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मेरठ के हस्तिनापुर में बनेगा पहाड़ी बया पक्षी का संरक्षित प्रजनन केंद्र, तेजी से घट रही है इसकी संख्‍या

घटती पक्षियों की संख्या में अब उत्तर भारत की सबसे लोकप्रिय पक्षी फिन वीवर यानी पहाड़ी बया का नाम भी जुड़ गया है। दुनिया भर में घटती इसकी संख्या को देखते हुए इस पक्षी को एनडेंजर्ड पक्षी की सूची में शामिल किए जाने की मांग तेजी से उठ रही है।

By Himanshu DwivediEdited By: Published: Wed, 07 Apr 2021 02:44 PM (IST)Updated: Wed, 07 Apr 2021 02:44 PM (IST)
मेरठ के हस्तिनापुर में बनेगा पहाड़ी बया पक्षी का संरक्षित प्रजनन केंद्र।

[अमित तिवारी] मेरठ। लगातार घटती पक्षियों की संख्या में अब उत्तर भारत की सबसे लोकप्रिय पक्षी फिन वीवर यानी पहाड़ी बया का नाम भी जुड़ गया है। दुनिया भर में लगातार घटती इसकी संख्या को देखते हुए इस पक्षी को एनडेंजर्ड पक्षी की सूची में शामिल किए जाने की मांग तेजी से उठ रही है। साल 2016 में ही बर्डलाइफ इंटरनेशनल की ओर से इस पक्षी को वल्नरेबल लिस्ट में डाला था। फिन वीवर यानी पहाड़ी बया की वर्तमान और पूर्व स्थिति पर रिसर्च करने के बाद बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के वरिष्ठ पक्षी विज्ञानी डा. रजत भार्गव की किताब प्रकाशित होने के बाद प्रदेश सरकार ने पहाड़ी बया के संरक्षण का प्रोजेक्ट दिया है। इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत मेरठ जिले के हस्तिनापुर फारेस्ट ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में संरक्षित प्रजनन केंद्र बनाया जाएगा। प्राथिमक तौर पर प्रोजेक्ट के लिए प्रदेश सरकार की ओर से 15 लाख रुपये की धनराशि आवंटित की गई है। इसमें प्रोजेक्ट की जरूरत के अनुरूप अतिरिक्त 10 लाख रुपये राशि का प्रावधान भी रखा गया है।

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अप्रैल के अंतिम सप्ताह में शुरू होगा प्रोजेक्ट

डा. रजत भार्गव के अनुसार यह पक्षी ब्रीडिंग सीजन में मई के अंतिम सप्ताह से दिखनी शुरू होती है। वर्तमान में भी आठ से 10 लोगों की टीम पक्षी खोजने में लगे हुए हैं। यह बिजनौर के शेरकोट, हरेवली, भवानपुर आदि जगहों पर विशेष तौर पर दिखती है। डा. भार्गव भी मंगलवार को अपनी टीम के साथ हैदरपुर में पहाड़ी बया को ही देखने गए थे। कभी बहुतायत में दिखने वचाली यह पक्षी अब दिखनी बेहद कम हो गई है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हस्तिनापुर क्षेत्र में यह पक्षी अब भी दिखती है। सीजन में पक्षी के आते ही उन्हें पकड़ने की व्यवस्था की जाएगी जिससे संरक्षित प्रजनन शुरू किया जा सके। इनको पकड़ने की अनुमति सरकार की ओर से मिल चुकी है। पक्षी मिलते ही प्रजनन की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। इस बाबत प्रजनन केंद्र के लिए पिजड़ा तैयार करने का कार्य अप्रैल के अंतिम सप्ताह से शुरू हो जाएगा। यह प्रोजेक्ट तीन साल में पूरा किया जाना है। यह कोविड-19 के कारण पूरा 2020 लाकडाउन रहने से पहले ही एक साल पीछे हो चुका है।

प्रदेश में आठ जिले हैं पहाड़ी बया के घर

उत्तर भारत और नेपाल के विभिन्न जगहों पर पाई जाने वाली पहाड़ी बया उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में आठ जिले में पाई जाती है। इनमें बिजनौर, रामपुर, मेरठ, गौतमबुद्धनगर, मुजफ्फरनगर, हापुड़, इटावा और गोरखपुर है। इनमें से मुख्य रूप से रामपुर जिले के बिलासपुर, बिजनौर और मेरठ में यह पक्षी सर्वाधिक पाई जाती है। मेरठ में यह पक्षी दो दशक पहले तक बिजनौर बराज से गढ़ गंगा, गढ़मुक्तेश्वर, हस्तिनापुर वाइल्डलाइपु सैंचुअरी के क्षेत्र में पाई जाती थी। इसी तरह विभिन्न जिलों में दिखने वाली यह पक्षी धी-धीरे कम होती गई और दिखना बंद हो गया। डा. रजत भार्गव के अनुसार दुनिया भर में इसकी संख्या एक हजार से भी कम रही गई और लगातार घट रही है। इन्हें बचाने के लिए हमें तराई के ग्रासलैंड्स को बचाना व बनाना होगा तभी फिन बया को संरक्षित किया जा सकता है। डा. भार्गव ने बताया कि फिन बया की प्रजातियां पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिमी नेपाल के तराई क्षेत्रों में अधिक पाई जाती रही हैं। इस पक्षी को तत्काल प्रभाव से क्रिटिकली एनडेंजर्ड यानी गंभीर रूप से खतरे की श्रेणी में डालने की मांग की है।

आम लोग भी कर सकते हैं मदद

डा. रजत भार्गव ने कहा कि इस प्रोजेक्ट में पक्षी प्रेमी व आम शहरी भी आर्थिक सहित अन्य मदद भी कर सकते हैं। लोगों में जागरूकता बढ़ रही जिसके सकारात्मक परिणाम मिलेंगे। जो भी पक्षी प्रेमी प्रोजेक्ट में आर्थिक सहयोग देना चाहते हैं वह इससे जुड़ सकते हैं और पहाड़ी बया के संरक्षण के लिए अपना योगदान दे सकते हैं। इस बाबत लोग मेरठ में प्रोजेक्ट को आगे बढ़ा रहे वरिष्ठ पक्षी विज्ञानी डा. रजत भार्गव से संपर्क कर सकते हैं। 


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