Smart Meter लगाने से पहले उपभोक्ताओं की सहमति जरूरी! नियामक आयोग में कानूनी प्रस्ताव दाखिल
उपभोक्ताओं की सहमति के बिना स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने पर विवाद है। विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने नियामक आयोग में कानूनी प्रस्ताव दाखिल किया है। उनका कहना है कि बिजली कंपनियां अधिनियम का उल्लंघन कर रही हैं जिसमें उपभोक्ताओं को प्रीपेड या पोस्टपेड मीटर चुनने का विकल्प दिया गया है। उन्होंने स्मार्ट मीटरों की स्थापना के वित्तीय प्रभाव पर भी चिंता जताई है।

राज्य ब्यूरो, लखनऊ। उपभोक्ताओं की सहमति के बिना बिजली के स्मार्ट प्रीपेड मीटर नहीं लगाए जा सकते हैं। विद्युत अधिनियम वर्ष 2003 के अनुसार किसी भी उपभोक्ता के यहां स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने से पहले उसकी सहमति लेना जरूरी है। इस संदर्भ में उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने शुक्रवार को नियामक आयोग में कानूनी प्रस्ताव दाखिल किया है।
इस बारे में परिषद के अध्यक्ष ने बताया कि बिजली कंपनियां अधिनियम का उल्लंघन कर रही हैं। उन्होंने नियामक आयोग को सुझाव दिया है कि यदि जरूरी समझे तो इस मामले को केंद्र सरकार को भी संदर्भित करें। यह मामला प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं के अधिकार से जुड़ा है।
उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2021 में अधिसूचना जारी कर सभी उपभोक्ताओं के लिए प्रीपेड मीटर अनिवार्य किया गया है। उन्होंने सवाल किया है कि यह अधिसूचना वर्ष 2003 के विद्युत अधिनियम के अनुरूप है या नहीं? विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 47(5) उपभोक्ताओं को प्रीपेड अथवा पोस्टपेड चुनने का विकल्प देती है। अधिनियम के मूल प्रविधान पोस्टपेड और प्रीपेड दोनों प्रकार के मीटरों को मान्यता देते हैं।
उन्होंने कहा कि विद्युत अधिनियम में जो व्यवस्था है उसको दरकिनार कैसे किया जा सकता है। उन्होंने चेतावनी दी है कि उत्तर प्रदेश में स्मार्ट मीटरों की स्थापना के लिए 16,112 करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च अनुमानित है, जो कि बिजली वितरण कंपनियों के लिए आर्थिक रूप से भारी पड़ सकता है। इसलिए सरकार इस मुद्दे पर उपभोक्ताओं के हित में हस्तक्षेप करे।
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