Namami Vindhyavasini: मिरजापुर में कारोबार को संगठित करने और मंच देने की जरूरत, हौसलों को पंख जरूरी
विध्याचल मंडल में पीतल के बर्तनों का उद्योग मीरजापुर जिले में ही केंद्रित है। बर्तन में उपयोग होने वाली अलौह धातु का यहां पर उत्पादन तो नहीं होता लेकि ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, मीरजापुर। Namami Vindhyavasini: शहर वैसे तो पौराणिकता और और ऐतिहासिकता के सापेक्ष कदमताल करता रहा है लेकिन आप शहर के भीतर झांकें तो लघु उद्योगों की धड़कनों ने इसकी आर्थिकी को संभाल रखा है। पीतल उद्योग के लिए वैसे तो मुरादाबाद शहर ही लोगों के जुबान पर आता है। मगर मीरजापुर जिले के पीतल उद्योग समृद्ध तो है लेकिन पीतल के लोटे के हलक से आगे बढ़ने की संभावनाओं को बल देने की कहीं अधिक जरूरत है।
जिले में पीतल उद्योग को लंबे समय से संजीवनी की आस रही है। यह छोटे -छोटे कारखानों का शहर है लेकिन व्यवस्थित न होने से यह मध्य शहर में ही कुछेक पुराने समय के उद्यमियों के मध्य सीमित है।
शासन-प्रशासन को यहां के पीलत पर नाज तो है लेकिन उपेक्षा भी उतनी ही है। मुनाफा तो है लेकिन व्यवस्थित होने या शहर से अलग इस उद्योग को स्थापित करने की बात पर कारोबारी असहज नजर आते हैं। इसके पीछे लागत में इजाफा ही नहीं बल्कि उनके भीतर कारोबार को लेकर सबकुछ दस्तावेजों पर आने और अपने कल को लेकर चिंता भी अहम है।
कारोबारी यह चाहते तो हैं कि उनके उद्योग को पहचान मिले लेकिन नीति नियंताओं पर भरोसा कम ही है। बीते दिनों प्रशासनिक पहल शुरू हुई तो अब इस कारोबार को एक प्लेटफार्म पर लाने की तैयारी ने जोर पकड़ा है।
प्रभाव तो पड़ा है
कारोबारी बताते हैं कि भट्ठियां धधकती रहें तो रोटियां भी बनेंगी और कारोबार ठंडा पड़ा तो कई घरों से रोजी छिननी तय है। बीते वर्षों में कोरोना के कहर ने पीतल व्यवसाय को प्रभावित किया है। लगभग तीन महीने तक कारखानों की भट्ठियां बुझी रहीं और साठ से पैसठ हजार कामगारों की स्थिति बदहाल हो गई। अब कारोबार ने कुछ गति पकड़ी है तो कारोबारी सरकारी प्रयासों की ओर आशा भरी नजरों से मगर अपने बेहतर कल के लिहाज से शंका से देखते हैं। इसके पीछे पुराने वादों को भट्ठी में ही कारोबारी पड़े रहने की
बर्तनों से आगे की बात
विध्यांचल मंडल में पीतल के बर्तनों का उद्योग मीरजापुर जिले में ही केंद्रित है। बर्तन में उपयोग होने वाली अलौह धातु का यहां पर उत्पादन तो नहीं होता लेकिन धातु को पिघला कर पीतल के बर्तन को बनाने का हुनर हाथों में खूब है। शहर के मध्य में दुर्गा देवी और कसरहट्टी मोहल्ला पीतल के छोटे कारखानों का प्रमुख केंद्र है। सुबह से रात तक ठक-ठक की ठोंक-पीट की आवाज लोगों को बरबस इस ओर खींच लेती है।
नगर में कुटीर उद्योग के रूप में स्थापित पांच सौ से अधिक छोटे कारखानों में हजारों लोग प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़े हुए हैं। संजीवनी की आस में पीतल उद्योग की जान महज परात, हण्डा और लोटे तक सीमित है। जबकि जरूरत कहीं अधिक की है।
परंपराओं से जुड़ा कारोबार
पूर्वांचल के जानकार पुरनिए पीतल नगरी के तौर पर मीरजापुर को ही जानते हैं। यहां की ख्याति बर्तनों में उकेरी जाने वाली कलाकृतियों से भी है। वैवाहिक संस्कारों से लेकर पारंपरिक थाल-परात, हण्डा और लोटा आदि बनाने की परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है।
सदियों पुरानी परंपरा में नवाचार की कमी कारखानों में आज भी साफ नजर आती है। त्योहारी सीजन या सहालग में डिमांड बढ़ती है तो भट्ठी की आंच और तेज हो जाती है। मगर, परंपराओं से इतर बर्तनों के प्रकार और अन्य उत्पादों में प्रयोग या नवोन्मेष की संकल्पना कला के महारथियों के हाथों में आए तो हुनर वाले हाथों में बात बन सकती है।
कारोबार में नीतियों का अनुपालन
अधिकतर कारोबारी पीढ़ी दर पीढ़ी व्यवसाय करते आए हैं। कुछ कारखानों में डिमांड के मुताबिक आर्डर देते हैं तो कुछ के खुद के ही लघु उद्योग हैं। समय बदला तो पीतल के बर्तनों में टेफलान कोटिंग और अन्य आधुनिक प्रयोगों के बीच परंपरागत कारोबार मंद पड़ा है।
