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    Namami Vindhyavasini: आस्था पथ पर बीस घंटे की रौनक, सुबह चार बजे से लेकर रात 12 बजे तक खुली रहती हैं दुकानें

    Updated: Sat, 09 Mar 2024 03:39 PM (IST)

    मंदिर परिसर में अक्सर ही हलवा पूड़ी आदि की व्यवस्था भक्तों की ओर से निश्शुल्क रहती है। वहीं ठहरने के लिए कई जगहों पर रैन बसेरे भी हैं जिनकी सूचना जगह ...और पढ़ें

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    Namami Vindhyavasini: पंडा-पुरोहितों के जरिए श्रृंगारिया महाराज की पसंद की दुकानों पर नजर आती है।

    जागरण संवाददाता, मीरजापुर। विंध्यधाम के अलग-अलग रास्तों से गुजरें तो महसूस होगा कि परिक्षेत्र की नब्बे प्रतिशत दुकानें पूजा सामग्री की, शेष में अन्य दुकानें हैं। मुख्य गेट के पास मौजूद कारोबारी बताते हैं कि डेढ़ लाख रुपये महीने तक की कीमत में दुकान लेने के बाद भी पर्याप्त बचत और कमाई माता रानी की कृपा से हो रही है।

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    नव्य-भव्य धाम के निर्माण के साथ कई दुकानें परिक्षेत्र का हिस्सा हो चुकी हैं तो कई पीछे की ओर अब तक रहे आवास धाम के मार्ग पर आ गए हैं। किसी की दुकान गई और कारोबार गया तो किसी का घर धाम के रास्ते पर आया तो उसने आवास के आगे के भाग को तुरंत दुकान में बदलकर लाभ कमाना शुरू कर दिया। कहीं खुशी है तो कहीं निराशा के भाव हैं मगर कारोबारी नए स्थान पर कारोबार भी अब धाम के पूरा होने के पूर्व ही जमा चुके हैं।

    मीरजापुर के मार्ग पर मौजूद धाम का मुख्य द्वार हो या गंगा द्वार की ओर का हिस्सा सभी जगह इस बात की भी चिंता है कि नंगे पैर आने वाले भक्तों को गर्मी में तपता पत्थर सालेगा तो प्रशासन गंगा द्वार की ओर से मध्य भाग को ढंकने के लिए शेड की व्यवस्था में मार्च के अंत तक काम पूरा करने में व्यस्त है। धाम के प्रमुख मार्गों की दुकानों के किराए आसमान छू रहे हैं। यह एक दिन में नहीं हुआ बल्कि धाम बनने की घोषणा के साथ ही कारोबार का रंग और भी चटख हो चला है।

    प्रसाद की दुकाने सर्वाधिक हैं तो साड़ी या चायपान का कारोबार करने वाले भी दुकान के एक हिस्से में पूजन की सामग्री को रखकर आस्था पथ को सुबह चार बजे से रात्रि 12 बजे तक रंगत में बनाए नजर आते हैं। सुबह ब्रह्म मुहूर्त की मंगला आरती से लेकर रात्रिकालीन शयन आरती तक हर श्रद्धालु को अपनी दुकान से पूजन सामग्री खरीदने की अनुनय-विनय-चिरौरी-मनुहार करते लोग नजर आते हैं। भीड़ ऐसी कि कतार मानो कभी कम होने का नाम नहीं लेने वाली हो।

    सबसे अधिक भीड़ पंडा-पुरोहितों के जरिए श्रृंगारिया महाराज की पसंद की दुकानों पर नजर आती है। भक्त मानते हैं कि यहां की दुकानों से सामग्री माता के दरबार में जाती है तो यहां से ही प्रसाद लेना ठीक रहेगा। हालांकि पंडा समाज इससे असहमत है। विंध्य पंडा समाज से जुड़े धर्मेंद्र पांडेय स्पष्ट करते हैं कि मां के लिए भाव काफी है। ईश्वर भाव के भूखे हैं। आप भाव पूर्वक कहीं से भी पूजन सामग्री लेंगे तो भी वह स्वीकार्य है। आप मानसिक पूजन भी कर लें तो भी वह भक्त की आस्था है।

    बाजार तो बस एक माध्यम मात्र है आस्था को मां के समक्ष प्रकट करने का। ईश्वर दाता हैं लिहाजा भक्त क्या चढ़ावा दें यह उनके सामर्थ्य पर निर्भर करता है। वह आगे जोड़ते हैं कि कोई भी भक्त श्रृंगारिया महाराज के माध्यम से किसी भी पहर की पूजा के लिए अपनी ओर से आस्था और क्षमता के अनुसार श्रृंगार और पूजन सामग्री दान कर सकता है। इसके लिए किसी प्रकार के कीमत की बाध्यता नहीं है। सैकड़ों साड़ियां प्रतिदिन मां के दरबार में भक्त भेंट करते हैं तो यहां उसकी कीमत नहीं बल्कि भाव महत्व रखता है।

