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कीट भक्षी ब्लैक ड्रांगो भी हो गया प्रसाद प्रेमी

मंदिरों में पूजा की यह आस्थावान और समृद्ध व्यवस्था हजारों साल से चली आ रही है लेकिन प्रसाद के रूप में मेवा और लड्डू समेत अन्य भोज्य सामग्री मंदिर के अलावा आसपास भी बिखेर दी जाती है। ये लापरवाही कुछ नाजुक पक्षियों और इंसान के लिए भी मुसीबत का सबब बन रही है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 28 Oct 2021 10:57 AM (IST)Updated: Thu, 28 Oct 2021 10:57 AM (IST)
कीट भक्षी ब्लैक ड्रांगो भी हो गया प्रसाद प्रेमी

ओम बाजपेयी, मेरठ : पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा

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लडवन का भोग लगे संत करे सेवा।

मंदिरों में पूजा की यह आस्थावान और समृद्ध व्यवस्था हजारों साल से चली आ रही है, लेकिन प्रसाद के रूप में मेवा और लड्डू समेत अन्य भोज्य सामग्री मंदिर के अलावा आसपास भी बिखेर दी जाती है। ये लापरवाही कुछ नाजुक पक्षियों और इंसान के लिए भी मुसीबत का सबब बन रही है। दरअसल, यह गलत तरीका पक्षियों की दुनिया में चौंकाने वाला परिवर्तन ला रहा है। कीट- पतंगों को खाने के लिए मशहूर ब्लैक ड्रांगो पंजाब में गुरुद्वारों के प्रसाद खाते चाव से देखा जा रहा है। इस बदलाव से पक्षी विज्ञानी हैरत में हैं। गौरतलब यह भी है कि मंदिर, मजारों व गुरुद्वारों के आसपास प्रजाति विशेष के पक्षियों की तादाद इतनी अधिक बढ़ गई है वे भारतीय उपमहाद्वीप के दूसरे पक्षियों के लिए खतरा भी बन गए हैं।

2009 तक ब्लैक ड्रांगो के पका हुआ भोज्य पदार्थ खाने के प्रमाण नहीं थे

मूलरूप से मेरठ के रहने वाले पक्षी विज्ञानी आर्निथोलाजिस्ट डा. रजत भार्गव अपने नियमित बर्ड वाचिंग के दौरान अमृतसर में थे। ठंड की कुहासे वाली सुबह गुरुद्वारा हरमिंदर साहिब के आसपास जब वह पक्षियों के झुडों का निरीक्षण कर रहे थे तभी उनकी नजर मुंडेर पर बैठे ब्लैक ड्रागों पर पड़ी। ब्लैक ड्रागो जिसे उसके साथी जीवों के प्रति आक्रामक व्यवहार के चलते कोतवाल की संज्ञा दी जाती है। मूलत: यह पक्षी कीट पतंगे खाता है, लेकिन वहां देखा गया कि जैसे ही कढ़ा प्रसाद का भोग लगा और श्रद्धालुओं द्वारा मुंडेर और बुर्जियों पर रखा गया तो यह पक्षी उसे खाने के लिए टूट पड़े। रजत बताते हैं उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। क्योंकि यह पक्षी कीट भक्षी होता है। ब्लैक ड्रांगों के साथ राक पिगन, हाउस स्पेरो पक्षी भी थे।

अब तक पका हुआ भोजन करने के साक्ष्य नहीं थे

पिछले आठ साल से इस पक्षी के व्यवहार को आब्जर्व कर रहे डा. रजत ने घी में डूबा हलवा खाते हुए ब्लैक ड्रांगो को कैमरे में कैद भी किया। इस बदलाव पर डा. रजत का अध्ययन पत्र बोंबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी की प्रतिष्ठित पत्रिका हार्नबिल में प्रकाशित किया गया है। यह बात इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सालिम अली ने अपनी पुस्तक हैंड बुक आफ बर्ड आफ इंडिया एंड पाकिस्तान 1984 में ब्लैक ड्रांगो को कीट भक्षी कहा है। यह छिपकली और छोटे पक्षियों का भी शिकार करता है। 2009 में डेल होयो की द हैंडबुक आफ द ब‌र्ड्स आफ द व‌र्ल्ड में ब्लैक ड्रांगों के फीडिंग रिकार्ड में स्पष्ट उल्लेख है। जिसमें कौए की तरह ड्रांगो प्रजाति को पका हुआ भोज्य पदार्थ खाने के कोई प्रमाण नहीं है। दूसरे पक्षियों की आवाज की नकल करता ब्लैक ड्रांगो

काले रंग का यह पक्षी कोयल और कौआ नहीं है। इसे इसकी पूंछ से आसानी से पहचाना जा सकता है जो अंतिम सिरे पर दो भागों में विभक्त होती है जो खासी आकर्षक लगती है। ब्लैक ड्रागो के पंख शीशे की तरह चमकते हैं। इनमें दूसरे पक्षियों की आवाज की नकल उतारने की क्षमता होती है। पक्षी विज्ञानियों के अनुसार यह समूह में अपने से बड़े पक्षियों और यहां तक बंदरों पर भी हमला कर देता है। भारत में इसे भुजंगी या कोतवाल के नाम से जाना जाता है। औघड़नाथ मंदिर के आसपास भी दिखा परिवर्तन

पक्षी व्यवहार पर लंबे समय से शोध कर रहे डा. रजत कहते हैं कि मंदिरों के आसपास दाना-पानी डालने से पक्षियों को आसानी से भोज्य पदार्थ मिल जाता है। ऐसे में यहां आक्रामक पक्षी पहुंचते हैं जिससे यहां के मूल पक्षियों की प्रजाति खतरे में भी पड़ने लगी है। मेरठ के औघड़नाथ मंदिर का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि लगातार अध्ययन में उन्होंने पाया कि यहां कॉमन मैन की संख्या तो बढ़ गई, लेकिन गौरैया और अन्य स्थानीय पक्षियों की संख्या घटी है।


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