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    Kanpur News: जगी आस ... किरायेदार अब बनेंगे मकान मालिक, कालोनियों के स्वामित्व पर आगे बढ़ी बात

    Updated: Fri, 28 Mar 2025 01:16 PM (IST)

    प्रदेश की 36 हजार और शहर की 18 हजार श्रमिक कालोनियों के स्वामित्व पर बात आगे बढ़ने से लोगों के उदास चेहरे खिल गए हैं। 72 साल से जर्जर हो चुकी कालोनियों का किराया जमा नहीं हो रहा था और मरम्मत का काम भी 30 साल से बंद था। अब विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना की अध्यक्षता में गठित कमेटी को इसका हल निकालने का जिम्मा सौंपा गया है।

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    18 हजार श्रमिक कालोनियों के स्वामित्व पर बात आगे बढ़ी। जागरण (सांकेतिक तस्वीर)

     शिवा अवस्थी, जागरण, कानपुर। अपने घर और मकान की खुशी क्या होती है, ये शास्त्री नगर, विष्णुपुरी, ईदगाह कालोनी, दादानगर, किदवईनगर, जूही, लालबंगला की श्रमिक कालोनियों में रहने वालों से पूछिए। प्रदेश की 36 हजार व शहर के अलग-अलग मुहल्लों में स्थित 18 हजार श्रमिक कालोनियों के स्वामित्व पर बात आगे बढ़ने से इनके उदास चेहरे खिल गए हैं।

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    वे बताते हैं, 72 साल -में जर्जर हो चुकी कालोनियों का किराया जमा नहीं हो रहा, मरम्मत का काम भी 30 साल से बंद है। पूर्ववर्ती सरकारों ने हजारों परिवारों का दर्द नहीं समझा और मामला उलझा रहा। अब विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना की अध्यक्षता में गठित कमेटी को इसका हल निकालने का जिम्मा सौंपने से फिर आस जगी है।

    ब्रिटिश इंडिया कारपोरेशन इसी), नेशनल टेक्सटाइल शन (एनटीसी) व निजी क्षेत्र ब्लों की चिमनियों ने जब देश की स्वाधीनता के बाद औद्योगिक नगरी की वैश्विक पहचान बढ़ाई, तभी ये कालोनियां गुलजार हुईं। उन श्रमिकों में तमाम अब इस दुनिया में नहीं हैं।

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    कुछ के परिवार हैं तो कई की खरीद-बिक्री बिना रजिस्ट्री केवल स्टांप पेपरों में ही हो रही है। कांग्रेस, सपा-बसपा शासनकाल में बातें बहुत हुईं पर सटीक निराकरण नहीं निकला। अब योगी सरकार की उत्तर प्रदेश राज्य परामर्शदात्री समिति ने सकारात्मक रुख अपनाया है।

    श्रमिकों को मिलेगा मकान। जागरण (सांकेतिक तस्वीर)


    मंगलवार को विधानसभा अध्यक्ष ने श्रममंत्री अनिल राजभर, विधायक सुरेंद्र मैथानी, श्रमायुक्त मार्कंडेय शाही संग लखनऊ में विधानसभा प्रेक्षागृह में बैठक कर 15 जून तक सर्वे रिपोर्ट मांगी है। श्रमायुक्त ने बताया कि सर्वे रिपोर्ट तैयार कराकर समिति के सामने रखी जाएगी।

    • 1950 में श्रमिक कालोनियों का निर्माण शुरू हुआ, 1953 से आवंटन की शुरुआत।
    • 10.50 रुपये प्रारंभ में किराया दर थी एक कमरा कालोनी की व 18.50 रुपये दो कमरा का।
    • 17.50 रुपये आर्थिक किराया दर एक कमरा व 23 रुपये दो कमरा कालोनी का तय हुआ।
    • 125 रुपये मानक किराया दर एक कमरा कालोनी व 235 दो कमरे का 1990 में आया।
    • 1997 में उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने दिल्ली व ओडिशा की तर्ज पर उप्र श्रमिक कालोनियों का स्वामित्व देने का निर्णय दिया।
    • 28 वर्ष से न्यायालय के आदेश के बावजूद श्रमिक कालोनी के बाशिंदें स्वामित्व नहीं पा सके।
    • 16 जिलों में प्रदेश में 30,635 श्रमिक कालोनियां हैं। इनमें 18 हजार शहर में हैं।

    श्रमिक कालोनियों की यह है वर्तमान स्थिति

    • ज्यादातर कालोनियों में मूल आवंट्री अब नहीं बचे हैं।
    • जर्जर हो चुकी कालोनियों में मरम्मत से जुड़ा काम भी नहीं हो पा रहा है।
    • कालोनियों में जर्जर हिस्सा सुधारने में भी उत्पीड़न ।
    • तमाम श्रमिकों के पास अब नौकरी भी नहीं रही।

    जिम्मेदारों ने क्या कहा

    वर्तमान में कालोनी में रहने वालों का ब्योरा तैयार कर सकारात्मक रिपोर्ट श्रम विभाग से मांगी है। वर्तमान स्थिति में कालोनियां उन्हें ही देने की बात कही गई है, जो इनमें रह रहे हैं। 16 जून को बैठक में निर्णय लेकर मामला कैबिनेट में भेजेंगे।'- सतीश महाना, विधानसभा अध्यक्ष।

    दिल्ली और ओडिशा की तर्ज पर ही श्रमिक कालोनियां मूल लागत आठ से 12 हजार में ही दे दी जाएं। श्रम विभाग नोटिस भेजकर उत्पीड़न कर रहा है। -डा. शैलेंद्र दीक्षित, अध्यक्ष उम्र श्रमिक बस्ती महासंघ

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    42 वर्ष श्रमिक कालोनी में रहकर सदन में पहुंचा हूं। यहां का दर्द पता है। पीडब्ल्यूडी से मूल्यांकन कराने पर वर्तमान स्थिति शून्य ही मिलेगी। शास्त्री नगर सेंट्रल पार्क में लाइब्रेरी, सभागार व बुजुर्गों के लिए स्थान अपनी निधि से बनाएंगे।- सुरेंद्र मैथानी, विधायक गोविंद नगर।

    तीन पीढ़ी श्रमिक कालोनी में रहते बीत गई। दादा व पिता के नाम कालोनी आवंटित हुई थी। बकाया किराया पुरानी दर में जमा कराकर स्वामित्व मिले।- सतीश चंद्रा शास्त्री नगर