Kanwar Yatra : ‘डाक कांवड़’ है आस्था, उत्साह और संकल्प का महासंगम, इसके बारे में कितना जानते हैं आप
Meerut News धर्म के पथिकों की दौड़ है डाक कांवड़। यह सिर्फ तेज गति से चलने का नाम नहीं है। यह जीवन के क्षण-क्षण को आराधना बना देने की प्रक्रिया है। बिना थके बिना रुके शिव की ओर पहुंचने की भक्ति की दौड़। इसमें आत्मा दौड़ती है। न आंखों में नींद न पैरों में विराम। केवल एक धुन एक लगन शिवालय तक पहुंचना है और शीघ्र पहुंचना है।

संजीव तोमर, जागरण, मोदीपुरम (मेरठ)। हरिद्वार से अपने गंतव्य तक पैदल लेकर जाने वाली कांवड़ यात्रा में इस बार युवा कांवड़ियों की संख्या अधिक है। उनका तर्क है कि भगवान भोलेनाथ की आराधना से शक्ति मिलती है, साथ ही दौड़ लगाने से मन व शरीर स्वस्थ रहता है। डाक कांवड़ लाने वाले युवा बहुत उत्साहित हैं।
प्रत्येक कांवड़िये के हिस्से में 18 से 22 किमी
पांच वर्षों से डाक कांवड़ लाने वाले राजस्थान में अलवर ग्रुप के युवा कांवड़ियां धर्मपाल, अरविंद, मनोज सिंह ने बताया कि डाक कांवड़ के एक ग्रुप में लगभग 20 से 25 युवा कांवड़िये होते हैं। हरिद्वार, गौमुख, नीलकंठ आदि धार्मिक जगहों से पवित्र गंगाजल भरने के बाद डाक कांवड लेकर अपनी बारी-बारी से दौड़ लगाते हुए लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं। हर कांवड़िये के हिस्से में एक बार 100 से 150 मीटर तक की दौड़ आती है। प्रत्येक कांवड़िये के हिस्से में 18 से 22 किमी आते हैं। ध्यान रखना होता है कि कांवड़ खंड़ित न होने पाए।
इस तरह लेकर जाते हैं गंगाजल
मेरठ और आसपास के शहरों से हरिद्वार की दूरी 150 से 200 किलोमीटर है। वहीं राजस्थान, हरियाणा से हरिद्वार की दूरी और अधिक होती है। इस दूरी को कांवड़ियों का ग्रुप अलग-अलग हिस्सों में बांटता है। एक कांवड़िया जल लेकर दौड़ता है। दूसरा कांवड़िया 100 से 150 मीटर दूर खड़ा होकर प्रतीक्षा करता है। इसी तरह यह डाक कांवड़ आगे बढ़ती है। बाकी ग्रुप के कांवड़िये साथ चल रहे वाहन में सवार रहते हैं, जिसमें जलपान की भी व्यवस्था होती है। हरिद्वार से अपने शहर तक की दूरी को कांवड़ियों का ग्रुप कई हिस्सों में बांटता है।
तय समय में पहुंचानी होती है डाक कांवड़
हरियाणा के भिवानी निवासी कांवड़िये अंकुर सिंह, नरेंद्र सिंह का कहना है कि डाक कांवड़ में तय समय में निर्धारित शिवालय तक पहुंचना होता है। ग्रुप आपस में चर्चा कर समय सीमा निर्धारित करते हैं। राजस्थान के अलवर निवासी धारा सिंह का कहना है कि हरिद्वार से अलवर में अपने गांव की दूसरी को पूरा करने में हमारे ग्रुप ने 35 घंटे निर्धारित किया है। लगातार दौड़ने के कारण कुछ कांवड़ियों का स्वास्थ्य भी बिगड़ता है। मगर, सब कष्टों के बाद आखिरकार लक्ष्य तक पहुंच जाते हैं। भोले सबका बेड़ा पार करते हैं।
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