Namami Vindhyavasini: आस्था के पथ पर भक्तिभाव का अनोखा अंदाज, त्रेतायुगीन कथाएं पग-पग पर होती हैं जीवंत
Namami Vindhyavasini त्रिकोण यात्रा पथ पर धानूभगत की बाउली से कुछ ही दूरी पर काली खोह मंदिर के द्वार के समीप बीच रास्ते प्राचीन पीपल का पेड़ है जहां प ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, मीरजापुर। नर बानरहि संग कहु कैसे। कही कथा भइ संगति जैसे। गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस से उपजे यह भाव आपको सहज विंध्याचल के त्रिकोण यात्रा के प्रथम पड़ाव के ठीक सामने नजर आता है। जैसे ही प्रथम पड़ाव स्थल के बाहर कदम पड़ते हैं बीच रास्ते के पेड़ की खोह से गदाधारी हनुमान का जय श्रीराम का जयकारा गूंज उठता है।
स्थानीय लोग जय श्रीराम का जवाब देते हैं तो पहली बार प्रथम पड़ाव पर पहुंचे लोगों के लिए हनुमान जी का यह पेड़ पर विराजमान यह स्वांगधारी स्वरूप चकित भी करता है। आम जन उधर से गुजरते हैं तो आस्था पथ पर चढ़ावा भी देते हैं और जयकारे के बदले हनुमत स्वरूप गदा की पीठ पर थपकी देकर उनको आशीष भी देते हैं।
बचपन से ही मन में थे ये बात
त्रिकोण यात्रा पथ पर धानूभगत की बाउली से कुछ ही दूरी पर काली खोह मंदिर के द्वार के समीप बीच रास्ते प्राचीन पीपल का पेड़ है जहां पर मध्य तने पर बने कोटर में बजरंगी हनुमान का स्वांग धरे आपको बुद्धिराम नजर आएंगे। पूछने पर बताते हैं कि बचपन से ही बुद्धी में एक बात समा गई थी कि हनुमान जी की तरह ही बनना और रहना है। बड़ा हुआ तो माई के दरबार में आशीष लेकर पेड़ पर विराजमान हो गया और हनुमद्स्वरूप की कामना पूरी हुई तो लोगों का भी स्नेह मिला। दान-चढ़ौती पर्याप्त मिलती है तो घर भी चलता है और इस स्वरूप की मंशा भी पूरी होती है।
हनुमान जी की सेना का ध्यान रखना है दिनचर्या
मंशा के बारे में पूछने पर सकुचाते हुए बताते हैं कि हनुमान जी की सेना का ध्यान रखना भी उनकी दिनचर्या में शामिल है। पहाड़ पर मौजूद वानरी सेना के पानी पीने के प्रबंध से लेकर उनको चने डालना और साल में हनुमान जी से जुड़े प्रमुख दिवसों के आयोजन पर वह भंडारा भी करते हैं, इस भंडारे में नर-वानर का भेद भी मिटता है। बताते हैं कि प्रभु ने इस रूप में रहने का जो आदेश दे रखा है वह पूरे मनोयोग से करने का जतन रहता है। उनके आशीर्वाद से इतना मिलता है कि साधु भी भूखा नहीं रहता और वनों में रहने वाली वानरी सेना भी छककर जाती है।
उछल कूद करती नजर आती है वानरी सेना
मीरजापुर के इन पहाड़ों के टेढ़े मेढ़े रास्ते पर जब आप गुजरेंगे तो जगह-जगह वानरी सेना पहाड़ों पर उछलकूद करती नजर आएगी। कुछ लोग उन्हें चना आदि खाने के लिए देकर अपनी आथ्ससा प्रकट करते हैं तो काली खोह मंदिर के पास सिंदूर से रंगे हनुमान के स्वरूप में लाल वस्त्र धारी हाथ में गदा लिए और जय श्रीराम का जयकारा लगाते बुद्धिराम नजर आऐंगे। पेड़ पर ही अपनी चौकड़ी जमाए हनुमानजी के स्वरूप में नजर आने वाले बुद्धिराम तीन दशकों से अधिक समय से पीपल के पेड़ पर ही सुबह से गोधूलि बेला तक नजर आते हैं और वह सिर्फ रात में ही सोने के लिए अपने घर का रुख करते हैं।
बुद्धिराम को भक्त हनुमान के रूप में जानते हैं लोग
जिले के शिवपुर में जन्मे बुद्धिराम को सभी स्थानीय लोग भक्त हनुमान के रूप में जानते हैं। अब उनकी पहचान काली खोह के हनुमान जी के रूप में हो चली है। स्थानीय लोग बताते हैं कि उन्होंने अपना जीवन सिर्फ बंदरों की सेवा में ही लगा रखा है। मन में आखिर वह कौन सा भाव उपजा जो वह हनुमान जी का स्वांग धर बैठे? पूछने पर बताते हैं - सब राम जी की माया

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