Changur Gang : जलालुद्दीन उर्फ छांगुर ने पुश्तैनी मकान से निकलने के बाद बनाया मतांतरण का अड्डा
Mastermind of Religion Conversion Gang मूल गांव से करीब दो किमी दूरी पर मधपुर में चांद औलिया दरगाह से लगी जमीन सहयोगी नीतू उर्फ नसरीन के नाम लेकर कोठी बनवाई और परिवार संग रहने लगा। नए ठिकाने से ही उसने गिरोह को संचालित करने लगा। छांगुर के पकड़े जाने के बाद गांव वालों को भी उसके काले साम्राज्य का पता चला।

अमित श्रीवास्तव, जागरण, बलरामपुर : साइकिल से नग और अंगूठी बेचने वाला जलालुद्दीन उर्फ छांगुर तीन-चार वर्ष में ही करोड़ों की संपत्ति का मालिक बन गया। उतरौला तहसील के रेहरामाफी गांव से मुंबई में हाजी अली दरगाह पर भी छांगुर अंगूठी और नग बेचने गया था। वहीं से इसने मतांतरण का खेल शुरू किया और उसमें कामयाब भी हो गया।
मतांतरण का मास्टरमाइंड बनने से पहले छांगुर गांव में सामान्य लोगों की तरह ही रहता था। पुश्तैनी मकान में छांगुर अपने तीन भाइयों इकरामुद्दीन, राजू, मलून के साथ रहता था। थोड़े दिन बाद में सभी अलग-अलग रहने लगे। पुश्तैनी मकान छांगुर ने ले लिया। विदेशी फंडिंग मिलते ही अपना रहन-सहन और ठिकाना ही बदल दिया।
उसने मूल गांव से करीब दो किमी दूरी पर मधपुर में चांद औलिया दरगाह से लगी जमीन सहयोगी नीतू उर्फ नसरीन के नाम लेकर कोठी बनवाई और परिवार संग रहने लगा। नए ठिकाने से ही उसने गिरोह को संचालित करने लगा। छांगुर के पकड़े जाने के बाद गांव वालों को भी उसके काले साम्राज्य का पता चला।
उतरौला के आदिल हुसैन बताते हैं कि कोठी से लगी दरगाह पर जब उर्स होता था तो उसमें छांगुर शायरों के कलाम पर खूब झूमता था, लेकिन उस समय इसके करतूतों को कोई नहीं जानता था। उतरौला नगर में भी अक्सर लोगों से मिलता और बड़ी शालीनता से बात करता था। अधिवक्ता मार्कंडेय मिश्र कहते हैं कि पहले वह बहुत साधारण था। नग बेचने के लिए कोर्ट कचहरी आता-जाता था। फिर प्रधान हो गया तो आने का सिलसिला बढ़ गया।
छांगुर को मुंबई आना जाना भी बढ़ा तो वह गलत रास्ता पकड़ तरक्की की राह पर दौड़ने लगा। जीवन लाल कहते हैं कि गिरफ्तारी के बाद पता चला कि छांगुर ने कैसे इतने कम समय में ही अप्रत्याशित तरक्की पा ली। पहले गांव में आम लोगों की तरह रहता था। एक दो बार मुंबई से पुरानी चार पहिया वाहन लेकर आता था। नवीन व नीतू के साथ लौटा तो पूरी तरह से बदल चुका था।
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उतरौला के नवाब वर्मा बताते हैं कि छांगुर कोठी से फार्च्यूनर या क्रेटा पर सवार होकर ही निकलता था। उसके साथ में नीतू और नवीन भी रहते थे। वह कार से नीचे उतरकर नहीं, शीशा उतारकर ही बात करता था।
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छांगुर के रहन-सहन में कुछ वर्षों में बदलाव देखकर गांव के लोग चकित तो थे, लेकिन किसी को मधपुर में मतांतरण का अड्डा बन जाने की भनक तक नहीं लग सकी। हालांकि छांगुर की अप्रत्याशित तरक्की से लोगों को कुछ आशंका तो हुई, लेकिन वह मतांतरण का घिनौना खेल खेल रहा है, यह किसी ने सोचा भी नहीं था।
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