मा के निर्देशन में पूरा किया है।

    अंतरराष्ट्रीय पत्रिका में प्रकाशित शोध, पेटेंट भी हुआ

    यह शोध कार्य स्प्रिंगर नेचर समूह की ब्राज़ीलियन जर्नल ऑफ फार्माकोग्नोसी में प्रकाशित हो चुका है। इसके साथ ही इस शोध से संबंधित भारतीय पेटेंट भी प्रकाशित कराया गया है। भविष्य में इस शोध को व्यावसायिक रूप देने की योजना है।

    रत्ती आधारित उत्पादों को बाजार में उतारने के लिए कई कंपनियों से बातचीत चल रही है। इस शोध कार्य को पूरा करने में लगभग एक से डेढ़ वर्ष का समय लगा और करीब डेढ़ लाख रुपये का खर्च आया। शोधकर्ताओं का मानना है कि यह अध्ययन एंड्रोजेनिक एलोपेसिया के उपचार में एक नई प्राकृतिक दिशा प्रदान करेगा।

     

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