व्यवसाय समय के साथ अपेक्षाएं पूरी न करने पर घटता गया तो अब नई कर प्रणाली में माथापच्ची करने पर छोटे स्तर वाले कारखाने खुद को असहाय पा रहे हैं। जिस सस्ते दर पर उनके उत्पाद बिकते थे वह कर प्रणाली की वजह से बाजार में आने तक महंगा हो चला है। आम आदमी की खरीद की शक्ति के सापेक्ष यह बर्तन अब महंगा हो गया है जिससे अब रोजमर्रा के प्रयोग के अनुपात में शगुन के लिए ही जगह शेष रह गई है।
लाजिस्टिक पार्क होगा स्थापित
आगरा, मुरादाबाद और कानपुर के बाद अब उत्तर प्रदेश का चौथा लाजिस्टिक पार्क मीरजापुर में स्थापित किया जाएगा। ऐसे में अब जनपद एवं आसपास के इलाकों में निर्मित वस्तुओं को कम समय में देश के प्रमुख बंदरगाहों के जरिए विदेश भेजने की सुविधा शुरू हो जाएगी। इसके अलावा यहां के उत्पाद देश के प्रमुख महानगर सहित अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी उपलब्ध होगा।
दो चरणों में खर्च किए जाएंगे 100 करोड़
लाजिस्टिक पार्क का निर्माण भारतीय कंटेनर निगम लिमिटेड की ओर से किया जाएगा। प्रथम चरण में पार्क के विकास लिए 30 करोड़ रुपये व्यय किया जाएगा। इसके बाद दूसरे चरण में 70 करोड़ रुपये से अन्य सुविधाओं पर किया किया जाएगा।
केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने बताया कि लाजिस्टिक पार्क के शुरू होने से मीरजापुर सहित पूर्वांचल के कारोबार में क्रांतिकारी बदलाव आएगा। इन जनपदों में निर्मित कालीन, पटरी व पीतल उद्योग, हैंडीक्रफ्ट के अलावा अनाज व खाद्य वस्तुओं को अंतरराष्ट्रीय बाजार तक पहुंचाया जा सकेगा।
निर्यातकों को एक ही जगह पर सारी सुविधाएं उपलब्ध हो जाएंगी। इस परियोजना के शुरू होने से मीरजापुर सहित आसपास के जनपदों में रोजगार में वृद्धि होगी व पलायन को रोकने में मदद मिलेगी।
सड़क व रेल मार्ग से जोड़ा जाएगा लाजिस्टिक पार्क
लाजिस्टिक पार्क की स्थापना चुनार रेलवे स्टेशन के पास किया जाएगा। इसकी वजह से यह रेलवे और सड़क मार्ग के जरिए मुंबई, चेन्नई, कोलकाता सड़क व रेल मार्ग से जोड़ा जाएगा लाजिस्टिक पार्क को एवं दिल्ली से भी जुड़ जाएगा। यहां से वस्तुएं इन महानगरों के जरिए विदेश में आसानी से निर्यात की जा सकेंगी।
निर्यात को मिलेगा लाभ
चुनार के अलावा भदोही, खमरिया और वाराणसी निर्मित कालीन विश्व में प्रसिद्ध है। इसके अलावा मीरजापुर और आसपास के इलाकों में हैंडीक्राफ्ट, रेणुकूट से हिंडालको निर्मित वस्तुएं, नैनी से प्लास्टिक की वस्तुएं एवं प्रयागराज के त्रिवेणी से शीशे का उत्पाद बड़े पैमाने पर तैयार होते हैं।
लाजिस्टिक पार्क की स्थापना से इन वस्तुओं के निर्यातकों को एक ही जगह सारी सुविधाएं मिल जाएंगी और आसानी से इन्हें देश के बंदरगाहों के जरिए विदेश में निर्यात किया जा सकेगा। इनके अलावा पूर्वांचल में उत्पादित खाद्य सामग्री, अनाज, सब्जी का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है। लाजिस्टिक हब के जरिए इन वस्तुओं को भी कम समय में देश के महानगरों एवं विदेशों में भेजने की सुविधा होगी।
लाजिस्टिक पार्क की खासियत
- 7000 वर्ग मीटर में पार्क का होगा विकास
- यहां वेयरहाउसिंग, पैकिंग व छंटाई की होगी सुविधा
- पार्क को रेलवे लाइन के जरिए देश के प्रमुख बंदरगाहों से जोड़ा जाएगा
- इसके अलवा स्थानीय कारोबार को भी बढ़ावा दिया जाएगा
निर्यात संवर्धन केंद्र मीरजापुर
कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए 29 करोड़ रुपए की लागत से सरदार वल्लभभाई पटेल निर्यात सुविधा केंद्र बनेगा। एक ही छत के नीचे किसानों के सभी प्रकार के उत्पाद को निर्यात किया जाएगा। आने वाले समय में पूर्वांचल निर्यात के क्षेत्र में बड़ा हब बनने जा रहा है। किसानों का उत्पाद देश-विदेश में निर्यात के माध्यम से पहुंचेगा।
मीरजापुर के चुनार के किसानों के मिर्च, मटर, टमाटर अन्य उत्पादन भारी मात्रा में निर्यात किया जा रहा है। वहीं उत्तर प्रदेश देश का निर्यात में तीसरा स्थान है। पूर्वांचल निर्यात के क्षेत्र में एक बड़ा हब बन रहा है। यहां के किसान निर्यात के विकल्प को अपना कर आमदनी बढ़ा सकते हैं।
भारत सरकार वाणिज्य उद्योग मंत्रालय और एपीडा के सहयोग से सरदार वल्लभभाई पटेल निर्यात सुविधा केंद्र 29 करोड़ की लागत से चुनार में बनेगा उसकी मंजूरी मिल चुकी है। एकीकृत केंद्र हो जाने से निर्यात के करने वाले किसानों के लिए एक ही छत के नीचे सुविधा उपलब्ध होगी।

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