Krishna Janmashtami 2025: राधारमण मंदिर में दिन में मनेगा कृष्ण जन्मोत्सव, अनोखी है रसोई; माचिस का प्रयोग नहीं
Krishna Janmashtami वृंदावन के ठाकुर राधारमण मंदिर में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव 16 अगस्त को दिन में मनाया जाएगा यह परंपरा आचार्य गोपालभट्ट गोस्वामी ने शुरू की थी। मंदिर में 480 वर्ष पुरानी यह परंपरा आज भी निभाई जा रही है जिसके अनुसार ठाकुरजी का प्राकट्योत्सव दिन में ही मनाया जाता है। इस दिन ठाकुरजी का सवामन दूध दही घी से महाभिषेक होगा।

संवाद सहयोगी, जागरण, वृंदावन। देश-दुनिया में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव 16 अगस्त की रात 12 बजे मनाया जाएगा। लेकिन, सप्तदेवालयों में शामिल ठाकुर राधारमण मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव दिन में मनाया जाएगा। यह परंपरा आराध्य राधारमणलालजु के प्राकट्यकर्ता आचार्य गोपालभट्ट गोस्वामी ने शुरू की। जो आज भी मंदिर के सेवायत परंपरा को बखूबी निभा रहे हैं।
शालिग्राम शिला से स्वयं प्रकट ठाकुर राधारमण मंदिर में आज भी 480 वर्ष पुरानी परंपरा निभाई जा रही है। मंदिर में दिन में ठाकुरजी का प्राकट्योत्सव मनाने के पीछे मान्यता है कि चूंकि आचार्य गोपालभट्ट की साधना से प्रसन्न होकर शालिग्राम शिला से ठाकुर राधारमणलालजु ने विग्रह रूप भोर में लिया था।
ठाकुर राधारमणलालजु का होगा सवामन दूध-दही से महाभिषेक
इसलिए मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव भी आचार्य गोपाल भट्ट गोस्वामी द्वारा दिन में ही मनाया गया। तभी से आचार्य गोपाल भट्ट गोस्वामी के वंशज दिन में ही भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाते हैं। इसके अलावा राधादामोदर मंदिर, शाहजी मंदिर में भी दिन में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है।
16 अगस्त को मंदिर में होगा महाभिषेक
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर 16 अगस्त को मंदिर में सुबह नौ बजे ठाकुरजी का सवामन दूध, दही, घी, बूरा, शहद, यमुनाजल, गंगाजल व जड़ी-बूटियों से महाभिषेक होगा। निधिवन राज मंदिर के समीप स्थित ठाकुर राधारमण मंदिर में मान्यता है कि करीब 480 वर्ष पहले चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी आचार्य गोपाल भट्ट गोस्वामी के प्रेम के वशीभूत होकर ठाकुर राधारमणलालजु शालिग्राम शिला से वैशाख शुक्ल पूर्णिमा की प्रभातबेला में प्रकट हुए थे।
दिन में ही मनाने की परंपरा
मंदिर सेवायत एवं आचार्य गोपाल भट्ट के वंशज वैष्णवाचार्य अभिषेक गोस्वामी के अनुसार आचार्य गोपाल भट्ट जब शालिग्राम जी की सेवा साधना करते थे तो उनके मन में इच्छा रहती कि शालिग्राम शिला में ही गोविंददेव जी का मुख, गोपीनाथजी का वक्ष स्थल और मदनमोहनजी के चरणारविंद के दर्शन हों। भगवान नृसिंह देव के प्राकट्य दिवस पर आचार्य गोपालभट्ट गोस्वामी ने अपने आराध्य से यह इच्छा जताई थी।
इस पर आचार्य गोपाल भट्ट की साधना से प्रसन्न होकर वैशाख शुक्ल पूर्णिमा की भोर में शालिग्राम शिला से ठाकुर राधारमणलालजु का प्राकट्य हुआ। तब से भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्योत्सव भी दिन में ही मनाया जाता है। यह परंपरा खुद आचार्य गोपाल भट्ट गोस्वामी ने ही शुरू की।
मंदिर की रसोई का ही अर्पित होता है प्रसाद
राधारमण मंदिर की रसोई में सेवायत खुद अपने हाथ से ठाकुरजी का प्रसाद तैयार करके भोग में अर्पित करते हैं। मंदिर की रसोई में किसी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित है।
माचिस का नहीं होता प्रयोग
मंदिर की परंपरा के अनुसार किसी भी कार्य में माचिस का प्रयोग नहीं होता। पिछले 480 वर्ष से मंदिर की रसोई में प्रज्वलित अग्नि से ही रसोई समेत अनेक कार्य संपादित होते हैं।
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