डिजिटल दुनिया छोड़ मैदान में उतरे बच्चे: मुरादाबाद में घुड़सवारी देख बोले- 'हमें भी बनना है राइडर'
मुरादाबाद में डॉ. भीमराव अंबेडकर पुलिस अकादमी में आयोजित घुड़सवारी प्रतियोगिता बच्चों के लिए मोबाइल से दूर रहने का एक सफल प्रयास साबित हुई। अभिभावकों ...और पढ़ें

घुड़सवारी देखते बच्चे
जागरण संवाददाता, मुरादाबाद। डिजिटल दौर में जहां बच्चे मोबाइल, टेबलेट और टीवी स्क्रीन तक सीमित होते जा रहे हैं, वहीं अभिभावक अब उन्हें इंटरनेट मीडिया और लंबी स्क्रीनिंग से दूर रखने के लिए नए प्रयास कर रहे हैं। इसी क्रम में डा. भीमराव आंबेडकर पुलिस अकादमी में आयोजित घुड़सवारी प्रतियोगिता बच्चों और अभिभावकों के लिए एक सकारात्मक पहल बनकर सामने आई।
प्रतियोगिता देखने के लिए बड़ी संख्या में बच्चों की मौजूदगी ने यह साबित कर दिया कि यदि उन्हें सही माहौल और अवसर मिले, तो वे आउटडोर गतिविधियों में भी उतनी ही रुचि लेते हैं। दोपहर करीब दो बजे ही वेदिका, भूमि, परी, आराध्या, शिवा, प्रियांशु, राधिका, आरोही, दिव्यांशी, तान्या और मान्या जैसे कई बच्चे मैदान में पहुंच गए थे। रंग-बिरंगे कपड़ों में सजे ये बच्चे घुड़सवारी प्रतियोगिता को लेकर खासे उत्साहित नजर आए।
जैसे ही घुड़सवार अपने घोड़ों के साथ मैदान में उतरे, बच्चों की आंखें चमक उठतीं। वे तालियां बजाकर खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ाते और हर करतब को ध्यान से देखते रहे। बच्चों ने बातचीत के दौरान बताया कि वे घुड़सवारी प्रतियोगिता देखने के लिए खास तौर पर आए हैं। उनका कहना था कि माता-पिता उन्हें ज्यादा देर मोबाइल देखने नहीं देते।
दिन में सिर्फ एक घंटे ही टीवी देखने की अनुमति है। बाकी समय पढ़ाई, खेलकूद और अन्य रचनात्मक गतिविधियों में बिताने पर जोर दिया जाता है। बच्चों ने यह भी कहा कि यहां आकर उन्हें आउटडोर गेम्स और खेलों के बारे में जानने का मौका मिल रहा है। घुड़सवारों को अपने घोड़ों के साथ तालमेल बनाते और बाधाओं को पार करते देख उन्हें बहुत अच्छा लग रहा है।
अभिभावक रमेश का कहना था कि इंटरनेट मीडिया और मोबाइल की लत बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर बुरा असर डाल रही है। लंबे समय तक स्क्रीन देखने से आंखों की समस्या, चिड़चिड़ापन और एकाग्रता में कमी जैसी दिक्कतें सामने आ रही हैं। इसी वजह से वे बच्चों को आउटडोर गतिविधियों से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं।
घुड़सवारी प्रतियोगिता जैसे आयोजन बच्चों को न सिर्फ मनोरंजन देते हैं, बल्कि उनमें अनुशासन, धैर्य और आत्मविश्वास भी बढ़ाते हैं। घुड़सवारी को देखने के दौरान कई बच्चों ने घोड़ों के बारे में भी सवाल किए। वे यह जानने को उत्सुक दिखे कि घोड़े को कैसे प्रशिक्षित किया जाता है, घुड़सवार कितने समय तक अभ्यास करते हैं और प्रतियोगिता में जीतने के लिए किन बातों का ध्यान रखा जाता है।
कुछ बच्चों ने तो यह भी कहा कि वे बड़े होकर घुड़सवारी सीखना चाहते हैं। डा. भीमराव आंबेडकर पुलिस अकादमी में आयोजित घुड़सवारी प्रतियोगिता न सिर्फ खिलाड़ियों के लिए, बल्कि बच्चों और अभिभावकों के लिए भी एक प्रेरणादायक अनुभव है। इस तरह के आयोजन बच्चों में खेलों के प्रति उत्साह बढ़ेगा और वे स्वस्थ जीवनशैली की ओर कदम बढ़ाएंगे।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।