क्या वोट की राजनीति से बाहर निकल सकेगा यूपीकोका!
विधेयक के मसौदे को कैबिनेट की मंजूरी मिलने के घंटे भर बाद ही नेता विरोधी दल राम गोविंद चौधरी ने यूपीकोका का विरोध शुरू कर दिया।
लखनऊ [आनन्द राय]। यूपीकोका (उत्तर प्रदेश कंट्रोल ऑफ ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट) के मसौदे को कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि माफिया की नकेल कसने वाला यह कानून क्या लागू भी हो पाएगा। 2007 में इसे लागू करने की पहल मायावती सरकार ने की थी लेकिन, अल्पसंख्यक राजनीति के दबाव में उस समय की यूपीए सरकार बाधा बन गई। अब इसके लागू होने में कोई बड़ा अवरोध इसलिए भी नहीं होगा क्योंकि उत्तर प्रदेश से लेकर केंद्र तक भाजपा की सरकार है। हालांकि समाजवादी पार्टी समेत कई स्वयंसेवी संगठनों ने यूपीकोका का विरोध अभी से तेज कर दिया है।
वर्ष 2007 में जब मायावती सरकार यूपीकोका लायी तब इसे मुसलमानों के खिलाफ हथियार माना गया। चूंकि उन्हीं दिनों एसटीएफ ने आजमगढ़ से आतंक के कई आरोपियों को गिरफ्तार किया था और नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी समेत कई संगठनों ने पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए थे। सपा भी विरोध में मुखर थी। यहां तक कि मायावती की सरकार पलटने के लिए 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले ही सपा ने आतंक के आरोप में फंसे बेगुनाह मुसलमानों की रिहाई के लिए घोषणा पत्र भी जारी कर दिया था। इस बार भी सबसे पहले विरोध में सपा ही आगे आयी है।
विधेयक के मसौदे को कैबिनेट की मंजूरी मिलने के घंटे भर बाद ही नेता विरोधी दल राम गोविंद चौधरी ने यूपीकोका का विरोध शुरू कर दिया। रिहाई मंच का आरोप है कि सांप्रदायिक राजनीति को बढ़ावा देने के लिए यूपीकोका लागू किया जा रहा है। सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या वोटों की राजनीति से यूपीकोका बाहर निकल सकेगा। यद्यपि योगी सरकार ने इसके मसौदा तैयार करते समय पारदर्शिता का पूरा ख्याल रखा है।
आरोपी को प्रतिवाद करने से लेकर बचाव का पूरा मौका दिया गया है। कमिश्नर, डीआइजी और आइजी स्तर के अधिकारियों की संस्तुति के बाद मुकदमा दर्ज हो सकेगा और आरोप पत्र दाखिल किया जा सकेगा। मायावती सरकार ने जब विस में यूपी संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक-2007 पेश किया तभी विरोध तेज हो गया। मायावती का कहना था कि अपराध की जड़ों को समाप्त करने के लिए प्रभावी कानून जरूरी है लेकिन, उनकी आवाज सियासी शोर में दब गई।
बताया बड़ा फैसला: यूपी के पूर्व पुलिस महानिदेशक बृजलाल ने बताया, यह योगी सरकार का बड़ा फैसला है। महाराष्ट्र और दिल्ली में संगठित अपराधों और आतंकवाद से निपटने में मकोका बहुत सहायक रहा है। इससे अपराधियों को जल्द रिमांड पर लिया जा सकेगा और चार्जशीट दाखिल करने के लिए भी अतिरिक्त समय मिल सकेगा।
कई दिनों से थी कानून की जरूरत: यूपी के पूर्व डीजीपी आइसी द्विवेदी के अनुसार, ऐसे कानून की बहुत दिनों से जरूरत थी लेकिन सरकार हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। अपराधियों के खिलाफ पुलिस के पास प्रभावी कानून होने चाहिए। यूपीकोका से राज्य में अपराध नियंत्रण पर प्रभावी असर पड़ेगा। अपराधियों को सजा दिलाने में भी यह कानून बहुत सहायक साबित होगा।
महाराष्ट्र में अपराधियों का काल बना मकोका: महाराष्ट्र कंट्रोल आफ आर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट यानी मकोका महाराष्ट्र में अपराधियों का काल बन गया। वर्ष 1999 में अंडरवर्ल्ड को समाप्त करने की गरज से लाये गये इस कानून ने व्यापक असर डाला। फिर 2002 में दिल्ली सरकार ने भी इसे लागू किया। इस कानून के तहत आसानी से जमानत नहीं मिलती है। महाराष्ट्र पुलिस को इस कानून के चलते विवेचना में सहूलियत मिली क्योंकि आइपीसी के प्रावधानों के तहत आरोप पत्र की समय सीमा 60 से 90 दिन ही है लेकिन 180 दिन का मौका मिलने से सघन पड़ताल कर सकी।
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संगठित अपराधी को नहीं मिलेगी सुरक्षा: यूपीकोका के प्रस्तावित कानून में यह व्यवस्था हो रही है कि कोई भी संगठित अपराध करने वाले अपराधी, बाहुबली, सफेदपोश सरकारी सुरक्षा नहीं पा सकेगा। इतना ही नहीं, यह भी इंतजाम किए जा रहे हैं कि जब भी कोई निविदा खुलेगी तो संबंधित कक्ष में किसी भी निविदादाता को अस्त्र-शस्त्र के साथ प्रवेश करने पर मनाही होगी। बाहुबली, संगठित अपराध में लिप्त अपराधियों के खिलाफ गवाही देने वालों को सुरक्षा प्रदान करने के साथ ही बंद कमरे में गवाही का भी प्रावधान किया गया है।
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