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    Saiyaara : फिल्म सैयारा की वाणी की बीमारी के बारे में कितना जानते हैं आप, यहां पढ़ें विशेषज्ञों की राय

    Updated: Fri, 01 Aug 2025 04:27 PM (IST)

    Saiyaara सुपर हिट फिल्म सैयारा में नायिका अनीत पड्डा अल्जाइमर बीमारी से पीड़ित बताई गई हैं। फिल्म में इस बीमारी को लेकर कई प्रकार की सिनेमेटिक लिबर्टी ली गई है। दूसरी ओर अल्जाइमर के उपचार से जुड़े डाक्टरों का कहना है कि इस बीमारी में रोगी वर्तमान की बातें भूलने लगता है उसे पुरानी बातें याद रहती हैं। सही समय पर उपचार शुरू होने से आराम मिल सकता है।

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    सैयारा फिल्म में नायक अहान पांडे और नायिका अनीत पड्डा (फोटो क्रेडिट- एक्स)

    मेरठ, प्रवीण वशिष्ठ। इन दिनों बालीवुड फिल्म सैयारा (Saiyaara) का जादू दर्शकों खासकर 'जेन जी' (Gen Z) के सिर पर चढ़कर बोल रहा है। उन्हें इस फिल्म के नायक अहान पांडे (Ahaan Panday) और नायिका अनीत पड्डा (Anit Padda) का अभिनय बहुत अच्छा लगा है। फिल्म में अनीत पड्डा ने वाणी नाम की अल्जाइमर बीमारी (Alzheimer's disease) से पीड़ित युवती का किरदार निभाया है। ऐसे में यह बीमारी में भी चर्चा में आ गई है।

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    इसमें याददाश्त, समझ और फैसले लेने की क्षमता पर बहुत प्रभाव पड़ता है। इससे बचाव के लिए समय रहते कदम उठाया जरूरी है। लाला लाजपत राय स्मारक मेडिकल कालेज मेरठ व प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले न्यूरोलाजिस्ट और मानसिक रोग विशेषज्ञों के पास ऐसे रोगी लगभग रोजाना आ रहे हैं। आइये इस बीमारी को लेकर शहर के विशेषज्ञ चिकित्सकों की राय जानते हैं। 

    इस बीमारी को शुरू में नोटिस नहीं कर पाते कई लोग: डा. रवि राणा

    वरिष्ठ मनोचिकित्सक डा. रवि राणा (Dr. Ravi Rana) कहते हैं कि डिमेंशिया याददाश्त की कमी की बीमारी है। यह कई प्रकार की होती है। अल्जाइमर भी उसका एक प्रकार है। यह उम्र से संबंधित बीमारी है और पचास साल से अधिक आयु वालों में होने की संभावना ज्यादा होती है। इसके कारण हैं जैसे जेनेटिक, लाइफ स्टाइल में बदलाव, ब्लड प्रेशर, शुगर, स्ट्रेस, मोबाइल पर स्क्रीन टाइम अधिक होना, हार्मोनल और विटामिन की कमी आदि हैं।

    जवान लोगों में डिमेंशिया या अल्जाइमर नहीं होता। इसे हम सूडो डिमेंशिया (Pseudo dementia)। इसके लक्षण अल्जाइमर जैसे हो सकते हैं, लेकिन वास्तव में यह होता नहीं है। इसमें स्ट्रेस या डिप्रेशन की वजह से नर्वस सिस्टम कमजोर पड़ जाता है। दिमाग में न्यूरॉन्स कमजोर हो जाते हैं। इसका और अल्जाइमर का उपचार अलग-अलग होता है।

    डा. रवि राणा कहते हैं कि अल्जाइमर के साथ बड़ी समस्या यह है कि इसे अधिकतर लोग शुरू में समझ नहीं पाते। उन्हें याद्दाश्त ठीक लगती है, क्योंकि समस्या वर्तमान से जुड़ी होती है, जैसे कुछ देर पहले रखे सामान को भूल जाना, खाना खाकर भूल जाना, रास्ता भूल जाना, करीबियों के नाम भी भूल जाना आदि लक्षण हो सकते हैं।

    दूसरी तरफ रोगी को पुरानी चीजें याद रहती हैं। बीमारी बढ़ने पर रोगी को गुस्सा आना, नींद नहीं आना और व्यवहार में परिवर्तन दिखते हैं। ऐसी हालत में मानसिक रोग विशेषज्ञ की बड़ी भूमिका है। वह बीमारी को पहचान कर उपचार शुरू करते हैं। इस बीमारी के साथ एंजाइटी और स्ट्रेस जैसे डिसऑर्डर का उपचार भी किया जाता है।

