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    मीरजापुर के वैज्ञानिक डा. मयंक की बड़ी उपलब्धि, नैनो एक्सिपिएंट को मिला नया नाम, अब ‘सुप्रा-प्लेक्स’ कहलाएगी तकनीक

    Updated: Tue, 09 Sep 2025 05:02 PM (IST)

    चुनार के डॉ. मयंक सिंह ने विकसित की नैनो एक्सिपिएंट तकनीक जिसे ‘सुप्रा-प्लेक्स (नैनो) एक्सिपिएंट’ नाम मिला है। यह दवा को सुरक्षित और असरदार बनाएगी। अमेरिका के मिशिगन में इसका शुभारंभ हुआ। कोविड-19 में विकसित यह तकनीक दवाओं को प्रभावी बनाएगी। सुप्रा-प्लेक्स का कण आकार 10 नैनोमीटर से कम है जिससे दवा आसानी से खून तक पहुंचती है।

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    यह फार्मास्यूटिकल्स, कॉस्मेटिक्स, कृषि उर्वरक जैसे क्षेत्रों में उपयोगी है।

    जागरण संवाददाता, चुनार (मीरजापुर)। चुनार क्षेत्र के बगहीं गांव निवासी भारतीय मूल के वैज्ञानिक डा. मयंक सिंह ने वैश्विक स्तर पर नई पहचान बनाई है। उनकी विकसित नैनो एक्सिपिएंट तकनीक को अब ‘सुप्रा-प्लेक्स (नैनो) एक्सिपिएंट’ नाम से जाना जाएगा। यह तकनीक दवाओं को अधिक सुरक्षित, असरदार और किफायती बनाएगी।

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    शिक्षक दिवस के अवसर पर पांच सितंबर को संयुक्त राज्य अमेरिका के मिशिगन स्थित नेशनल डेंड्रिमर एंड नैनोटेक्नोलॉजी सेंटर में डा. मयंक सिंह और संस्थान के सीईओ प्रो. डा. डोनाल्ड टोमालिया ने संयुक्त रूप से इस तकनीक का शुभारंभ किया। इसे डा. टोमालिया के 87वें जन्मदिन पर उन्हें समर्पित किया गया।

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    यह तकनीक कोविड-19 महामारी के दौरान विकसित की गई थी। डेंड्रिटिक संरचना पर आधारित यह एक्सिपिएंट दवाओं को न्यूनतम लागत पर अधिक प्रभावी बनाने में सक्षम है। प्रारंभ में इसे केवल एक्सिपिएंट कहा जाता था, लेकिन अब इसे वैश्विक मान्यता मिल चुकी है। अमेरिका-आधारित इस पेटेंटेड तकनीक की नेशनल फेज एंट्री भारत, यूरोप, कनाडा और मैक्सिको सहित कई देशों में हो चुकी है। इसका उद्देश्य दवाओं को सुरक्षित और पर्यावरण अनुकूल बनाना है।

    सुप्रा-प्लेक्स का कण आकार 10 नैनोमीटर से भी कम है। इतने सूक्ष्म आकार के कारण यह दवा को खून और आवश्यक ऊतकों तक आसानी से पहुँचा देता है और बाद में शरीर से बाहर निकल जाता है। यह तकनीक फार्मास्यूटिकल्स, न्यूट्रास्यूटिकल्स, फूड सप्लीमेंट्स, कॉस्मेटिक्स, वैक्सीन, पशु चिकित्सा उत्पाद, कृषि उर्वरक, औद्योगिक गोंद और खाद्य संरक्षण जैसे क्षेत्रों में उपयोगी होगी।

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    डा. मयंक ने बताया कि डेंड्रिटिक संरचना एक त्रि-आयामी जाल होती है, जो पेड़ की शाखाओं जैसी होती है। यह दवाओं को सुरक्षित रूप से पकड़ने और सही स्थान तक पहुँचाने की क्षमता रखती है। इस तकनीक से दवाओं की पानी में घुलनशीलता बढ़ती है, स्वाद और गंध नियंत्रित होती है और शेल्फ लाइफ में सुधार होता है।

    इस परियोजना में डा. डोनाल्ड टोमालिया, डा. डेविड हेडस्ट्रैंड और लिंडा निक्सन भी शामिल रहे। वर्तमान में डा. मयंक विश्व स्वास्थ्य संगठन, जिनेवा के सार्वजनिक सलाहकार, सेंट्रल मिशिगन यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिसिन के ग्रेजुएट फैकल्टी एवं एडजंक्ट प्रोफेसर और यूनाइटेड किंगडम-लंदन में रासायनिक जीव-विज्ञान के प्रतिष्ठित फ़ैकल्टी में कार्यरत हैं। उन्हें भारत, अमेरिका, लंदन, कनाडा, जापान, पुर्तगाल और स्विट्ज़रलैंड से कई सम्मान मिल चुके हैं।

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