    कीमतें वही जो आप चाहें

    मंदिर में दर्शन के लिए जाने वाले भक्त अपने बजट में प्रसाद ले सकते हैं। नारियल चुनरी और फूल पचार रुपये में, पूजा की टोकरी श्रृंगार की सामग्री सहित सौ रुपये, तस्वीर और बड़ी टोकरी ढाई सौ रुपये तक वहीं माता की बड़ी चुनरी या साड़ी लेने पर पांच सौ रुपये से लेकर सात सौ तक में मिल जाएगा। इस लिहाज से बजट में भक्तों के लिए प्रसाद और पूजन सामग्री मिल जाती है। विंध्यवासिनी को लाल गुड़हल और लाल गुलाब पसंद होने की वजह से इन फूलों को हर भक्त तलाशता है लेकिन अधिकतर सीजन में यहां पर भक्तों को गेंदे की माला ही सुलभ होती है।

    इसके अतिरिक्त आप हवन पूजन पुरोहितों के माध्यम से करना पाहें तो हवन सामग्री और समिधा आदि बीस रुपये से लेकर दो सौ रुपये तक की कीमत में, आम की लकड़ी पचास रुपये, घी की डिब्बी, कलावा, पान सुपारी आदि भी दुकानों से बाजार मूल्य पर खरीदी जा सकती है। वहीं दक्षिणा के लिए बजट के अनुसार जो भी मूल्य तय हों वह आप चुका सकते हैं। अमूमन नैत्यिक भक्तों के पुरोहित स्थाई होते हैं तो वह ठहरने से लेकर अन्य सुविधाएं भी अपने यजमान को प्रदान करते हैं। त्रिकोण यात्रा के पथ पर पड़ने वाले प्रमुख मंदिरों में पूजन सामग्री विंध्याचल मंदिर की अपेक्षा काफी कम है।

    ठहरने के स्थान और भोजन की व्यवस्था

    मंदिर परिसर में अक्सर ही हलवा पूड़ी आदि की व्यवस्था भक्तों की ओर से निश्शुल्क रहती है। वहीं ठहरने के लिए कई जगहों पर रैन बसेरे भी हैं जिनकी सूचना जगह जगह दी गई है। इसके अलावा होटल, धर्मशाला, यात्री निवास, गेस्ट हाउस आधुनिक से लेकर पुराने परंपरागत शैली में हर किसी के बजट में शामिल हैं। दो हजार रुपये तक आधुनिक होटल प्रतिदिन की दर पर उपलब्ध हैं तो धर्मशालाओं में सौ रुपये में भी कमरे आसानी से उपलब्ध हैं।

    एक दिन की यात्रा पर पहुचे लोगों को भोजन की विविधता के साथ ही सात्विक भोजन भी धाम के आसपास लगभग बीस घंटों तक उपलब्ध है। कुछ होटल रात भर खुले रहते हैं। रोटी, दाल, चावल, सब्जी की परंपराओं से इतर अब चाइनीज और साउथ इंडियन भोजन भी आपकी बजट में आसानी से सुलभ हैं। सुबह के नाश्ते के तौर पर दही, जलेबी, पूड़ी, समोसा, कचौड़ी, दही बड़ा आदि खाने की परंपरा है तो कुछ ठेले और खोमचे आपको बिहार की लिट्टी-बाटी और चाोखा का भी जायका पचास रुपये प्लेट तक के भाव में उपलब्ध कराते हैं।

    वाहनों का किराया

    तिपहिया आटो प्रमुख रूटों के लिए उपलब्ध है। ट्रैवेल एजेंसियां आपको कार आदि की भी सुविधा त्रिकोण यात्रा और जिले भर में भ्रमण के लिए उपलब्ध कराती हैं। मीरजापुर से विंध्याचल की दूरी करीब आठ किलोमीटर की है। जहां पर शेयरिंग का किराया बीस से तीस रुपये है तो बुक करके जाने पर दिन में सौ रुपये और रात्रि में डेढ़ सौ रुपये तक हो सकता है।

    रात आठ बजे के बाद सड़क पर चलते वाले वाहनों की उपलब्धता कम होती जाती है। रात्रि दस बजे के बाद बड़ी मुश्किल से आपको वाहन मिल सकेगा। इस लिहाज से सुबह से लेकर रात्रि दस बजे तक ही यात्रा करना सुविधाजनक है। बड़े वाहनों की उपलब्धता मीरजापुर से विंध्याचल तक कम होने की वजह से छोटे तिपहिया वाहनों की ही सर्वाधिक संख्या इस रूट पर नजर आती है।