    डा. रवि राणा कहते हैं अल्जाइमर के इलाज में डाक्टर की बताई दवाओं के साथ-साथ रोगी के इलाज में परिवार की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। परिवार को रोगी के गुस्से जैसे व्यवहारिक परिवर्तनों को समझते हुए उसकी दिनचर्या में सहयोग करना चाहिए। मरीज जितना एक्टिव रहेगा उसके जल्दी सामान्य स्थिति की तरफ लौटने की संभावना अधिक होगी।

    मानसिक रोग विभाग में आने वालों में दस प्रतिशत वृद्ध अल्जाइमर पीड़ित: डा. तरुण पाल

    मेडिकल कालेज के मानसिक रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डा. तरुण पाल (Dr. Tarun Pal) कहते हैं कि उनके यहां आने वाले बुजुर्ग रोगियों में दस प्रतिशत से अधिक अल्जाइमर पीड़ित होते हैं। यह बीमारी सबसे अधिक साठ साल से अधिक उम्र के लोगों में होती है। शुरुआत 40 की उम्र से भी हो सकती है।

    युवाओं में अल्जाइमर की बीमारी के मामले बहुत कम आते हैं, लेकिन देखा गया है कि जिनके परिवार में इस बीमारी की हिस्ट्री रही है, वे इससे पीड़ित हो सकते हैं, अल्जाइमर में मरीज रोजमर्रा की चीजें अधिक भूलता है। उपचार के दौरान हमें इसमें तीमारदार पर भी निर्भर रहना पड़ता है। उसके बताए मरीज में दिख रहे भूलने के लक्षणों के आधार पर उपचार शुरू होता है और मरीजों को आराम मिल जाता है।

    शुरूआत में मरीज भूलता है अन्य लोगों या वस्तुओं का नाम: डा. दीपिका सागर

    लाला लाजपत राय मेडिकल कालेज में न्यूरोलोजी विभाग की अध्यक्ष डा. दीपिका सागर (Dr. Deepika Sagar) का कहना है कि अल्जाइमर न्यूराजिकल डिस्आर्डर (Neurological disorder) है। इसमें साइक्लोजिकल डिस्टरबेंस भी हो सकते हैं। यह बीमारी युवावस्था में नहीं होती है। इस बीमारी में ब्रेन के अंदर अब्नोरमल प्रोटीन (Abnormal Protein) बनने लगते हैं। दिमाम में यह प्रोसेस आमतौर से 65 साल की आयु से अधिक में होता है।

    अर्ली अल्जाइमर डिजीज भी एक टर्म है, जिसमें यह बीमारी एक दशक पहले यानि 55 या 50 साल की उम्र के आसपास हो सकती है। इसमें आदमी पुरानी चीजें नहीं भूलता। नई चीजें भूलता है। जैसे किसी को सुबह रुपया दिया और कुछ घंटे बाद भूल जाता है।

    इसी तरह की अन्य दिक्कत भी आने लगती हैं। शुरूआत में मरीज अन्य लोगों या वस्तुओं का नाम भूलना शुरू करते हैं। जैसे पानी मंगाने के लिए व्यक्ति को ग्लास की जरूरत हो तो वह कहता है कि "मुझे पानी चाहिए, वो लाकर दे दो"।

    ट्रीटमेंट शुरू होते ही मिलने लगता है आराम

    डा. दीपिका सागर का कहना है कि इसमें इंसान की शार्ट टर्म मेमारी यानी रिसेंट मेमोरी जाती है, पुरानी मेमोरी अपना जन्मदिन, अपने हस्ताक्षर और नौकरी में सलेक्शन की तिथि तक याद रहती है, लेकिन इंसान यह भूल जाता है कि सुबह नाश्ते में क्या खाया। ऐसा होने में डाक्टर के पास आएं। इससें ट्रीटमेंट शुरू होते ही आराम मिलना शुरू हो जाता है। अल्जाइमर में अन्य भूलने वाली बीमारियों की अपेक्षा उपचार का रिस्पोंस अच्छा आता है। हमारी ओपीडी में आने वाले कई मरीज ऐसे हैं, जिनकी दवा ठीक होने पर कम की गई और जब पूरी तरह ठीक होने पर बंद कर दी गई।

    इन बातों का ध्यान रखने से मिलेगा लाभ

    चिकित्सकों के अनुसार अल्जाइमर और यादाश्त से जुड़ी अन्य समस्याओं से बचाव को तनाव मुक्त रहने का प्रयास करना चाहिए। शुगर और ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखें। नियमित योग-व्यायाम करें। धूम्रपान, चिकनाई युक्त भोजन और जंक फूड से परहेज करें। मौसमी फल-सब्जियां खाएं। अखरोट-बादाम आदि भी ले सकते हैं।

    कम से कम छह से आठ घंटे की नींद लें। मोबाइल पर स्क्रीन टाइम घटाएं। रोग का लक्षण दिखते ही अपने डाक्टर से संपर्क करें।